Reservation : वास्तव में आरक्षण क्या है? क्यों है? होना चाहिए कि नहीं? इसके परिणाम क्या होंगे इसे जानने के लिए इस आलेख को पूरी ईमानदारी से, बिना पूर्वाग्रह से ग्रसित हुए बिना समझना आवश्यक है। ताकि आप जब आरक्षण के संबंध में कोई तर्क या वितर्क करें तो आपका वितर्क कुतर्क न बन जाए यह निर्धारित हो सके। आरक्षण पर लिखने की मेरी मजबूरी ये है कि वर्तमान परिवेश में हर कोई चाहे वह क्यों न ख़ुद को मेरिट वाला समझने वाला इंसान हो या फिर क्यों न कोई प्राकृतिक संसाधनों में बराबर की हिस्सेदारी, अर्थात जनसंख्या के अनुपातिक आधार पर प्रतिनिधित्व की वकालत करने वाला व्यक्ति हो। चाहे कोई स्वयं को आरक्षण की मोहताज़ समझने वाला सामान्य इंसान हो या कोई ख़ुद को बुद्धिजीवी समझने वाला कुटिल व्यक्ति हो या फिर क्यों न वह वास्तव में बुद्धिजीवी हो। सबके सब आरक्षण पर तर्कों और कुतर्कों की बमबारी करते रहते हैं। इसलिए लेखक, विचारक और समाज सेवक होने के नाते मैं हुलेश्वर प्रसाद जोशी आरक्षण पर लिखने जा रहा हूं।
- क्या, आरक्षण न्याय की नैसर्गिक सिद्धांत (प्राकृतिक न्याय) के खिलाफ है?
- क्या, आरक्षण मेरिट के खिलाफ़ बकलोल लोगों को ऊपर उठाकर राष्ट्र को अवनति की ओर अग्रसर करती है?
- क्या, आरक्षण योग्य व्यक्ति (मेरिट) के साथ अन्याय करती है?
- “न्याय की नैसर्गिक सिद्धांत (प्राकृतिक न्याय) में समानता आवश्यक सामग्री नहीं है।”
- “मेरिट का तात्पर्य मात्र कुछ एक परीक्षा प्रणाली में कतिपय पैमाने अथवा कारणों से अधिक प्राप्तांक अर्जित करना नहीं है। वरन मेरिट के लिए समस्त प्रतिभागियों के मध्य डीएनएगत विशेषताओं सहित समस्त प्रकार की अवसर में पूर्ण समानता का होना आवश्यक तब हम उस परीक्षा प्रणाली में सम्मिलित किसी प्रतिभागी को मेरिटधारी या गैर-मेरिट मान सकेंगे। अन्यथा किसी व्यक्ति को मेरिटधारी अथवा अयोग्य घोषित करना अन्याय है।”
- “सर्कस के शेर, हाथी, कुत्ते और अन्य जानवर सर्कस में अधिकतर एक्ट बेहतर कर सकते हैं। यदि अन्य स्वजातीय जानवरों के साथ इनकी एक मानक टेस्ट या परीक्षा ली जाये तो सर्कस के ये जानवर अन्य जानवरों से अच्छे या कहें तो अधिक अंक लाएंगे। ख्याल रखना इन नम्बर्स के आधार पर आप इन सर्कस वाले जानवरों को स्किल्ड समझ सकते हैं मगर इन्हें मेरिटधारी समझना आपकी गलती होगी जबकि अन्य जानवरों को गैर-मेरिट या डफर समझना आपके अंधे होने का प्रमाण होगा।”
- “समूचे ब्रह्मांड की सम्पूर्ण संपदाओं में समस्त जीवों का बराबर की हिस्सेदारी है।” ठीक वैसे ही जैसे परिवार की सम्पूर्ण संपत्ति में परिवार के सभी सदस्यों की बराबर की हिस्सेदारी होती है। अतः यदि कोई इंसान या जीव पृथ्वी या ब्रम्हांड के संपदाओं में अन्य की तुलना में अपना अधिक दावा प्रस्तुत करता है तो वह अवैध बेजाकब्जा के अलावा कुछ नहीं है।
- जब आप अपने परिवार के साथ बाजार जाते हैं और नवजात शिशु और बच्चों को गोदी में उठाकर ले जाते हैं। उस समय आपका प्रेम, सद्भावना, मानवता और न्याय ये सबके सब समानता के खिलाफ एक विशेष प्रकार की आरक्षण होती है।
- जब आप घर से बाहर कहीं यात्रा पर जाते हैं और खुद ही साइकिल, बाइक या कार चलाते हैं अथवा ऑटो, बस, ट्रेन या फ्लाइट का किराया चुकाते हैं जबकि अन्य सदस्य (खासकर तुम्हारे संतान) बिना मेहनत किये बैठकर मौज करते हैं। तो यहाँ भी वो तुम्हारे हिस्से के खा रहे होते हैं, राम की खा रहे होते हैं अर्थात आरक्षण का लाभ ले रहे होते हैं।
- जब आप गंभीर रूप से बीमार होते हैं और तब आपको ओपीडी के बजाय आईपीडी में विशेष सुविधाएं मिलती है तो तुम समानता की सिद्धांत के विपरीत विशेष सुविधा ले रहे होते हो। यह भी एक प्रकार का आरक्षण ही है।
- जब आप अपने परिवार के नवजात शिशु और बच्चों से बिना कार्य कराए/ बिना मेहनत कराए उन्हें भोजन, पानी, चिकित्सा और देखरेख सहित अन्य विशेष सुविधाएं देते हैं तो वह भी आरक्षण, ओह माफ़ करना खैरात ही है। स्पष्ट संबोधन से संबोधित करूं तो आपके परिवार के ऐसे सारे नवजात शिशु और बच्चे हैं। अच्छा ये बात तो भूल ही रहा था कि कभी आप भी नवजात शिशु से बालक बने फिर आज मेहनती युवा/बुजुर्ग और मेरिटधारी बने हैं, मगर इसके ठीक पहले आप अपनी खुद की मौलिक भाषा में आप खैरात की खाने के आदी, __खोर रहे हैं।
- जो आप पैतृक संपत्ति में बटवारा पाते हो, वह भी एक विशेष प्रकार का आरक्षण ही है; क्योंकि पैतृक संपत्ति को अर्जित करने में आपका कोई श्रम नहीं लगा है। उसे संग्रहीत करने में आपका योगदान शून्य है। अर्थात आपके द्वारा पैतृक संपत्ति में बटवारा लेना खैरात है।
- जाति, वर्ण और धर्म को लिखना, बताना और पूछना सबसे पहले प्रतिबंधित कर देना चाहिए।
- धनवान को धनवान के साथ, बुद्धिमान को बुद्धिमान के साथ, शक्तिशाली को शक्तिशाली के साथ, गोरे को गोरे के साथ और काले को काले के साथ मिलकर संगठन या सोसाइटी बनाने से प्रतिबंधित कर देना चाहिए।
- देश में धर्म, वर्ण, जाति, रंग और क्षेत्र के आधार पर पुनः भेदभाव, हिंसा और छुआछूत शुरू हो जाएगा।
- धनवान और शक्तिशाली लोग धीरे धीरे लोकतंत्र को समाप्त करके राजतन्त्र की नींव रखेंगे।
- धनवान और शक्तिशाली लोग और अधिक धनवान तथा शक्तिशाली हो जाएंगे तथा गरीबों को फिर से गुलाम बनाकर उनकी खरीद फरोख्त करेंगे।
- धार्मिक अतिवादी लोग देश को धार्मिक मान्यताओं के आधार पर चलाने का प्रयास करेंगे तथा दूसरे धर्म के लोगों को या तो मार डालेंगे या उनका शोषण करेंगे।
- चालाक और कुटिल बुद्धि के लोग फिर से अपनी एक अलग सोसाइटी बना लेंगे और अन्य वर्ग की शोषण करेंगे।
- सेहतमंद लोग कमजोर और बीमार लोगों को मरने के लिए विवश कर देंगे।