गरियाबंद के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल भूतेश्वर नाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों की तरह छत्तीसगढ़ में एक अर्धनारीश्वर प्राकृतिक शिवलिंग भूतेश्वर महादेव के नाम से विख्यात है।महाशिवरात्रि का पर्व आज प्रदेशभर में धूमधाम से मनाया जा रहा है. गरियाबंद जिले में विराजित विश्व प्रसिद्ध भूतेश्वरनाथ में भी महाशिवरात्रि की धूम है. दूर-दूर से लोग भगवान भूतेश्वरनाथ के दर्शन-पूजन करने पहुंचे हैं. मान्यता है कि भूतेश्वरनाथ शिवलिंग आज भी बढ़ रहा है. हरी-भरी प्राकृतिक वादियों के बीच गरियाबंद से महज 3 किलोमीटर दूर अद्भुत अकल्पनीय सा दिखता यह शिवलिंग शिव भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है.
सावाँन माह में जल चढ़ाने लगता है लाखों कावड़ियो का ताँता
यहां दूर-दूर से भक्त जल लेकर भगवान शिव अर्पित करने पहुंचे हैं. भोले बाबा भी उनकी मन मांगी मुराद जरूर पूरी करते हैं. यही कारण है कि बीते 8 -10 सालों में यहां पहुंचने वाले भक्तों की संख्या में कई गुना बढ़ गई है. महाशिवरात्रि के दिन लगभग 50 हजार से अधिक श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. वही सावनभर यहां भक्तों और कांवरियों का रेला लगा रहता है. द्वादष ज्योतिर्लिगों की भांति छत्तीसगढ़ में यह एक विशाल प्राकृतिक शिवलिंग है, जो विश्व प्रसिद्ध विशालतम शिवलिंग के नाम से प्रसिध्द है. ऐसी मान्यता है कि यह शिवलिंग हर साल अपने आप में बढ़ता जा रहा है. छत्तीसगढ़ी भाषा में हुकारने की आवाज को भकुर्रा कहते हैं. इसी से छत्तीसगढ़ी में इनका नाम भकुर्रा पड़ा है. यहां हर वर्ष महाशिवरात्रि और सावन माह पर्व पर मेले जैसा माहौल रहता है. यहां पर दूर दराज से भक्त आकर महादेव की अराधना करते हैं. भगवान भूतेश्वरनाथ घने जंगलो के बीच ग्राम मरौदा में विराजमान है.
शिवलिंग की पौराणिक महत्व
इस शिवलिंग के बारे में बताया जाता है कि आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व जमीदारी प्रथा के समय पारागांव निवासी शोभासिंह जमींदार की यहां पर खेती बाडी थी. शोभा सिंह शाम को जब अपने खेत में घुमने जाता था तो उसे खेत के पास एक विशेष आकृति नुमा टीले से सांड के हुंकारने (चिल्लानें) एवं शेर के दहाडनें की आवाज सुनाई देती थी. अनेक बार इस आवाज को सुनने के बाद शोभासिंह ने उक्त बात ग्रामवासियों को बताई. ग्रामवासियों ने भी शाम को उक्त आवाजे अनेक बार सुनी. आवाज करने वाले सांड अथवा शेर की आसपास खोज की, लेकिन दूर दूर तक किसी जानवर के नहीं मिलने पर इस टीले के प्रति लोगों की श्रद्वा बढ़ने लगी और लोग इस टीले को शिवलिंग के रूप में मानने लगे. इस बारे में पारागावं के लोग बताते है कि पहले यह टीला छोटे रूप में था. धीरे धीरे इसकी उचाई एवं गोलाई बढ़ती गई, जो आज भी जारी है. इस शिवलिंग में प्रकृति प्रदत जललहरी भी दिखाई देती है. जो धीरे धीरे जमीन के उपर आती जा रही है.
1959 गोरखपुर से प्रकाषित धार्मिक पत्रिका कल्याण के वार्षिक अंक के पृष्ट क्रमांक 408 में है उल्लेखित
इस शिवलिंग का पौराणिक महत्व सन 1959 में गोरखपुर से प्रकाषित धार्मिक पत्रिका कल्याण के वार्षिक अंक के पृष्ट क्रमांक 408 में उल्लेखित है, जिसमें इसे विश्व का एक अनोखा महान एवं विषाल शिवलिंग बताया गया है. यह जमीन से लगभग 72 फीट उंचा एवं 210 फीट गोलाकार है. यहां मान्यता है कि सच्चे मन से जो भी मनोकामना की जाती है वह पूरी होती है.
इसलिए पड़ानाम
यह समस्त क्षेत्र गिरी (पर्वत) तथा वनों से आच्छादित है. इसे गिरिवन क्षेत्र कहा जाता था, लेकिन कालांतर में गरियाबंद कहलाया जाता है.गाँव के बुजुर्गों का कहना हैं कि पहले यह टीला छोटे रूप में था। धीरे-धीरे इसकी ऊंचाई व गोलाई बढ़ती गई। जो आज भी जारी है। भूमि, जल, अग्नि, आकाश और हवा पंचभूत कहलाते हैं. इन सबके ईश्वर भूतेश्वर हैं. समस्त प्राणियों का शरीर भी पंचभूतों से बना है. इस तरह भुतेश्वरनाथ सबके ईश्वर हैं. उनकी आराधना/ सम्पूर्ण विष्व की आराधना है. भुतेश्वरनाथ प्रांगण अत्यंत विशाल है. यहां पर श्री गणेश मंदिर, श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर, श्री राम जानकी मंदिर, यज्ञ मंडप, दो सामुदायिक भवन, एक सांस्कृतिक भवन तथा बजरंग बली का मंदिर है. भुतेश्वरनाथ समिति तथा अनेक श्रध्दालुओं द्वारा यह निर्माण हुए हैं, जो भुतेश्वरनाथ धाम को भव्यता प्रदान करते हैं. वन आच्छादित सुरम्य स्थलि बरबस मन को मोह लेती है, समय-समय पर यहां भक्तजन रूद्राभिषेक कराते हैं. हर महीने यहां भक्तजनों का तांता लगा रहता है.