CG NEWS : सक्ती। भक्तिभाव, सामाजिक जागरूता के संदेश, आशीषों से सजे दोहे व गीतों के साथ लोककला की सतरंगी छटा बिखेरने वाली यदुवंशियों की पारंपरिक वेषभूषा में गड़वाबाजा की धुन पर थिरकते हुए शौर्य का प्रदर्शन वाला रावत नाचा व रौताही मेला की रंग अब फीकी पड़ती नजर आ रही है। सक्ती में पुराने समय से चला आ रहा रौताही बाजार अब जिला बनने के बाद होगा भी की नहीं यह संशय है। क्योंकि पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्टेडियम जहां मेला लगता है वहां अब रक्षित आरक्षी केंद्र बना दिया गया है जहां लगभग 80 जवान रह रहे है। हालांकि जन भावनाओं को देखते हुए वहां मेला की अनुमति दे दी गई है और जिस ठेकेदार को टेंडर मिला है वह एक लाख से भी कम है। जबकि ठेकेदार द्वारा मेला ग्राउंड में करीबन डेढ़ सौ दुकान बनाए गए हैं। जिसकी एक दुकान को कीमत पूछने पर दुकानदारों ने 6 हजार से लेकर 12 हजार और उसके भी ऊपर बतलाया है। एक दुकानदार ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि अब पहले जैसे मेला में दम नहीं रहा और खर्च भी बहुत बढ़ गए हैं। वही ग्राहक कम होने के कारण काफी नुकसान भी पड़ता है। नगर पालिका में एक चर्चित ठेकेदार कई वर्षों से यहां पैसा कमाने के लिए यहां अपना अड्डा बनाया हुआ है। वह कम पैसों में ठेका लेकर मेला में दुकानदारों से मोटी रकम वसूली करता है और अगर कोई शिकायत करें तो उसको भी मैनेज करने की कोशिश करता है।
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सक्ती का रौताही बाजार पूरे अंचल में प्रसिद्ध है। गड़वाबाजा, टिमकी, सिंगबाजा, ढोलक, गड़वाबाजा, मोहरी, डफड़ा की धुन के साथ यहां प्रतियोगिता में यदुवंशी थिरकते हुए अपनी कला की प्रस्तुति देते है और बीच-बीच में दोहे गाकर शुभाशीष देते रहे। इससे पूरी रात सक्ती नगर के आयोजन स्थल में मेले लगा होता है। जहां नगरवासी भी रावत नाच महोत्सव में सजी आकर्षक झांकियां और गीतों के साथ पारंपरिक लोकनृत्य का आनंद लेने रतजगा करते है। परंतु दिन-ब-दिन अब मेले की रंगत फीकी पड़ती जा रही है उसके कई कारण है परंतु एक जो मुख्य कारण है वह ये कि रौताही मेले के अंदर लगने वाले दुकानों की कीमत सुनकर दुकानदारों के होश उड़ जाते हैं परंतु मजबूरी वस मेला में दुकान लगाना पड़ता है। इसमें यह मालूम नहीं होता कि वह कितना कमाएंगे कितना बचाएंगे परंतु ठेकेदार द्वारा जो फरमान जारी कर दिया जाता है दुकानदार को उतना किराया उसे देना ही पड़ता है।