बस्तर / पारद यानि शिकार । मगर प्रचलित मान्यता के अनुसार बस्तर में निर्दाेष जानवरों को मारना शिकार नहीं होता है। न ही जहर देकर मारने की प्रथा है। तो पारद है क्या?
पारद यानि शिकार एक धार्मिक अनुष्ठान है । नारायणपुर के जाने माने लेखकर शिवनाराण ने अपनी लेख में लिखा है कि पारद खेलने जाने से पहले देवताओं की अनुमति लेनी होती है। और गाँव के प्रत्येक घर से एक व्यक्ति का होना अनिवार्य होता है।
पारद यानि शिकार समूह के रूप में आदिवासियों में करने का रिवाज है। इसके लिए बकायदा बैठक की जाती है । और यह बैठक घोटुल, थानागुड़ी या किसी सार्वजनिक जगहों पर की जाती है। आदिवासियों में हर काम को सार्वजनिक रूप से करने का रिवाज होता है।
किस प्रकार होता है यह बैठक :-
ढोल बजाकर लोगों को सूचना दी जाती है जब लोग एक जगह जमा होते हैं तो तब आयोजन कर्ता या गाँव का मुखिया बैठक के मुद्दे पर बात करता है। बैठक में किस दिशा में पारद जाना है? समूह कितने दिन में लौटेगा? इत्यादि पर चर्चा होती है।
सामान्यतः पारद गाँव में आई विपत्ति को दूर करने के लिए किया जाता है । विपत्ति अकाल, सूखा,बिमारी या अन्य जो पूरे समाज को प्रभावित करते हैं।
इसके अलावा गाँव के पुजारी के चयन पर भी पारद खेलने की प्रथा है जिसमें समूह को अपनी योग्यता सिद्ध करने के लिए पादर पर जाना जरूरी होता है। पारद में जीते शिकार को वे देवताओं को अर्पण करते है।