राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में जिले के भुंजिया जनजाति ने नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत की अपनी जीवन शैली
भुंजिया जनजाति नृत्य ने सभी को किया प्रभावित
गरियाबंद जिले में है संकेंद्रण, भगवान शिव और माता पार्वती से अपनी उत्पत्ति मानते हैं भुंजिया
गरियाबंद – राजधानी रायपुर के साइंस कालेज में आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में जिले में निवासरत भुंजिया जनजाति के सदस्यों ने छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व करते हुए नृत्य के माध्यम से अपनी जीवन शैली की प्रस्तुति दी है। यहां उन्होंने अपने लाल बंगले की कृति, तीर धनुष के साथ विवाह और अन्य विशेष परंपराओं का प्रदर्शन किया। नृत्य महोत्सव का आयोजन छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर किया गया है। इसमें प्रदेश के 28 राज्य के साथ ही 10 अन्य देशों के आदिवासी समाज के लोग शामिल हुए है।
उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ का गरियाबंद जिला, विशेष पिछड़ी जनजाति भुंजिया का प्रमुख रहवास क्षेत्र है। जिले के लगभग 138 गांव में भुंजिया जनजाति के लोग रहते है, इन गावों में तकरीबन 2 हजार 130 भुंजिया जनजाति परिवार निवासरत है।
इनकी अलग, अनूठी संस्कृति, पारंपरिक रीति रिवाज और रहन सहन के तौर तरीके के कारण ही विषेश पहचान है। ये भगवान शिव और माता पार्वती से अपनी उत्पत्ति मानते हैं, तथा समूह के रूप में रहना पसंद करते है।
जानकारी के मुताबिक़ भुंजिया जनजाति के लोग महुआ के लड़की का विशेष रूप से घर बनाने के लिए भी जाने जाते है। घर बनाने के दौरान आवश्यक रूप से एक बात का ध्यान दिया जाता है की रसोई का कमरा घर के अंदर नहीं बनाते है। इनके घर एक से तीन कमरे के होते है। इसमें माई कुटिया यानी मुख्य कमरा होता और यहां बांगर मिट्टी और पितर को विशेष रूप से रखते है। इसके अलावा डूमा देव और बुधा राजा की बांगर माटी के साथ स्थापना करते है।
भुंजिया जनजाति अपने घर के बाहर एक रसोई घर बनाते है। इसे जनजाति लाल बंगला के नाम से पुकारते है। रसोई घर का बाहरी हिस्सा गाढ़ा लाल होता है। इसे स्थानीय बोलचाल में बगलाल कहा जाता है। इसी से ही लाल बंगला का शब्द आया है। रसोई घर को अंदर गेरू और बाहर को लाल रंग से पुताई करते हैं। लाल बंगला में कोई बाहरी व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकते, केवल परिवार के सदस्य और उसी गोत्र जाति के लोग लाल बंगला में जा सकते हैं। ये अपने लाल बंगले में कोई खिड़की नहीं बनाते है केवल एक प्रवेश द्वार ही बनाए जाता है।
भुंजिया जनजाति की एक अनोखी प्रथा है। इसके अनुसार इस जनजाति की महिला सिंदूर और बिंदी नहीं लगाते है। भुंजिया जनजाति में कांड विवाह प्रचलित है।जिसमें जब बच्ची की उम्र 12 साल हो जाती है, तब धनुष के तीर से विवाह कराया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि जीवन बेहतर हो जाता है ये केवल सफेद वस्त्र का पहनते है। सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक़ इनकी
सर्वाधिक बहुलता जिले के गरियाबंद और मैनपुर ब्लॉक में दिखता है। इसके अलावा जिले के छुरा,फिंगेश्वर, महासमुंद के बाग बहरा और धमतरी जिले में भी इनका रहवास है।