छत्तीशगढ़ सरकार द्वारा छत्तीशगढ़ी संस्कृति को संजोने के लिए चलाई जा रही मुहिम का असर अब बच्चे बच्चे भी दिखने लगा है प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल को छेरछेरा माँगते हुए बच्चे बधाई देते हुए भी दिखे , छेर छेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा’ यही आवाज छेरछेरा पर्व पर सोमवार को ग्रामीण अंचलों में गूंजा। इस अवसर पर किसी के घर दान के रूप में धान तो कही चाकलेट तो किसी ने नगद राशि बच्चों व युवाओं को बांटी गई। गरियाबंद में युवाओं ने पारंपरिक वाद्य यंत्र बजाते हुए घर-घर जाकर धान मांगा।
लता सिन्हा ने बताया कि बाबू रेवाराम की पांडुलिपियों से पता चलता है कि कलचुरी राजवंश के कोशल नरेश कल्याणसाय आठ वर्षों बाद जब अपनी राजधानी रतनपुर पहुंचे तो रानी फुलकेना ने र| और स्वर्ण मुद्राओं की बारिश करवाई। रानी ने प्रजा को हर वर्ष इस तिथि पर आने का न्योता दिया। तब से राजा के उस आगमन को यादगार बनाने छेरछेरा पर्व मनाया जा रहा।
गरियाबंद में दान मांगने सभी वर्गों में दिखा उत्साह
गरियाबंद (ग्रामीण)| छेरछेरा पर्व पर बच्चे, जवान व बूढ़े सभी ने टोली बनाकर घर-घर जाकर अन्न का दान मांगा। लोगों ने दान भी दिया। अंचल में इस बार 2640 रुपए क्विंटल धान के कारण छेरछेरा का लोगों में विशेष उत्साह रहा।
पुराना मंगल बाज़ार में बैंड बजाते हुए घर-घर पहुंचीं बच्चों की टोलियां
इस वर्ष अच्छी फसल हाेने से छेरछेरा पर्व पर राैनक दिखाई दी। बच्चे छेरछेरा काेठी के धान हेर हेरा कहते हुए घर-घर पहुंचकर छेरछेरा मांगा। बच्चाें ने टाेलियां बनाकर बैंड पार्टी व कीर्तन मंडली के साथ घरों में सुबह 7 से ११ बजे तक छेरछेरा मांगने पहुंचे। गरियाबंद मालगांव कश सोहागपुर कोचवाय कोकड़ी एवं आसपास के गांवों में बच्चों के साथ बड़ों में उत्साह देखने को मिला योगेश सिन्हा ललित साहू प्रीत सोनी विजय कश्यप अख़्तर ख़ान आदि ने बताया कि किसानो के यहां अच्छी फसल होने के कारण घर-घर जाकर छेरछेरा मांगने गए।
छेरछेरा पर्व पर पैरी नदी में लोगों ने किया पुण्य स्नान
छत्तीसगढ़ के पारंपरिक त्योहारों में से एक छेरछेरा पर्व ग्राम सहित अंचल में मनाया गया। धान की खरीफ फसल की कटाई-मिंजाई के बाद मनाए जाने वाले इस पर्व पर सुबह से ही छोटे बच्चों समेत बड़ों ने टोली बनाकर ढोलक व मांदर के थाप सभी घरों में जाकर छेरछेरा के रूप में धान मांगा।
छत्तीसगढ़ के पारंपरिक त्योहारों में से एक छेरछेरा पर्व ग्राम सहित अंचल में मनाया गया। धान की खरीफ फसल की कटाई-मिंजाई के बाद मनाए जाने वाले इस पर्व पर सुबह से ही छोटे बच्चों समेत बड़ों ने टोली बनाकर ढोलक व मांदर के थाप सभी घरों में जाकर छेरछेरा के रूप में धान मांगा।