बेमेतरा : CG NEWS : अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कि बेमेतरा के संडी स्थित सिद्धि माता मंदिर में बलि प्रथा पर पूर्णतः रोक लगे. पिछले कई वर्षों से क्षेत्र के अनेक नागरिक इस स्थल पर रोक लगाने की मांग कर रहे है.यहाँ तक कि मंदिर समिति भी अब पशुबलि पर रोक के लिए सहमत हो गयी है.अब इस कुप्रथा पर प्रभावी रोक लगना चाहिए.
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डॉ दिनेश मिश्र ने कहा प्रदेश में राज्य सरकार के धर्मस्व एवं न्यास विभाग के आदेश के बावजूद कुछ स्थानों पर पशुओं की बलि चढ़ाये जाने की परंपरा जारी है, जबकि राज्य में पशुबलि निषेध अधिनियम लागू है तथा राज्य शासन के धर्मस्व एवं न्यास विभाग द्वारा पशुबलि पर रोक के लिए लिखित में आदेश भी जारी किया जा चुका है इसके बाद भी पशुबलि की परंपरा का जारी रहना उचित नहीं है। देश के अनेक धार्मिक स्थलों में आज भी विभिन्न धार्मिक अवसरों पर पशुओं के बलि देने की परंपरा कायम है जबकि किसी भी धर्म ने हिंसा को मान्यता नहीं दी है। सभी धर्म प्रेम और अहिंसा पर चलने की ही सीख देते हैं फिर भी कुछ पुरातन मान्यताओं का सहारा लेकर पशुबलि की घटनाओं के समाचार मिलते हैं।
डॉ. दिनेश मिश्र ने बताया कि बेमेतरा के संडी स्थित सिद्धि माता मंदिर परिसर में सैकड़ो पशुओं की बलि चढ़ती है। जिससे महौल ,अशांत परिसर अपवित्र, रक्तरंजित होता है । उक्त बलि प्रथा का विरोध पूर्व में अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति द्वारा किया जा चुका है, साथ ही कबीरपंथी ,सर्वसमाज ने भी इसका विरोध किया है तथा ज्ञापन सौंपा है, अब मंदिर समिति भी अब पशुबलि पर रोक के लिए सहमत है अतएव प्रशासन को सहयोग कर बलि की इस कुपरम्परा पर रोक लगने के लिए मदद करनी चाहिये. अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति बलि प्रथा के खिलाफ अनेक वर्षों से कार्य कर रही है। वहीं राज्य सरकार के धर्मस्व एवं न्यास विभाग से पशुबलि रोकने कई बार आग्रह भी किया गया है. जिसे गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार के धर्मस्व विभाग द्वारा सितम्बर 2010 में प्रदेश के सभी देवी मंदिरों में बलि प्रथा पर रोक लगाने का आदेश जारी किया गया है.
डॉ. मिश्र ने कहा कि छत्तीसगढ़ में पशुबलि प्रतिषेध अधिनियम 1989 के तहत पशु बलि प्रतिबंधित है और इसके उल्लंघन पर तीन महीने की जेल या जुर्माने का प्रावधान है. राज्य के कई धार्मिक स्थलों पर भैंसा और बकरे की बलि देने की परंपरा रही है. समिति के प्रयासों से पिछले वर्षों में अनेक स्थानों पर पशुबलि की परंपरा बंद हो गई है। सभी धर्मों एवं धार्मिक स्थानों में ऐसे निर्णय लिए जाने चाहिए ताकि धर्म के नाम पर निरीह पशुओं को मारने पर अंकुश लग सके।.
डॉ दिनेश मिश्र ने कहा बिना किसी खून खराबे ,बलि के भी पूजा, अर्चना सम्पन्न की जा सकती है. पुष्प, फल, अनाज नारियल, धन का दान देकर भी अनुष्ठान किये जा सकते हैं. अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए निर्दोष पशुओं की जान लेना किसी भी तरह से पुण्य कमाने का कार्य नही हैं.