ग्रैंड न्यूज़ डेस्क। Holika Dahan 2023 : हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाता है, इसके बाद ही अगले दिन प्रतिपदा तिथि को रंगों की होली खेली जाती है. होलिका दहन के लिए प्रदोष काल का समय अच्छा माना जाता है. 2023 में होलिका दहन कब है 6 मार्च को या 7 मार्च को? इस बात को लेकर कंफ्यूजन है. इस संशय का कारण है दो दिन पूर्णिमा तिथि का पड़ना. 6 और 7 मार्च दोनों ही दिन पूर्णिमा तिथि पड़ने के कारण लोग इस बात को लेकर संशय में हैं कि होलिका दहन की सही डेट क्या है और होली 2023 कब है? यहां ज्योतिषाचार्य से जानें होलिका दहन 6 मार्च या 7 मार्च कब है? साथ ही होली 2023 में कब मनाना उचित है।
फाल्गुन मास 2023 की पूर्णिमा तिथि का आरंभ 6 मार्च को
फाल्गुन मास 2023 की पूर्णिमा तिथि का आरंभ 6 मार्च को शाम से होगा. इसके कारण प्रदोष व्यापिनी व्रत की पूर्णिमा का मान रहेगा और पूर्णिमा तिथि 7 मार्च को संध्याकाल तक रहेगा, उदया तिथि को माननेवाले 7 मार्च को पूर्णिमा तिथि मान रहे हैं, भद्रा के बारे में बात करें तो भद्रा काल 6 मार्च 2023 को शाम 4 बजकर 48 मिनट से 7 मार्च 2023 को सुबह 5 बजकर 14 मिनट तक रहेगा. ऐसे में 7 मार्च को भद्रा का साया समाप्त होने के बाद इसी दिन होलिका दहन किया जायेगा. होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 7 मार्च 2023 को शाम 6 बजकर 24 मिनट से रात 8 बजकर 51 मिनट तक है।
होलिका दहन मंगलवार, 7 मार्च 2023 को
होलिका दहन मुहूर्त – 06:24 शाम से 08:51 रात तक
कुल अवधि – 02 घंटे 27 मिनट
भद्रा पुंछा – 12:43 AM से 02:01 AM
भद्रा मुख – 02 बजकर 01 मिनट से 04 बजकर 11 मिनट तक
उदय व्यापिनी पूर्णिमा के बिना प्रदोष के दौरान होलिका दहन
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ – 06 मार्च 2023 को शाम 04:17 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – 07 मार्च 2023 को शाम 06:09 बजे
रंग वाली होली 8 मार्च
होलिका दहन पूजा सामग्री और विधि
होलिका दहन की पूजा और उसमें अग्नि प्रज्जवलित हमेशा शुभ मुहूर्त में करना चाहिए. होलिका दहन की पूजा के लिए सबसे पहले पूर्व दिशा में मुंह करके होलिका को जल, रोली, अक्षत, फूल, पीली सरसों, गुलाल और मिष्ठान अर्पित करें. साथ ही नई फसल यानी कि गेहूं और चने की बालियां चढ़ाएं. इसके बाद होलिका की सात बार परिक्रमा करें.
- होलिका दहन के शुभ अवसर पर होलिका जलाने के लिए जहां पर लकड़ी इक्ट्ठी की जाती है वहां जा कर पूजा करें.
- होलिका के लिए तैयार किये गये लकड़ी को सफेद धागे या मौली (कच्चा सुत) से तीन या सात बार लपेटें.
- फिर उस पर पवित्र जल, कुमकुम और फूल छिड़क कर पूजा करें.
- पूजा पूरी होने के बाद शाम को होलिका जलाया जाता है.
- इस दिन, भक्त प्रह्लाद की भगवान विष्णु की भक्ति की जीत का जश्न मनाते हैं.
- लोग होलिका पूजा भी करते हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यह सभी के घर में समृद्धि और धन लाती है.
- यह पूजा लोगों को अपने सभी डर से लड़ने की शक्ति भी देती है.
- होलिका दहन की पूजा के दौरान नारियल के साथ पान और सुपारी अर्पित करना चाहिए. इससे सोया भाग्य जाग सकता है.
- घर की नकारात्मकता दूर करने और परिवार के लोगों के जीवन की हर परेशानी को दूर करने के लिए होलिका दहन के दिन एक नारियल लें. इसे अपने और परिवार के लोगों पर सात बार वार लें. इसके बाद होलिका दहन की अग्नि में इस नारियल को डाल दें और सात बार होलिका की परिक्रमा करें.
- होलिका दहन के दिन गरीबों और जरूरतमंदों को अपने सामर्थ्य के अनुसार दान जरूर करें. इससे जीवन में आने वाले संकट दूर हो जाते हैं.
होलिका दहन में न करें इन लकड़ियों का इस्तेमाल
पीपल, बरगद, शमी, आंवला, नीम, आम, केला और बेल की लकड़ियों का प्रयोग होलिका दहन के दौरान कभी नहीं किया जाना चाहिए. हिंदू धर्म में इन पेड़ों को काफी पवित्र और पूज्यनीय माना गया है. इनकी पूजा की जाती है और इनकी लकड़ियों का प्रयोग यज्ञ, अनुष्ठान आदि शुभ कार्यों के लिए किया जाता है. होलिका दहन को जलते हुए शरीर का प्रतीक माना जाता है, इसलिए इस कार्य में इन लकड़ियों का उपयोग नहीं करना चाहिए.
होलिका दहन कथा और महत्व
होली की उत्पत्ति प्राचीन हिंदू पौराणिक कथाओं में देखी जा सकती है. माना जाता है कि इस त्योहार की शुरुआत होलिका और प्रह्लाद की कथा से हुई थी. पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद को भगवान विष्णु ने अपने पिता हिरण्यकश्यप के बुरे इरादों से बचाया था. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को एक वरदान प्राप्त था जिससे वह आग से प्रतिरक्षित हो गई थी. उसने प्रह्लाद को मारने के लिए इस वरदान का उपयोग करने की कोशिश की, जबकि वह जलती हुई आग में बैठी थी. हालांकि, आग ने प्रह्लाद को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया और होलिका आग की लपटों में भस्म हो गई. बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व होली के पहले दिन मनाया जाता है, जिसे होलिका दहन के नाम से जाना जाता है।