बिलासपुर : CG BIG NEWS : छत्तीसगढ़ के बिलासपुर हाई कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि परीविक्षाधीन कर्मचारियों को अपना पक्ष शासन के समक्ष रखने का अधिकार है। सेवा से हटाने से पहले उनका पक्ष सुना जाना चाहिए। बिना सुनवाई कर्मचारी की सेवामुक्ति का आदेश उचित नहीं है। हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के न्याय दृष्टांत का हवाला देते हुए शासन के आदेश को रद कर दिया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सेवा में बहाल करने का निर्देश शासन को दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि राज्य शासन चाहे तो नियमानुसार विभागीय जांच की कार्रवाई प्रारंभ करने के लिए स्वतंत्र है।
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अरविंद कुमार तिवारी ने अपने अधिवक्ता अजय श्रीवास्तव के जरिए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि उसकी नियुक्ति व्याख्याता अंग्रेजी के रूप में एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय अंतागढ़ जिला दक्षिण बस्तर कांकेर में दो वर्ष की परीवीक्षा अधीन 25 नवंबर 2011 को हुई थी। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि सेवाकाल के दौरान उसे छात्रों के हित के विपरीत कार्य करने के लिए प्रबंधन द्वारा लगातार दबाव डाला जा रहा है। उसने ऐसा करने से इन्कार कर दिया। उसकी मनाही के बाद प्रबंधन नाराज रहने लगा और सेवा से हटाने हेतु विभिन्न् आरोप लगाते हुए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। नोटिस का उसने जिसका विधिवत जवाब पेश किया था। किंतु जवाब पर विधिवत जांच एवं विचार किये बिना उसे सेवा से हटा दिया गया।
इस आदेश के खिलाफ आयुक्त आदिम जाति विकास विभाग में अपील पेशकी थी। परीविक्षाधीन कर्मचारियों को अपील करने का अधिकार ना होने की बात कहते हुए आयुक्त ने अपील पर सुनवाई से इन्कार कर दिया और सेवा बर्खास्तगी के आदेश को उचित ठहरा दिया। मामले की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे के सिंगल बेंच में हुई। प्रकरण की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अजय श्रीवास्तव ने पैरवी करते हुए कहा कि सामान्य परिस्थिति में परीविक्षाधीन कर्मचारी को सेवा से हटाने के पूर्व सुनवाई का अधिकार नहीं है। किंतु यदि दोषारोपण के साथ सेवा से हटाया जाता है तो पूर्ण जांच एवं सुनवाई का अवसर दिया जाना है। यह कर्मचारी का अधिकार भी बनता है।
मामले की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे के सिंगल बेंच में हुई। जस्टिस दुबे ने सर्वोच्च न्यायालय के न्याय दृष्टांत का हवाला देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को दोषारोपण के साथ सेवा से हटाया गया है एवं उनके द्वारा दिये गये जवाब को भी विचार में नहीं लिया गया। कर्मचारी पर दोषारोपण करते हुए सेवा से हटाया जाता है तो उसे अपनी बात रखने और पक्ष रखने का अवसर दिया जाना आवश्यक है। संबंधित मामले में याचिकाकर्ता को बिना किसी जांच और उनका पक्ष सुने एकतरफा कार्रवाई करना न्यायोचित नहीं है। लिहाजा सेवा से हटाने के आदेश को निरस्त किया जाता है। याचिकाकर्ता को सेवा में बहाल करने का आदेश देते हुए कोर्ट ने कहा कि बहाली के बाद शासन चाहे तो याचिकाकर्ता के खिलाफ विभागीय जांच की प्रक्रिया प्रारंभ कर सकता है।