जगदलपुर। रियासत कालीन बस्तर दशहरा पर्वके विशाल काष्ठ रथ निर्माण का बेड़ाउमरगांव व झारउमरगांव के 100 से अधिक कारीगरों के द्वारा किया जा रहा है।
पहले चरण में रथ के चेचिस और चक्का तैयार किया जा रहा है। जंगलों से आए लकड़ी को छीलकर उसको आकार देने में लगे कारीगर लगातार पसीना बहा रहे हैं।
इस वर्ष बस्तर दशहरा के लिए 08 चक्कों के रथ का निर्माण किया जा रहा है। आज रथ निर्माण स्थल पर बस्तर दशहरा रथ के चक्के आकार लेने लगे हैं। रथ बनाने वाले काष्ठ के कारीगरों के अलावा परंपरागत रूप से लोहार भी अपनी भागीदारी निभाते आ रहे हैं।
रथ के विभिन्न हिस्सों और तीन भागों में तैयार चक्के को आपस में जोड़ने के लिए लोहार पारंपरिक औजारों से क्लैंप तैयार करते हैं इसे स्थानीय कारीगर जोकी कहते हैं।
चक्के की धुरी पर बने छेद में 08 एमएम के लोहे की पट्टी को आकार देकर चक्के को आपस में जोड़ा जाता है। कारीगरों के मुताबिकं 08 चक्कों के रथ निर्माण में लगभग तीन क्विंटल लोहा लग जाता है।
लोहार भागीरथी ने बताया कि सिरहासार भवन के ठीक बगल में स्थित पवित्र पत्थर की पूजा-अर्चना विधि-विधान से की जाती है। इसके बाद लोहा तपाने के लिए भट्टी लगाया जाता है। उन्होंने बताया कि रथ में प्रयुक्त विभिन्न स्थानोंं आड़बाधन, जोड़ी खंभा, मगरमुंही, असांड, लाड़ी को जोड़ने के लिए लोहे की कील बनाई जाती है।