Rajasthan Political Crisis: राजस्थान का सियासी संकट इस वक्त का सबसे बड़ा मुद्दा है. कांग्रेस आलाकमान की नजर इसी ओर टिकी हैं कि कैसे पायलट और गहलोत के बीच की रार को थामा जाए. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि राजस्थान में कांग्रेस के पास क्या विकल्प हैं? ऐसे में भाजपा अब कांग्रेस की अंदरूनी कलह को लेकर हमलावर हो रही है. बीजेपी ने राजस्थान सरकार की मौजूदा स्थिति को देखकर राष्ट्रपति शासन लगाने के संकेत दिए हैं.
राष्ट्रपति शासन की मांग
विधानसभा में उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौर ने ट्विटर पर लिखा, ‘राजस्थान में मौजूदा राजनीतिक स्थिति राष्ट्रपति शासन की ओर इशारा कर रही है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आप नाटक क्यों कर रहे हैं? कैबिनेट के इस्तीफा देने में देरी क्यों हो रही है? आपको भी इस्तीफा दे देना चाहिए.’
पहली बार नहीं हुआ है राजस्थान का पॉलिटिकल ड्रामा
गौरतलब है कि राजस्थान का सियासी ड्रामा कोई नई बात नहीं है. वहां लगभग हर साल ही सियासी उठापठक की खबरें आती हैं और पायलट और गहलोत के बीच की जंग सामने आती है. इस बार का सियासी खेल भी कुछ ऐसा ही है. इस बार भी गहलोत के पार्टी अध्यक्ष चुने जाने से पहले ही उनके समर्थित विधायकों ने पायलट के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
गहलोत ने पहले ही स्पष्ट कर दी थी स्थिति
गहलोत गुट के विधायकों का कहना है कि हमें सचिन से कोई व्यक्तिगत नाराजगी नहीं है लेकिन सचिन पायलट को हम सीएम पद पर नहीं देखना चाहते. गहलोत गुट के विधायकों के अलावा खुद सीएम अशोक गहलोत को सचिन का नाम सीएम पद के लिए मंजूर नहीं था. वह शुरू से सीपी जोशी को अपनी सीएम की गद्दी सौंपना चाहते थे.
बता दें कि सीएम अशोक गहलोत को राजनीति का ‘जादूगर’ कहा जाता है. उनके पिता बाबू लक्ष्मण सिंह दक्ष पेशेवर जादूगर थे और प्रदर्शन करने के लिए कई शहरों की यात्रा करते थे. राजनीति के क्षेत्र में वही काम उनका बेटा अशोक गहलोत कर रहा है. जो इस सियासी उठापटक की अच्छी समझ रखते हैं. अब ऐसा कहा जा रहा है कि सचिन पायलट के नाम पर गहलोत पहले से ही राजी नहीं थे. गहलोत को अक्सर यह लगता है कि सचिन पायलट बीजेपी के साथ मिलकर राजस्थान की सरकार गिराना चाहते थे. ऐसे में गहलोत की जगह कोई ऐसा नेता प्रदेश की कमान न संभाले जिसने सरकार गिराने की कोशिश की हो.
कौन है असली विलेन?
कई विधायकों के इस्तीफे के बाद यही कहा जा रहा है कि यह पूरा खेल गहलोत का ही रचा हुआ है. दरअसल, गहलोत गांधी परिवार के वफादरों में गिने जाते हैं. ऐसे में गहलोत सीधे तौर पर सचिन के नाम का खुलकर विरोध नहीं कर सकते इसलिए गहलोत गुट के विधायकों के इस्तीफे के जरिए अपना संदेश दिल्ली पहुंचा दिया है