JAGDALPUR :- 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे की दूसरी प्रमुख रस्म ‘डेरी गड़ाई’ गुरुवार को सिरहासार भवन में सम्पन्न हुई। सिरहासार भवन में मोंगरी मछली, अंडा और लाई को एक गड्ढे में डाला गया।
फिर, करीब 10 फीट की सरई लकड़ी में हल्दी का लेप लगाकर सालों से चली आ रही परंपरा को निभाया गया है। पुजारी, मांझी, चालकी समेत बस्तर दशहरा समिति के सदस्यों ने रस्म को पूरा किया है। इस रस्म की अदायगी के बाद दशहरा के लिए रथ निर्माण की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
दरअसल, डेरी गड़ाई रस्म अदा करने के लिए हर साल की तरह इस साल भी बस्तर के बिरिंगपाल गांव से शाखायुक्त सरई की 10 फीट की लकड़ी लाई गई। इसे हल्दी का लेप लगाकर स्थापित किया गया।
इस विधान को डेरी कहा जाता है। फिर इस लकड़ी की स्थापना की गई। इसकी स्थापना डेरी गड़ाई कहलाती है। सिरहासार भवन में दो स्तंभों के बीच जमीन में गड्ढा खोदकर पहले उसमें अंडा और मोंगरी मछली डाली गई। फिर उन गड्ढों में डेरी स्थापित किया गया है। अब रथ निर्माण के लिए लकड़ियां लाने का दौर शुरू हो जाएगा।
राज घराने से गई सामग्री
बस्तर राजघराना परिवार के सदस्य कमल चंद भंजदेव ने बताया कि, बस्तर दशहरा की परंपरा करीब 600 सालों से चली आ रही है। इस परंपरा के लिए राज घराने से सामग्री जाती है। डेरी को स्तंभ की तरह गाड़ा जाता है। जिसकी पूजा की जाती है। उन्होंने कहा कि, इस रस्म में हल्दी भी खेली जाती है। क्योंकि, हल्दी खेलने को शुभ माना जाता है। उन्होंने कहा कि, मैं एक माटी पुजारी होने के नाते सभी बस्तर वासियों को दशहरा में शामिल होने का न्योता दे रहा हूं।
साल और तिनसा प्रजाति की लकड़ी से बनता है रथ
बस्तर दशहरा के लिए बनने वाले रथ में केवल साल और तिनसा प्रजाति की लकड़ियों का उपयोग किया जाता है। डेरी गड़ाई रस्म अदा करने के बाद ही तिनसा प्रजाति की लकड़ियों से पहिए का एक्सल तो वहीं साल की लकड़ियों से रथ का निर्माण होता है।
परंपरा के अनुसार बस्तर के झारउमरगांव और बेड़ाउमरगांव के ग्रामीण ही रथ का निर्माण करते हैं। रथ बनाने के लिए आधुनिक औजारों की बजाए पारंपरिक औजारों का ही उपयोग किया जाता है। दशहरा में कुल 3 रथ की नगर परिक्रमा कराई जाती है।