जगदलपुर :- बस्तर रियासत की 400 साल पुरानी कालवान बंदूक(भरमार) आज भी पूजी जाती है.विजयदशमी के दिन शस्त्र पूजा में इस कालवान बंदूक को निकाला जाता है
और बस्तर दशहरे का प्रमुख रश्म बाहर रैनी और भीतर रैनी में यह बंदूक लोगों को देखने को मिलती है. साल में सिर्फ 2 दिन के लिए यह बंदूक सार्वजनिक रूप से मंदिर से बाहर आती है.
708 साल पहले वारंगल नरेश अन्नामदेव पांच हथियार और पांच वाद्य लेकर बस्तर आये थे. इसलिए बस्तर राजपरिवार द्वारा विजयादशमी के दिन परंपरानुसार पुराने शस्त्रों और वाद्यों की पूजा की जाती है.
वर्ष 1313 में लाए गए पुराने शस्त्र तो अब नहीं है पर महारानी मेघावती की 400 साल पुरानी कालवान बंदूक की पूजा आज भी विजयादशमी पर होती है.
इतना ही नहीं पुरातन कालवान बंदूक का प्रदर्शन भी भीतर रैनी रथ परिक्रमा की शाम किया जाता है.बताया गया कि वर्ष 1313 ईस्वी में अन्नामदेव जीत हासिल करते हुए बारसूर पहुंचे थे.
वह अपने साथ कुलदेवी मां दंतेश्वरी तथा पांच शस्त्र और 5 वाद्य के साथ बस्तर प्रवेश किया था इसलिए दंतेश्वरी मंदिर और राजमहल में विजयादशमी के दिन पुराने शस्त्रों और वाद्यों की पूजा अर्चना की जाती है.
एक पुराना नंगाड़ा आज भी दंतेवाड़ा मंदिर में मौजूद है.इधर कुछ रियासत कालीन पुरानी भरमार बंदूकें जिला संग्रहालय में संकलित हैं.
पुराने शस्त्र के रूप में करीब 400 साल पुरानी कालवान नामक भरमार बंदूक दंतेश्वरी मंदिर परिसर में आज भी मौजूद है. दशहरा के अवसर पर रानी मेघावती की भरमार बंदूक की विधिवत पूजा अर्चना की जाती है और मंदिर के सेवादार इसे लेकर भीतर रैनी के दिन मावली माता मंदिर की परिक्रमा करते हैं.