गरियाबंद. बचपन में पिता को खो दिया था, 18 साल की उम्र में गली में पड़े मिले अनाथ बच्चे का लालन पालन करने का सिलसिला शुरू हुआ और 43 साल में 600 से ज्यादा बच्चो के पिता बन गए. 37 बेटियों के हाथ पीले किए, 15 बेटों का विवाह रचा कर घर बसाया. इनमें से 12 बेटे सरकारी नौकरी कर रहे हैं. कपड़े की सिलाई और मजदूरी से मिले रुपये से बच्चों का लालन-पालन करता था. छत्तीसगढ़ के 100 से भी ज्यादा मासूम इसी आश्रम के शरण में पले बढ़े. त्याग और सेवा की मिसाल बनी ये कहानी है जशोदा अनाथ आश्रम के ‘पापाजी’ श्यामसुंदर दास की.
देवभोग से महज 16 किलोमीटर दूरी पर कालाहांडी के धरमगढ़ स्थित गंबारीगुड़ा गांव में जशोदा अनाथ आश्रम है. इस आश्रम में वर्तमान में 6 दूध मुंहे बच्चे समेत 100 बच्चो का लालन-पालन 60 वर्षीय श्याम सुंदर दास के निगरानी में हो रहा है. इन बच्चों में 30 से ज्यादा बच्चे तो ऐसे हैं, जिनकी पैदाइशी दिव्यांगत के चलते गरीब माता-पिता छोड़कर चले गए हैं. ओडिशा में मौजूद इस आश्रम ने देवभोग अंचल के 100 से भी ज्यादा अनाथ बच्चों को आश्रय दिया हुआ है. सभी बच्चे श्याम सुंदर को पापा जी और उनकी पत्नी कस्तूरी को मां कहते हैं. दंपति 3 आया और 5 अन्य कर्मियों के साथ मिलकर 24 घंटे बच्चों की सेवा में लगे रहते हैं. श्याम सुंदर दास ने बताया कि ओडिशा सरकार की मदद से पिछले 15 साल में आश्रम के लिए पर्याप्त भवन, बाउंड्री वॉल बनाया गया है. 40 बच्चों के लालन-पालन के लिए मासिक 1800 रुपये प्रति सदस्य मिलता है. इसके अलावा उनके 3 बेटों की कमाई का कुछ भी वे इस नेक काम में लगाते हैं
1980 से संवार रहे कई जिंदगियां
श्याम सुंदर दास जब 18 साल के थे तो उन्हें धर्मगढ़ रोड में एक पेड़ के नीचे रोता हुआ बच्चा मिला. जिसे वे उठाकर घर ले गए. उनकी मां जशोदा ने बच्चे का जतन शुरु किया. श्याम ने उसी समय ऐसे बच्चो की सेवा करने की ठान ली. 6 महीने के भीतर 4 बच्चे मिले. उस समय श्याम टेलर का काम कर रहे थे. वे देवभोग के कूम्हड़ाई गांव में मजदूरी करने भी जाते थे. बच्चों को लेकर श्याम पर बच्चा चोरी का आरोप भी लगा. जेल जाने तक की नौबत आ गई. लेकिन कुछ समाजसेवियों के बयान ने श्याम को कानूनी शिकंजे से बचा दिया.
दो साल श्याम से दूर रही थीं उनकी पत्नी
1984 में मां जसोदा भी चल बसीं. 90 के दशक में कच्चे मकान में बगैर किसी सहयोग से 40 से ज्यादा बच्चो का लालन-पालन श्याम कर रहे थे. सहयोग के लिए जीवन संगिनी की जरूरत थी. बच्चे पालने के पागलपन को देखते हुए इन्हें कोई बेटी देना नहीं चाह रहा था. जिसके बाद उन्होंने अपनी पसंद की लड़की कस्तूरी देवी से मंदिर में शादी कर घर बसा लिया. संघर्ष जारी रहा. शुरू के 15 साल बच्चों के लालन-पालन के लिए श्याम टेलर से लेकर मजदूरी का काम किया करते थे. श्याम के बच्चों को पालने की इस जिद को देख देख तीन बच्चे की मां बन चुकी कस्तूरी बाई बच्चों समेत 2 साल पति से दूर रहीं. घर में तनाव था. लेकिन बाहर के लोग श्याम के सेवा भाव के कायल भी थे. पत्नी को भी पति के इस नेक काम का आभास हुआ. फिर दोनों ने अनाथ बच्चों की सेवा साथ मिलकर की. नौबत ऐसी आन पड़ी कि इनके खुद के बच्चों को लालन-पालन के लिए श्याम के छोटे भाई ले गए. बेटे बड़े हुए तो आज बेटे भी परिवार का सदस्य मानकर उन तमाम बच्चों की मदद करने लगे हैं.
150 से ज्यादा दंपति गोद ले चुके हैं बच्चे
2008 के बाद इन्हें सरकारी मदद मिलना शुरू हुई. भवन, बाउंड्री वॉल बनाए गए. बच्चो की परवरिश के लिए मामूली रकम से सरकारी फंडिंग जब तक शुरू हुई तब तक वे 150 बच्चों को पाल कर बड़ा कर चुके थे. समय के साथ-साथ छत्तीसगढ़ और ओडिशा के 150 से ज्यादा दंपति अनाथालय से कई बच्चों को गोद भी ले गए. श्याम सुंदर इसे अनाथ आश्रम नहीं मानते. वे अपना घर और सभी को अपना बच्चा मानते हैं. दूर-दूर तक इस परिवार की खासियत की कहानी सुनाई जाती है. इसके प्रति अन्य लोगों का इतना लगाव है कि लोग जन्मदिन, वर्षगांठ हो या अन्य खुशी के अवसर हों, उसे यादगार बनाने के लिए इसी आश्रम में आते हैं. स्थानीय स्तर पर होने वाले आयोजनों में भोजन और अन्य पकवानों का हिस्सा भी यहां पहुंचता है.