BIG NEWS : संयुक्त राष्ट्र (UN) के वरिष्ठ अधिकारी ओवेस सरमद (Ovais Sarma) ने कहा कि 10 दिन पहले जारी की गई जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की सिंथेसिस रिपोर्ट (IPCC) सभी देशों के लिए आंखें खोलने वाली है. उन्होंने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए देश जिन प्रतिबद्धताओं पर सहमत हुए हैं वे काफी नहीं हैं. भारत में जन्मे ओवेस सरमद अभी जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के डिप्टी एक्जीक्यूटिव सेकेट्री के पद पर तैनात हैं. उन्होंने कहा कि दुबई में होने वाली COP की अगली बैठक ‘बेहद महत्वपूर्ण’ होने वाली है और उम्मीद जतायी कि सभी देश इस मौके का इस्तेमाल ‘प्रक्रिया में आवश्यक सुधार’ करने के लिए करेंगे।
केरल के इस खूबसूरत गांव में वर्तमान में चल रही जी20 शेरपा बैठक से इतर सरमद ने अपने इंटरव्यू में कहा कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) किसी भौगोलिक सीमा तक सीमित नहीं है और उन्होंने देशों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को सीमित करने के लिए अपनी भूमिका निभाने का आह्वान किया।
IPCC की चौंकाने वाली रिपोर्ट
आईपीसीसी की 10 मार्च को जारी रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि करीब 3.3 से 3.6 अरब लोग जलवायु परिवर्तन से बहुत प्रभावित हो सकते हैं और उनके बाढ़, सूखा तथा तूफान से जान गंवाने की आशंका 15 गुना अधिक है. सरमद ने कहा, ‘आईपीसीसी की हालिया रिपोर्ट आंख खोलने वाली है. हम इसके बारे में जानते थे कि हम ग्लोबल वार्मिंग के मामले में सही दिशा में नहीं हैं. आईपीसीसी ने ठीक यही संदेश दिया है और उन्हें (राष्ट्रों को) जो करने की जरूरत है वे मूल रूप से बहुत आसान है. सरल शब्दों में कहें तो उन्हें सभी क्षेत्रों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को रोकना होगा।
फौरन बड़ा कदम उठाने की जरूरत
यह पूछे जाने पर कि क्या राष्ट्र जिन प्रतिबद्धताओं पर सहमत हुए हैं, वे चुनौती से निपटने के लिए पर्याप्त हैं? उन्होंने कहा कि वे ‘बिल्कुल पर्याप्त नहीं हैं’ और यही बात आईपीसीसी की रिपोर्ट में कही गई है. संयुक्त राष्ट्र के अधिकारी ने कहा कि वैश्विक तापमान में वृद्धि को सीमित करने के लिए देशों की प्रतिबद्धताएं पर्याप्त नहीं हैं. उन्होंने कहा कि यूएनएफसीसीसी यह सुनिश्चित करने के लिए सभी देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है कि वे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को दूर करने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की सीमा निर्धारित करने को लेकर काफी महत्वाकांक्षी हों।
डूब जाएंगे दुनिया के कई शहर
भारत जैसे बहुत अधिक आबादी वाले देशों के लिए समुद्री जल स्तर में वृद्धि के खतरे पर किए गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि इस खतरे से निपटने के लिए ऐसे कदम उठाने की जरूरत है जो निचले इलाकों में रहने वाले समुदायों के अनुकूल और लचीले हों.रिपोर्ट के अनुसार, समुद्री जल स्तर में 1971 और 2006 के बीच प्रति वर्ष 1.9 मिलीमीटर बढ़ोतरी की तुलना में 2006 और 2018 के बीच 3.7 मिलीमीटर प्रति वर्ष की वृद्धि हुई. इसके चलते भारत जैसे देशों को एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.
वहीं, सरमद ने कहा कि जलवायु परिवर्तन किसी भौगोलिक सीमा तक सीमित नहीं रहता और किसी भी अन्य देश की तरह भारत को भी भूमिका निभानी होगी. उन्होंने कहा कि भारत को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को सीमित करने, वहीं उसी समय जिम्मेदारी पूर्ण तथा प्रामाणिक तरीके से विकास करने की दिशा में और अधिक महत्वाकांक्षी होना चाहिए.