जगदलपुर, 06 अक्टूबर। छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कल लालबाग स्थित रियासत कालीन टाउन क्लब में दो ब्लाक के बस्तर तथा तोकापाल के 108 गांव को वाई-फाई सुविधा निःषुल्क उपलब्ध कराएंगें। जिला पंचायत मुख्यकार्यपालन अधिकारी रोहित व्यसा ने बताया कि बस्तर और तोकापाल विकासखंड के 108 गांव में वाई-फाई सुविधा भारत संचार निगम के साथ अनुबंध किया गया है। जिसका उद्घाटन कल लालबाग नियासत कालीन टाउन क्लब में मुख्यमंत्री करेंगे। उन्होंने बताया कि आगामी दिनों इसमें टेलीमेडिसन तथा टेलीएजुकेषन के साथ-साथ अन्य सुविधा भी उपलब्ध कराई जायेगी।
बस्तर में चालुक्यवंश की स्थापना राजा अन्नमदेव ने किया था। 1 जनवरी 1948 को भारतीय संघ में बस्तर रियासत का विलीनीकरण किया गया। उस विलय पत्र में चालुक्यवंश के अंतिम शासक, महाराजा प्रवीरचंद्र भंजदेव ने हस्ताक्षर किया।
बस्तर के साहित्यकार रूद्रनारायण पाणीग्राही ने बताया कि राजा रुद्र प्रतापदेव के शासनकाल 1891 से 1921 की अवधि में जगदलपुर में महत्वपूर्ण भवनों का निर्माण किया गया था जिनमें से लालबाग मार्ग पर स्थित टाउन क्लब उनमें से एक था। इस टाउन क्लब का निर्माण 1921 में किया गया था। उस दौर में राजमहल से करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर किया गया था। इस टाउन क्लब का निर्माण मनोरंजन के साथ-साथ उस दौर के खेलों को प्रोत्साहन देने के उद्धेश्य को लेकर तैयार किया गया था। संगीत प्रेमियों के लिए प्यानो, सितार, वायोलिन जैसे वाद्य यंत्र क्लब में रखे गए थे। खेल प्रेमियों के लिए विलियर्ड और घुड़सवारी जैसे खेलों को महत्व दिया जाता था। आस-पास बहुत ही बड़ा खुला मैदान हुआ करता था। यही नहीं क्लब के कमरों में विशिष्ट अतिथियों के लिए चर्चा हेतु कमरे भी अलग से बनाए गए थे, जिनमें वन्य पशुओं के शिकार किए हुए सूखे सींग दीवारों में टांगे गए हैं, जो आज भी दर्शनीय हैं। कालान्तर में खेल और संगीत को लेकर परिवर्तन हुए। 1921 में राजा रुद्रप्रताप देव के मृत्यु के बाद उनकी एकमात्र संतान राजकुमारी प्रफुल्ल कुमारी देवी को बस्तर रियासत की महारानी घोषित किया गया। प्रफुल्ल कुमारी देवी के कार्यकाल में देखरेख के अभाव में बस्तर टाउन क्लब की गतिविधियां धीमी हो गई। लोगों का आना-जान कम हो गया।
उन्होंने बताया कि वर्तमान में बस्तर टाउन क्लब का नामकरण आमचो बस्तर क्लब के नाम से किया गया है उसके पूर्व इसे बस्तर आफिसर्स क्लब के नाम से भी जाना जाता था। रियासतकाल के दौर में बने भवनों के अलावा इनडोर खेलों के लिए भी भवन बनाए गए हें। इस क्लब में खेल के आधुनिक संसाधन जुटाए गए। टेबिल टेनिस, लान टेनिस, बेडमिनटन आदि खेलों में जिले के बड़े ओहदे के अधिकारी इसमें भाग लेते थे। उसके बाद लगातार जिला-संभाग मुख्यालय में पदस्थ प्रथम, द्वितीय वर्ग के अधिकारियों के लिए यहां व्यायाम के साथ-साथ खेलों के लिए सुविधाएं बढ़ी जो आज पर्यन्त कायम है।
बस्तर रियासत के महाराजा दलपत देव ने ग्राम बस्तर से स्थानान्तरित करते हुए जगदलपुर को 1772 में राजधानी बनाया। जगतू नाम का एक व्यक्ति कबीले का मुखिया हुआ करता था, संभवतः उसके नाम से ही कालान्तर में शहर का नाम जगतुगुड़ा पड़ा। 1970-72 से 1947 तक जगदलपुर का राजमहल प्रशासनिक गतिविधियों का केंद्र था इसलिए उसे ही केन्द्र बिंदु मानकर यहां की बसाहट शुरु की गई। जगदलपुर को नियोजित आकार देने की परिकल्पना महाराजा रुद्र प्रतापदेव के दीवान रायबहादुर बैजनाथ पंडा (1904-1910) ने की थी। शहर में जलापूर्ति, विद्युत व्यवस्था, जल निकासी, पहुंचमार्ग, सड़कों की व्यवस्था आदि मूलभूत नागरिक सुविधाओं को सुनिश्चित करने की कल्पना की थी। लंदन की प्रतिकृति पर इसे बनाने का खाका खींचा, कालान्तर में यह तब से लेकर आज तक चौराहों का शहर कहलाता आ रहा है।