. ऐतिहासिक अमूल्य धरोहर से परिपूर्ण
. लोगों की आस्था का प्रतीक
. पर्यटन स्थल श्री सिद्ध गौरेया धाम चौरेल
CG NEWS : बालोद। 8वीं और 12 वीं सदी की पाषाण मूर्तियां से सुसज्जित प्रदेश का ऐतिहासिक गौरव स्थल और प्राचीन मेले के लिए विख्यात गौरैया धाम , बालोद जिले के गुण्डरदेही ब्लॉक मुख्यालय से 15 किमी दूरी पर तांदुला नदी के तट में स्थित चौरेल गांव में न्यास सिद्ध शक्तिपीठ गौरेया धाम के नाम से संरक्षित है। कई मान्यताओं व किदवंती से परिपूर्ण इस मनोहारी गौरैया धाम की विशेषता प्राकृतिक रूप से विचरण करने वाली गौरैया चिड़िया पर केंद्रित है।
चौरेल गांव में स्थित गौरेया धाम को लेकर क्षेत्र में यह कथा प्रचलित है कि यह स्थान चौरागड़ के नाम से जाना जाता था, यहां भगवान शिव जी तीर्थ भ्रमण इस क्षेत्र में आए और समाधि में लीन हो गए , उठने पर देखा कि गौरैया पक्षी अपने हाथों में चावल लिए उनके भक्ति में लीन हैं, तो उनकी सेवाभाव से प्रसन्न होकर शिव जी ने आशीर्वाद दिया कि तुम मेरा संदेश घर घर में पहुंचाना, इसलिए गौरैया पक्षी चिंव-चिंव मतलब शिव-शिव कर भगवान शिव का स्मरण कर , प्रकृति में शिव नाम कि महिमा का गुणगान करती है। यहां प्राचीन मंदिरों का विशिष्ट समुह है, जिनमें राम-जानकी मंदिर, गणेश मंदिर, भगवान जगन्नाथ मंदिर, ज्योतिर्लिंग दर्शन, दुर्गा मंदिर, राधा कृष्ण मंदिर, पंचमुखी हनुमान मंदिर विद्यमान है। इस प्राचीन मंदिर के आसपास ही बुढ़ादेव मंदिर, संत गुरु घासीदास मंदिर, संत कबीर मंदिर, वैदिक आश्रम इत्यादि प्रमुख प्रसिद्ध मंदिर भी मौजूद है।
साथ ही इस पवित्र धाम में प्राचीन शिवालय होने कारण सावन मास में विशेष रौनक रहती है। यहां सैकड़ों प्राचीन पाषाण अवशेष बिखरे पड़े हैं, जो इतिहास में रूचि रखने वाले लोगों के लिए यह स्थल अत्यंत आकर्षक है। यहां स्थित एक प्राचीन बावली में खुदाई से 8वीं से 12वीं सदी की लगभग 140 पाषाण मुर्तियां प्राप्त हुई है। जिन्हें पुरातत्व विभाग के सहयोग से मंदिर प्रांगण में सुरक्षित रूप में संजोया गया है। छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक परिदृष्टि से यह क्षेत्र कभी फणी नागवंशी शासकों के अधीन था। यहां के मुर्तियों में चांद, तारे, सूरज, चक्र, व हाथ के निशान का अंकन दिखाई देता है। जो फणी नागवंशी शासकों के समकालीन होने की पुष्टि करती है। 2008 में इस पवित्र धाम को राज्य शासन की ओर से पर्यटन स्थल घोषित किया गया है। जहां हर वर्ष माघी पूर्णिमा पर भव्य मेले के आयोजन में विभिन्न अखाड़ों के साधु संत एवं श्रद्धालु गण शाही स्नान के लिए बड़ी संख्या में पहुंच कर आस्था की डुबकी लगाने आते हैं। इस ऐतिहासिक धरोहर स्थल के विषय में जानकारी देते हुए पूजारी जितेंद्र शर्मा ने बताया कि प्राचीन मंदिर के शिवलिंग की विशेषता है कि यहां जितना भी जल अर्पण किया जाता है वह कहीं गायब हो जाता है। जिसका राज अब तक कोई जान नहीं पाया। कई लोग यहां मन्नत लेकर भी आते हैं तो वहीं आसपास ग्रामीण अपनी गहरी आस्था के साथ यहां पहुंचते हैं।