बस्तर। जिले में सिलसिलेवार माओवादियों द्वारा जनप्रतिनिधियों की हत्या के चलते माओवादियों की दहशत फिर कायम हो गई है। लंबे समय से शांत चल रहे माओवादियों ने सिलसिलेवार पंचायत प्रतिनिधियों को निशाना बनाया है और इनमें तीन भारतीय जनता पार्टी के नेता है। इन हत्याओं के पीछे पुलिस का दावा है, कि बौखलाए नक्सली अपना दबदबा कायम करने इस तरह की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा नेताओं की हत्या का मामला लोकसभा में उठने के बाद बस्तर में नक्सलवाद पर अंकुश लगाने की कोशिशों पर भी सवालिया निशान उठने लगे है।
पंचायत प्रतिनिधियों को बना रहे निशाना
बस्तर में फिर एक बार नक्सलियों का खूनी खेल शुरू हो गया है। इस बार सुरक्षा बल के जवान निशाने पर नहीं है। इसकी जगह माओवादियों ने सॉफ्ट टारगेट के तौर पर पंचायत प्रतिनिधियों को निशाना बनाना शुरू किया है। यह पंचायत प्रतिनिधि ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं, जहां सुरक्षा 24 घंटे में मौजूद नहीं रहती। इसी का फायदा उठाकर सिलसिलेवार हत्याएं हो रही हैं। हत्याओं के पैटर्न में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की हत्या ज्यादा हुई है। लिहाजा मामले में सियासत गर्म है और भारतीय जनता पार्टी से टारगेट किलिंग का नाम दे रही है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि माओवादी इन हत्याओं से क्या हासिल करना चाहते हैं। मारे गए नेताओं के पास छोड़े गए परचो में पुलिस मुखबिरी, माओवादियों के खिलाफ सक्रियता को वजह बताया गया है, लेकिन अक्सर हत्याओं के पीछे सिर्फ इतनी ही वजह नही होती है।
कानून व्यवस्था को लेकर उठे सवाल
केंद्र में भाजपा और राज्य में कांग्रेस बस्तर में नक्सल हिंसा के कम होने का दावा कर रही है, वहीं माओवादियों ने एक बार फिर इन हत्याओं के जरिए अपनी मजबूत उपस्थिति का इजहार किया है। सुरक्षा नेटवर्क को धता बताते हुए हो रही इन हत्याओं पर कानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठ रहे हैं। पुलिस ने दावा किया है कि लगातार मुठभेड़ों में मारे जा रहे और पुलिस की आक्रामक रणनीति से नाकाम हो रहे नक्सली बौखलाए हुए हैं और बौखलाहट में ही वे सॉफ्ट टारगेट को निशाना बना रहे हैं।