सारंगढ़-बिलाईगढ़। CG NEWS : सेना में जल्द से जल्द अहीर रेजिमेंट का गठन किया जाए। जिस दिन इस रेजिमेंट का गठन होगा, उस दिन चीन की रूह कांप जाएगी। इसकी वजह ये है कि 1962 में रिझांग ला चौकी पर 123 अहीर जवानों ने 3,000 चीनी सैनिकों को मार भगाया था। नवंबर 1962 की बात है। जब चीन से जंग खत्म होने के कुछ ही दिनों बाद एक गड़रिया भटकता हुआ चुशूल से रिझांग ला पहुंच गया। उसने देखा कि वहां बर्फ के बीच सैकड़ों लाशें पड़ी थीं।
इसके बाद वह गड़रिया भागते हुए नीचे गया और उसने सेना की एक दूसरी चौकी पर इसकी जानकारी दी। जब उस चौकी से जवान रिझांगला चौकी के पास पहुंचे तो उन्होंने वहां 13 कुमाऊं रेजिमेंट के 123 जवानों की लाशें देखीं। ये सभी जवान नवंबर 1962 में मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में ‘रिझांगला’ चौकी पर तैनात थे। इनमें ज्यादातर जवान अहीर और हरियाणा से थे। 18 नवंबर को चीनी सेना के 3,000 से ज्यादा जवानों ने अचानक से इस चौकी पर हमला कर दिया। इसके बाद दोनों ओर से भयानक गोलीबारी हुई। चौकी पर तैनात सभी जवानों ने आखिरी गोली तक चीनी सैनिकों का सामना किया।
इस जंग में 114 भारतीय जवान शहीद हुए, जबकि 1200 चीनी सैनिक मारे गए। वहीं 9 भारतीय जवानों को चीनी सेना ने बंदी बना लिया था। हालांकि, ये सभी चीनी सेना के कब्जे से भागने में सफल रहे। जब-जब देश पर आक्रमण हुआ, तब-तब जय यादव-जय माधव के नारे की गूंज के साथ अहीर भाइयों ने अपना बलिदान दिया। अब समय आ गया है कि भारतीय फौज में अहीर रेजिमेंट की स्थापना की जाए। अहीर जवानों के शहादत को किया गया नमन।
इसके अलावा 2018 में इसी मांग को लेकर संयुक्त अहीर रेजिमेंट मोर्चा ने 9 दिनों तक भूख हड़ताल की थी। अब इस समुदाय का कहना है कि 4 साल बीतने के बाद भी उनकी मांग पूरी नहीं की गई है।
भारतीय सेना में रेजिमेंट एक ग्रुप होता है। कई रेजिमेंट के ग्रुपों से मिलकर भारतीय सेना बनती है। भारत में रेजिमेंट सबसे पहले अंग्रेजी हुकूमत के दौरान बनीं थी। अंग्रेज अपने शुरुआती समय में समुद्री इलाकों तक ही सीमित थे। इसीलिए उन्होंने सबसे पहले मद्रास रेजिमेंट बनाई। फिर जैसे-जैसे अंग्रेजी शासन का विस्तार होता गया, नई रेजिमेंट बनती गईं।
भारतीय सेना में ज्यादातर व्यवस्थाएं अंग्रेजों के समय से चली आ रही हैं। हमारे पास जो सेना है, उस सेना में अधिकतर व्यवस्थाएं अंग्रेजों की देन है। ब्रिटिश अपनी सेना की एक छोटी सी टुकड़ी और अफसरों के साथ भारत आए थे।
इसके बाद उन्होंने ब्रिटिश सेना में भर्ती की शुरुआत की। जब उन्होंने समुद्री इलाकों से अपना विस्तार करना शुरू किया, तो सबसे पहले अंग्रेजों ने ऐसी जातियों को सेना में शामिल किया, जो जंग के मैदान में खूब बहादुरी से लड़ती थीं। 4 फरवरी से दिल्ली-गुरुग्राम सीमा पर संयुक्त अहीर मोर्चा के बैनर तले बड़ी संख्या में लोग अहीर रेजिमेंट की मांग कर रहे हैं। अहीर रेजिमेंट का समर्थन करने वाले लोगों का तर्क है कि 70 सालों से अहीर समुदाय ने देश के लिए कई बलिदान दिए हैं।
खासतौर पर 1962 के रिझांगला युद्ध में 13 कुमाऊं के 120 जवान अहीर समुदाय से ही थे, जिन्होंने बहादुरी से दुश्मन का सामना किया और देश के लिए शहादत दी। अहीर रेजिमेंट की मांग करने वाले लोगों का कहना है कि अहीर रेजिमेंट बनाकर शहादत देने वाले लोगों को सही सम्मान दिया जाए।
सामाजिक कार्यकर्ता