supreme court : सुप्रीम कोर्ट बुधवार को 24 फरवरी को देशभर में छात्राओं और कामकाजी महिलाओं के लिए पीरियड्स के दौरान छुट्टी का नियम बनाने की याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया। शीर्ष अदालत से अनुरोध किया गया है कि राज्य सरकारों को पीरियड्स की छुट्टी के लिए नियम बनाने का निर्देश दिया जाए। याचिका में मातृत्व लाभ अधिनियम की धारा 14 के प्रभावी कार्यान्वयन की मांग की गई है, जिसमें अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए निरीक्षकों की नियुक्ति शामिल है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष एडवोकेट विशाल तिवारी द्वारा याचिका डाली गई है। बेंच इस मामले की सुनवाई के लिए सहमत हो गई है। इसके अलावा याचिका में इविपनन, जोमैटो, बायजूज और स्विगी जैसी कुछ कंपनियों का भी जिक्र किया गया है, जहां वे पेड पीरियड लीव मुहैया कराती हैं।
पूर्व का हवाला देते हुए, जनहित याचिका (पीआईएल) में कहा गया है कि मेघालय ने ऐसे अधिकारियों की नियुक्ति के लिए 2014 में एक अधिसूचना जारी की थी और बिहार भारत का एकमात्र राज्य था जिसने 1992 की नीति के तहत स्पेशल पीरियड लीव प्रदान की की थी। राज्यों द्वारा पीरियड लीव देने से इनकार को संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करार दिया गया।
याचिका में कहा गया, “यह अनुच्छेद-14 का उल्लंघन है। महिलाएं अपने मासिक धर्म के दौरान शारीरिक और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीड़ित होती हैं और भारत के विभिन्न राज्यों में उनके साथ अलग तरह से व्यवहार किया जाता है। हालांकि, महिलाओं, जिनकी एक नागरिकता है, यानी भारत की, उनके साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए और समान अधिकार दिए जाने चाहिए, नहीं तो यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। इसके अलावा, यह भी कहा गया है कि ब्रिटेन, चीन, जापान, ताइवान, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, स्पेन और जाम्बिया जैसे देश पहले से ही महिलाओं को किसी न किसी रूप में पीरियड लीव प्रदान कर रहे हैं।