International News: उज्बेकिस्तान की राजधानी समरकंद में 16 सितंबर को होने वाली SCO शिखर बैठक के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग रूबरू होंगे. करीब 34 महीने बाद दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले दो मुल्कों के यह नेता आमने-सामने होंगे.
इस मुलाकात से पहले पूर्वी लद्दाख में करीब 28 महीनों तक चला सीमा तनाव सुलझाने की कोशिश में चीन ने कुछ इलाकों से फौजें पीछे लेने पर रजामंदी भले ही जताई हो. लेकिन सीमा पर तनाव का यह मुद्दा मोदी-जिनपिंग मुलाकात की मेज पर जरूर मौजूद होगा.
क्या था गलवान काण्ड: भारत ने कहा था कि जून 2020 में गालवान घाटी संघर्ष में उसके 20 सैनिकों की मौत हो गई थी, जो 15 जून और 16 जून, 2020 की एक काली रात में करीब शून्य डिग्री तापमान में आमने-सामने की लड़ाई में लड़ी गई थी।
गलवान घाटी संघर्ष भारत और चीन के बीच चार दशकों में सबसे घातक टकराव था। चीन की सरकारी मीडिया इस झड़प या उसके बाद की घटनाओं को कवर करने में लगभग पूरी तरह विफल रही है।
झड़प पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर हुई। पूर्वी लद्दाख के इलाके में चीन की आक्रामक मोर्चाबंदी और गलवान जैसी घटना के बाद दोनों देशों के सैनिक कई इलाकों पर आमने-सामने की स्थिति में करीब 28 महीनों तक रहे. इतना ही नहीं अभी भी जहां देपसांग के इलाके में चीन की मोर्चाबंदी नहीं टूटी है. वहीं उसकी तरफ से लद्दाख के इलाके में अपने सैनिक जमावड़े को अप्रैल 2020 की स्थिति तक कम नहीं किया है. जाहिर है ऐसे में भारत ने भी रक्षात्मक मोर्चाबंदी और सैनिक मौजूदगी को मुकम्मल रखा है.
चीन के लिए भारत क्यों है जरूरी?
हालांकि भारत के साथ संवाद और संबंधों को लेकर शी जिनपिंग की मजबूरी को भी समझना जरूरी है. खासतौर पर ऐसे में जबकि शी जिनपिंग को अगले महीने होने वाली पार्टी कांग्रेस में अपने तीसरे कार्यकाल के लिए दावेदारी पर अनुमोदन की मुहर हासिल करना है. वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन की छवि को लेकर उठ रहे सवालों पर भी पार्टी के इस सबसे बड़े अधिवेशन में जवाब देने होंगे. साथ ही आर्थिक मंदी की चुनौती के बीच भारत जैसे बड़े बाजार को खोने का खतरा टालने की भी जुगत जिनपिंग करना चाहेंगे.
आंकड़े बताते हैं कि भारत के साथ सीमा तनाव के बीच चीन को न केवल द्विपक्षीय व्यापार में घाटे का सामना करना पड़ा है. बल्कि चीनी कंपनियों के लिए भी भारतीय बाजार में मुश्किलें बढ़ी हैं. इतना ही नहीं सरहद पर भारत के साथ चीन की दादागिरी ने कई पड़ोसी और लोकतांत्रिक देशों में भी उसके लिए परेशानी बढ़ाई है.