Diwali 2022: दिवाली का महापर्व कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। सनातन धर्म में इस दिन का विशेष महत्व है। जहां दिवाली की रात्रि सभी लोग महालक्ष्मी की पूजा करते हैं। वहीं, शहरों से दूर श्मशान में अघोरी तंत्र साधनाओं में लीन होते हैं। इस रात्रि का इंतजार पूरे साल किया जाता है। अघोरी रातभर महाकाली की साधना करते हैं। इस दौरान शैतानी शक्तियों को बुलाया जाता है। तंत्र क्रियाओं से तांत्रिक सिद्धियां हासिल करते हैं।
दिवाली की रात्रि काशी के मणिकर्णिका घाट का नजारा किसी को भी डरा सकता है। यहां बड़े-बड़े साधक और तांत्रिक नरमूंडो के बीच खून से नहाते हैं। जलती चिताओं के बीच एक पैर पर खड़े होकर शव साधना की जाती है। काशी सिर्फ एक ऐसी नगरी है, जहां महादेव खुद औघड़ दानी के रूप में महा शमशान में विराजते हैं। उन्हीं बाबा औघड़ दानी के समक्ष तामसिक क्रिया करने के लिए नरमुंडो में खप्पर भरकर 40 मिनट तक आरती की जाती है। ऐसा ही कुछ नजारा महाकाल की नगरी उज्जैन, झारखंड के जमशेदपुर और बंगाल के कुछ कुछ क्षेत्रों में देखने को मिलता है।
क्यों की जाती है तंत्र साधना ?
साधारण अर्थ में तंत्र का अर्थ तन से, मंत्र का अर्थ मन से और यंत्र का अर्थ किसी मशीन या वस्तु से होता है। तांत्रिक क्रियाओं द्वारा इन्हीं तीनों को वश में करने का प्रयास किया जाता है। तांत्रिक शव साधना करके भूतलोक की शक्तियों को जागृत करते हैं और अपने काम को उनके द्वारा सिद्ध करवाते हैं। साधक इस दौरान शव के ऊपर बैठकर पूरी रात साधना करता है। ये साधना इतनी शक्तिशाली होती है कि अगर यह सिद्ध हो जाए तो तांत्रिक किसी को भी बर्बाद कर सकता है।
धर्म ग्रंथों के जानकार बताते हैं कि वेद पुराणों और शास्त्रों में तंत्र साधना ओं को सही नहीं माना गया है रामचरित्र मानस में भी ऐसा ही लिखा है। इसे धर्म के विरुद्ध बताया गया है ऐसा करने पर आपको जिसके दुष्परिणाम निश्चित रूप से भुगतने पड़ते हैं गृहस्थ जीवन में रहने वाले आदमी को इन सब चीजों से दूर रहना चाहिए। ऐसा बोला जाता है कि यदि कोई अज्ञानी व्यक्ति इस साधना को करता है तो शव उसकी जान तक ले सकता है।