भगवान विष्णु( god vishnu) ने जन कल्याण के लिए अपने शरीर से पुरुषोत्तम मास की एकादशियों सहित कुल 26 एकादशियों को उत्पन्न किया। इनमें ज्येष्ठ माह की एकादशी सब पापों का हरण करने और समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली है। इस एकादशी को निर्जला एकादशी, भीम एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से जाना जाता है।
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निर्जला एकादशी( nirjala) की पूजाविधि( puja)
इस एकादशी पर गंगा आदि पवित्र नदियों में स्नान और भगवान विष्णु के पूजन का विशेष महत्त्व है। इस दिन श्री हरि को प्रिय तुलसी की मंजरी तथा पीला चन्दन,रोली,अक्षत,पीले पुष्प,ऋतु फल एवं धूप-दीप,मिश्री आदि से भगवान दामोदर का भक्ति-भाव से पूजन करना चाहिए।
सौभाग्य में वृद्धि के लिए
पीताम्बरधारी भगवान विष्णु का विधिवत पूजन के बाद ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जाप करना सौभाग्य में वृद्धि करता है। इस दिन गोदान,वस्त्रदान,छत्र,जूता,फल एवं जल आदि का दान करने से मनुष्य को परम गति प्राप्त होती है। रात्रि के समय भगवान नारायण की प्रसन्नता के लिए नृत्य,भजन-कीर्तन और स्तुति के द्वारा जागरण करना चाहिए।जागरण करने वाले को जिस फल की प्राप्ति होती है,वह हज़ारों बर्ष तपस्या करने से भी नहीं मिलता।
‘देवव्रत’ भी दूसरा नाम
निर्जला एकादशी के इस महान व्रत( vrat) को ‘देवव्रत’ भी कहा जाता है क्योंकि सभी देवता,दानव,नाग,यक्ष,गन्धर्व,किन्नर,नवग्रह आदि अपनी रक्षा और जगत के पालनहार श्री हरि की कृपा प्राप्त करने के लिए एकादशी का व्रत करते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस एकादशी में ब्रह्महत्या सहित समस्त पापों का शमन करने की शक्ति होती है। इस दिन मन, कर्म, वचन द्वारा किसी भी प्रकार का पाप कर्म करने से बचने का प्रयास करना चाहिए। साथ ही तामसिक आहार, परनिंदा एवं दूसरों का अपमान से भी दूर रहना चाहिए। भक्तिपूर्वक इस व्रत को करने से व्रती को करोड़ों गायों को दान करने के समान फल प्राप्त होता है।