जगदलपुर :- आदिवासी इंजीनियरिंग की मिसाल है बस्तर दशहरा का दुमंजिला विशाल रथ, बस्तर संभाग मुख्यालय में सबसे लंबी अवधि 75 दिनों तक चलने वाले रियासत कालीन परंपराओं के साथ बस्तर दशहरा पर्व में लकड़ी से बनाये जाने वाले दुमंजिला रथ निर्माण के परंपरागत बस्तर के कारीगर का गुरुवार को आगमन हो गया है।
शुक्रवार 16 सितंबर से रथ निर्माण की पहली रस्म बारसी उतरानी के साथ ही 40 फुट उंचा, 32 फुट लंबा एवं 20 फिट चौड़ा भव्य रथ का निर्माण शुरू हो जायेगा।
विगत 614 वर्षों से हर वर्ष नये सिरे से बनाये जाने वाले इस रथ को बनाने वालों के पास भले ही किसी इंजीनियरिंग कालेज की डिग्री न हो लेकिन जिस कुशलता और समयावधि में इसे तैयार किया जाता है वह आदिवासी इंजीनियरिंग की मिसाल है।
रथ के चक्कों से लेकर धुरी (एक्सल) तथा रथ के चक्कों व मूल ढांचे के निर्माण में अपने सीमित और पारंपरिक औजारों कुल्हाड़ी व बसूले सहित अन्य औजारों का उपयोग करते हैं।
बस्तर दशहरा रथ के ग्रामीण कारीगर/शिल्पी जिस कुशलता के साथ दो मंजिले रथ का निर्माण करते हैं। इसे बनाने में 50 घन मीटर लकड़ी का उपयोग होता है। माचकोट एवं तिरिया के संमृद्ध साल वनों से लाए गए साल वृक्ष के मोटे तनों से रथ का एक्सल बनाया जाता है।
इसके दोनों छोर पर चक्का बिठाने के लिए आकार तय किया जाता है। रथ परिचालन का सारा दारोमदार पहियों पर ही होता है।
रथ का पहिया बनाने के लिए मजबूत लकड़ियों के दो अर्धगोलाकार आकृतियों को आपस में बिठाकर पूर्ण गोलाकार चक्कों का रूप दिया जाता है। इनचक्कों का आकार, मोटाई व उनके बीच बने नार का निर्माण ऐसे होता है
कि रथ के संचालन में आसानी हो। बस्तर दशहरा रथ के संचालन एवं अन्य रियासत कालीन परंपराओं को देखने के लिए देशी/विदेशी पर्यटक अपार उत्कंठा लिए बस्तर पहुंचते हैं। बस्तर दशहरा के दुमंजिला लकड़ी से निर्मित रथ का संचालन आर्कषण और कौतूहल का विषय होता है।