आज विश्व प्रसिद्ध ओड़िशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा शुरू होगी। हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष यह यात्रा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से शुरू होकर आषाढ़ शुक्ल की दशमी तक चलती है। इस रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ विराजमान होते हैं और इनके साथ भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा भी होते हैं। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा पुरी के मंदिर से निकलते हुए गुंडिचा मंदिर जाती है। इस गुंडिचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा तीनों ही आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तक रुकते हैं।
आषाढ़ माह की द्वितीया से लेकर दशमी तिथि तक भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ यात्रा पर निकलते हैं। दरअसल इस रथ के पीछे पौराणिक मान्यता है, जिसके अनुसार द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण से उनकी बहन सुभद्रा ने द्वारका देखने इच्छा को व्यक्त किया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बहन की इस इच्छा को पूरा करने के लिए सुभद्रा और बलभद्र जी को रथ पर बैठाकर द्वारका की यात्रा करवाई थी।
दुनिया की सबसे बड़ी रसोई
पुरी के जगन्नाथ मंदिर में रोज लाखों लोगों के लिए प्रसाद बनाया जाता है। यहां पर हर करीब हर रोज 1 लाख लोगों को प्रसाद बांटा जाता है। भगवान जगन्नाथ को हर दिन 6 समय का भोग लगाया जाता है जिसमें 56 तरह के पकवान होते हैं। पुरी जगन्नाथ मंदिर में बनी हुई रसोई को दुनिया की सबसे बड़ी रसोई मानी जाती है। इसमें एक साथ 500 के करीब रसोइये और 300 के आस-पास सहयोगी भगवान के प्रसाद को तैयार करते हैं। भगवान जगन्नाथ के प्रसाद को महाप्रसाद कहा जाता है। इस प्रसाद को पकाने के लिए सात मिट्टी के बर्तनों को एक दूसरे के ऊपर रखा जाता है और प्रसाद पकने की प्रक्रिया सबसे ऊपर वाले बर्तन से शुरू होती है।
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