ग्रैंड न्यूज़ डेस्क। Serious Disease : लखनऊ से 178 किमी दूर शाहजहांपुर जिला है। यहां बड़ागांव में एक परिवार के 8 लोगों को गंभीर बीमारी हो गई है। ऐसी बीमारी जिसमें लोगों के शरीर का रंग लगातार काला पड़ता जा रहा है। शरीर में जलन हो रही है। हाथ-पैर की उंगलियां टेढ़ी हो रही हैं। कुछ समय बाद हाथ-पैर की नर्व डैमेज हो जाती है फिर वो काम करना बंद कर देते हैं। बीमारी एक-दूसरे में तेजी से फैल भी रही है।
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बीमारी से 16 जनवरी को परिवार की एक बेटी की मौत हो गई है। बाकी अस्पताल में भर्ती हैं। घर में सबसे पहले ये बीमारी लाया कौन? ये कैसी बीमारी है जिसे देखकर डॉक्टर्स हैरान हैं। क्या इसका इलाज संभव है? ये सवाल लेकर हम शाहजहांपुर के मेडिकल कॉलेज जिला अस्पताल और उस गांव पहुंचे जहां के लोगों ने इस परिवार को अछूत करार दे दिया है। दूर भागने लगे हैं। हमने बीमारी से पीड़ित मरीजों से बात की। स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स से बात की।
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शाहजहांपुर हॉस्पिटल में भर्ती 34 साल के श्रीपाल को यह गंभीर बीमारी है। वह कहते हैं, “मैं अपने गांव के चौराहे पर चाट-समोसे बेचता हूं। 6 महीने पहले मुझे खुजली हुई। मैंने गांव के ही डॉक्टर से दवाई ली। आराम नहीं मिला। फिर धीरे-धीरे खुजली बढ़ती गई। हाथ-पैर में कंकड़ जैसे काले-सफेद दाने निकलने लगे। दानों से पानी निकलने लगा। फिर वो दाने और बड़े होते गए। काले पड़ने लगे।
बहन को मैंने बीमारी दी, मौत का जिम्मेदार मैं
श्रीपाल ने आगे कहा, मेरी बीमारी के कुछ दिनों बाद मेरी 15 साल की बहन को भी इसी यही बीमारी हो गई। हमारे घर में ओढ़ने-बिछाने की कम चीजें हैं। सब एक दूसरे के बिस्तर में सो जाते हैं। शायद इसीलिए ये बीमारी उसको लग गई। धीरे-धीरे बहन की बीमारी बढ़ती गई और फिर 2 महीने के अंदर ही उसकी मौत हो गई। आखिरी समय में वो घिसट- घिसट कर चलने को मजबूर हो गई थी। श्रीपाल ने रोते हुए कहा, उसकी मौत मेरे फैलाए इन्फेक्शन की वजह से ही हुई है।”
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मां-बाप भी इन्फेक्टेड, जमीन पर घिसटने को मजबूर
श्रीपाल ने आगे कहा, “मेरी बहन के साथ पिता सियाराम भी इस बीमारी से ग्रसित हो गए। इसके बाद मेरी मां बीमार हो गई। उनके पूरे शरीर में खुजली होनी शुरू हुई। फिर हाथ की गदेली और पैर के तलवों में सफेद चित्ते बनने लगे। धीरे-धीरे वो चित्ते काले पड़ने लगे। हाथ पैर की उंगलियां टेढ़ी होने लगीं। गांव के डॉक्टर के बाद हमने पास के कस्बे पुवायां में डॉक्टर को दिखाया लेकिन आराम नहीं मिला। आज वो जमीन पर घिसट-घिसट कर चलने को मजबूर हैं।”
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भाई चल नहीं पा रहा, हाथ-पैर काले, उंगलियां टेढ़ी हो गईं
श्रीपाल कहते हैं, “इस बीमारी से ग्रसित होने के बाद हम किसी काम के नहीं बचे। हम सबके बाद मेरा छोटा भाई अवधेश ही पूरे घर की जिम्मेदारी उठा रहा था। लेकिन, कुछ दिनों बाद उसमें भी इसके लक्षण दिखने लगे। जब उसका शरीर कमजोर पड़ना और उंगलियां हल्की टेढ़ी होनी शुरू हुईं तो फिर वो हम सबको लेकर बाराबंकी आया। कुछ दिन एक प्राइवेट डॉक्टर से इलाज करवाया लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ।”
बहन और दोनों बच्चों के शरीर से पानी बह रहा है
श्रीपाल बताते हैं “नवंबर के महीने में हम सबके बाद मेरी 11 साल की छोटी बहन सीमा, 5 साल का बेटा अनुज और 4 साल की बेटी रीमा भी इंफेक्टेड हो गई है। उनको भी तेज खुजली होनी शुरू हुई अब सबके शरीर काले पड़ने लगे हैं। उंगलियां टेड़ी होने लगी हैं। मेरे बच्चे बहुत परेशान हैं। उन्होंने अब खेलना भी बंद कर दिया है। दिनभर बेबस से पड़े रहते हैं। हम सब मर जाएंगे हमें बचा लो।”
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घर में खाने को नहीं, गांव वाले देखते ही दूर भागते हैं
श्रीपाल कहते हैं, “हमारे पास 2 बीघा जमीन है। जितने भी पैसे जमा थे दवाइयों में सारे खर्च हो गए। अब हमारे बच्चे खाएंगे क्या, आगे का इलाज कैसे कराएंगे कुछ समझ नहीं आ रहा। गांव में सभी ने दूरियां बनानी शुरू कर दी हैं। कोई हमसे बात करना भी पसंद नहीं करता। हमारे हाथ-पैरों ने काम करना बंद कर दिया है। अब खेती करके भी नहीं खा सकते।”
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पत्नी ने कहा- अंदर के शरीर की हालत बता नहीं सकती
श्रीपाल की पत्नी देवरानी से बात करने की कोशिश की। कुछ देर तक उनके मुंह से एक शब्द नहीं निकला। फिर रोते हुए ऑफ कैमरा बताया, “एक हफ्ते पहले इस बीमारी ने मेरी ननद को खा लिया। मुझे लगता है ये बीमारी महिलाओं के लिए ज्यादा खतरनाक है। अपने आखिरी दिनों में ननद मुझे अपना दर्द बताती थी। तब मैं ज्यादा बीमार नहीं थी तो उसका दर्द समझ नहीं पाई।”
देवरानी ने आगे कहा, “सबसे पहले मेरा शरीर काला पड़ाने लगा था। तो मुझे कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ा लेकिन अब हालत बदतर हो गई है। आपको बस काला चेहरा दिखाई दे रहा है लेकिन अंदर से मेरी हालत क्या है ये मैं बयां नहीं कर सकती। जलन होती है, दर्द होता है। एक कदम चला नहीं जाता। अब मुझे अपनी 15 साल की ननद के दर्द का एहसास हो रहा है। जिस तरह वो हमें छोड़ गई अब शायद मेरी बारी है। हमें बचा लीजिए।”
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मेडिकल कॉलेज अस्पताल के 7 डॉक्टर कर रहे इलाज
बाराबंकी के इलाज से ठीक नहीं हुए तो श्रीपाल कहते हैं कि गांव लौट कर पुवायां के सरकारी अस्पताल गए। वहां भर्ती होने के बाद डॉक्टर ने हमें जिला अस्पताल रेफर कर दिया। तब से हम यहीं भर्ती हैं। पिता जी और बच्चों का घर में इलाज चल रहा है। अब तक 6 से 7 डॉक्टरों ने हमारी जांच कर ली है। बीमारी का पता लगाने डॉक्टर्स की टीम हमारे गांव भी गई थी।