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सावन के पहले दिन बम-बम भोले के जयकारों से गुंजायमान हुआ भूतेश्वरनाथ धाम, इस बार दो माह का होगा सावन, 19 साल बाद बन रहा संयोग, यहाँ जल चढ़ाने से होती है मन्नते पूरी,

Vijay Sinha
Last updated: 2023/07/04 at 2:17 PM
Vijay Sinha
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7 Min Read
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गरियाबंद के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल भूतेश्वर नाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों की तरह छत्तीसगढ़ में एक अर्धनारीश्वर प्राकृतिक शिवलिंग भूतेश्वर महादेव के नाम से विख्यात है।आज सावन के पहले दिन भक्तों ने भूतेश्वर महादेव में जल अभिषेक कर पूजा अर्चना किया . 4 जुलाई से इस साल सावन का महीना शुरू हो रहा है और सावन का पहला सोमवार 10 जुलाई को पड़ रहा है. इस बार सावन में आठ सोमवार पड़ने वाले हैं. 10 के बाद 17 जुलाई, 24 और 31 जुलाई, 7 अगस्त, 14 अगस्त, 21 और 28 अगस्त को सोमवार पड़ रहा है. गरियाबंद जिले में विराजित विश्व प्रसिद्ध भूतेश्वरनाथ में सावन के पहले पहले दिन सुबह से ही  भक्तों की भीड़ देखने को मिली दूर-दूर से लोग भगवान भूतेश्वरनाथ के दर्शन-पूजन करने पहुंचे हैं. मान्यता है कि भूतेश्वरनाथ शिवलिंग आज भी बढ़ रहा है. हरी-भरी प्राकृतिक वादियों के बीच गरियाबंद से महज 3 किलोमीटर दूर अद्भुत अकल्पनीय सा दिखता यह शिवलिंग शिव भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है.

पूरे सावाँन माह में जल चढ़ाने लगता है लाखों कावड़ियो का ताँता

सावन माह में यहां दूर-दूर से भक्त जल लेकर भगवान शिव अर्पित करने पहुंचे हैं. भोले बाबा भी उनकी मन मांगी मुराद जरूर पूरी करते हैं. यही कारण है कि बीते 8 -10 सालों में यहां पहुंचने वाले भक्तों की संख्या में कई गुना इजाफ़ा हो रहा है. सावन के तीसरे चौथे सप्ताह में यहाँ अलग अलग वेषभूषाओं में कावड़ियो की अपार भीड़ देखने को मिलती है सावनभर यहां भक्तों और कांवरियों का रेला लगा रहता है, वही महाशिवरात्रि के दिन लगभग 50 हजार से अधिक श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. ल. द्वादष ज्योतिर्लिगों की भांति छत्तीसगढ़ में यह एक विशाल प्राकृतिक शिवलिंग है, जो विश्व प्रसिद्ध विशालतम शिवलिंग के नाम से प्रसिध्द है. ऐसी मान्यता है कि यह शिवलिंग हर साल अपने आप में बढ़ता जा रहा है. छत्तीसगढ़ी भाषा में हुकारने की आवाज को भकुर्रा कहते हैं. इसी से छत्तीसगढ़ी में इनका नाम भकुर्रा पड़ा है. यहां हर वर्ष महाशिवरात्रि और सावन माह पर्व पर मेले जैसा माहौल रहता है. यहां पर दूर दराज से भक्त आकर महादेव की अराधना करते हैं. भगवान भूतेश्वरनाथ घने जंगलो के बीच ग्राम मरौदा में विराजमान है.

Sawan Somwar 2023: इस बार दो महीने का होगा सावन, 19 साल बाद बन रहा संयोग, इस दिन से शुरू हो रहा पवित्र महीना

पंचांग के अनुसार,  इस साल सावन का महीना 4 जुलाई से शुरू होकर 31 अगस्त तक चलेगा. इस साल सावन 59 दिनों का होगा. पंचांग के अनुसार, 19 साल बाद ऐसा योग बन रहा है जब सावन पर बहुत ही खास संयोग बन रहा है. जिसमें 8 सोमवार को व्रत किए जाएंगे. सावन का पहला सोमवार 10 जुलाई और आखिरी सोमवार 28 अगस्त को पड़ेगा.

सावन के सोमवार पर क्या रहेगा शुभ मुहूर्त

इस बार सावन का पहला सोमवार का शुभ मुहूर्त शाम को 5 बजकर 38 मिनट से 7 बजकर 22 मिनट तक चलेगा. इस दौरान भगवान भोलेनाथ का व्रत करें. इसके साथ ही शिव का अभिषेक भी करें. ऐसा करने से सभी कष्ट दूर होंगे और आपकी सभी मनोकामना पूरी होगी.

 

Contents
गरियाबंद के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल भूतेश्वर नाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों की तरह छत्तीसगढ़ में एक अर्धनारीश्वर प्राकृतिक शिवलिंग भूतेश्वर महादेव के नाम से विख्यात है।आज सावन के पहले दिन भक्तों ने भूतेश्वर महादेव में जल अभिषेक कर पूजा अर्चना किया . 4 जुलाई से इस साल सावन का महीना शुरू हो रहा है और सावन का पहला सोमवार 10 जुलाई को पड़ रहा है. इस बार सावन में आठ सोमवार पड़ने वाले हैं. 10 के बाद 17 जुलाई, 24 और 31 जुलाई, 7 अगस्त, 14 अगस्त, 21 और 28 अगस्त को सोमवार पड़ रहा है. गरियाबंद जिले में विराजित विश्व प्रसिद्ध भूतेश्वरनाथ में सावन के पहले पहले दिन सुबह से ही  भक्तों की भीड़ देखने को मिली दूर-दूर से लोग भगवान भूतेश्वरनाथ के दर्शन-पूजन करने पहुंचे हैं. मान्यता है कि भूतेश्वरनाथ शिवलिंग आज भी बढ़ रहा है. हरी-भरी प्राकृतिक वादियों के बीच गरियाबंद से महज 3 किलोमीटर दूर अद्भुत अकल्पनीय सा दिखता यह शिवलिंग शिव भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है.पूरे सावाँन माह में जल चढ़ाने लगता है लाखों कावड़ियो का ताँतासावन माह में यहां दूर-दूर से भक्त जल लेकर भगवान शिव अर्पित करने पहुंचे हैं. भोले बाबा भी उनकी मन मांगी मुराद जरूर पूरी करते हैं. यही कारण है कि बीते 8 -10 सालों में यहां पहुंचने वाले भक्तों की संख्या में कई गुना इजाफ़ा हो रहा है. सावन के तीसरे चौथे सप्ताह में यहाँ अलग अलग वेषभूषाओं में कावड़ियो की अपार भीड़ देखने को मिलती है सावनभर यहां भक्तों और कांवरियों का रेला लगा रहता है, वही महाशिवरात्रि के दिन लगभग 50 हजार से अधिक श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. ल. द्वादष ज्योतिर्लिगों की भांति छत्तीसगढ़ में यह एक विशाल प्राकृतिक शिवलिंग है, जो विश्व प्रसिद्ध विशालतम शिवलिंग के नाम से प्रसिध्द है. ऐसी मान्यता है कि यह शिवलिंग हर साल अपने आप में बढ़ता जा रहा है. छत्तीसगढ़ी भाषा में हुकारने की आवाज को भकुर्रा कहते हैं. इसी से छत्तीसगढ़ी में इनका नाम भकुर्रा पड़ा है. यहां हर वर्ष महाशिवरात्रि और सावन माह पर्व पर मेले जैसा माहौल रहता है. यहां पर दूर दराज से भक्त आकर महादेव की अराधना करते हैं. भगवान भूतेश्वरनाथ घने जंगलो के बीच ग्राम मरौदा में विराजमान है.Sawan Somwar 2023: इस बार दो महीने का होगा सावन, 19 साल बाद बन रहा संयोग, इस दिन से शुरू हो रहा पवित्र महीनापंचांग के अनुसार,  इस साल सावन का महीना 4 जुलाई से शुरू होकर 31 अगस्त तक चलेगा. इस साल सावन 59 दिनों का होगा. पंचांग के अनुसार, 19 साल बाद ऐसा योग बन रहा है जब सावन पर बहुत ही खास संयोग बन रहा है. जिसमें 8 सोमवार को व्रत किए जाएंगे. सावन का पहला सोमवार 10 जुलाई और आखिरी सोमवार 28 अगस्त को पड़ेगा.सावन के सोमवार पर क्या रहेगा शुभ मुहूर्तइस बार सावन का पहला सोमवार का शुभ मुहूर्त शाम को 5 बजकर 38 मिनट से 7 बजकर 22 मिनट तक चलेगा. इस दौरान भगवान भोलेनाथ का व्रत करें. इसके साथ ही शिव का अभिषेक भी करें. ऐसा करने से सभी कष्ट दूर होंगे और आपकी सभी मनोकामना पूरी होगी.शिवलिंग की पौराणिक महत्वइस शिवलिंग के बारे में बताया जाता है कि आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व जमीदारी प्रथा के समय पारागांव निवासी शोभासिंह जमींदार की यहां पर खेती बाडी थी. शोभा सिंह शाम को जब अपने खेत में घुमने जाता था तो उसे खेत के पास एक विशेष आकृति नुमा टीले से सांड के हुंकारने (चिल्लानें) एवं शेर के दहाडनें की आवाज सुनाई देती थी. अनेक बार इस आवाज को सुनने के बाद शोभासिंह ने उक्त बात ग्रामवासियों को बताई. ग्रामवासियों ने भी शाम को उक्त आवाजे अनेक बार सुनी. आवाज करने वाले सांड अथवा शेर की आसपास खोज की, लेकिन दूर दूर तक किसी जानवर के नहीं मिलने पर इस टीले के प्रति लोगों की श्रद्वा बढ़ने लगी और लोग इस टीले को शिवलिंग के रूप में मानने लगे. इस बारे में पारागावं के लोग बताते है कि पहले यह टीला छोटे रूप में था. धीरे धीरे इसकी उचाई एवं गोलाई बढ़ती गई, जो आज भी जारी है. इस शिवलिंग में प्रकृति प्रदत जललहरी भी दिखाई देती है. जो धीरे धीरे जमीन के उपर आती जा रही है.1959 गोरखपुर से प्रकाषित धार्मिक पत्रिका कल्याण के वार्षिक अंक के पृष्ट क्रमांक 408 में है उल्लेखितइस शिवलिंग का पौराणिक महत्व सन 1959 में गोरखपुर से प्रकाषित धार्मिक पत्रिका कल्याण के वार्षिक अंक के पृष्ट क्रमांक 408 में उल्लेखित है, जिसमें इसे विश्व का एक अनोखा महान एवं विषाल शिवलिंग बताया गया है. यह जमीन से लगभग 72 फीट उंचा एवं 210 फीट गोलाकार है. यहां मान्यता है कि सच्चे मन से जो भी मनोकामना की जाती है वह पूरी होती है.इसलिए पड़ा नामयह समस्त क्षेत्र गिरी (पर्वत) तथा वनों से आच्छादित है. इसे गिरिवन क्षेत्र कहा जाता था, लेकिन कालांतर में गरियाबंद कहलाया जाता है.गाँव के बुजुर्गों का कहना हैं कि पहले यह टीला छोटे रूप में था। धीरे-धीरे इसकी ऊंचाई व गोलाई बढ़ती गई। जो आज भी जारी है। भूमि, जल, अग्नि, आकाश और हवा पंचभूत कहलाते हैं. इन सबके ईश्वर भूतेश्वर हैं. समस्त प्राणियों का शरीर भी पंचभूतों से बना है. इस तरह भुतेश्वरनाथ सबके ईश्वर हैं. उनकी आराधना/ सम्पूर्ण विष्व की आराधना है. भुतेश्वरनाथ प्रांगण अत्यंत विशाल है. यहां पर श्री गणेश मंदिर, श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर, श्री राम जानकी मंदिर, यज्ञ मंडप, दो सामुदायिक भवन, एक सांस्कृतिक भवन तथा बजरंग बली का मंदिर है. भुतेश्वरनाथ समिति तथा अनेक श्रध्दालुओं द्वारा यह निर्माण हुए हैं, जो भुतेश्वरनाथ धाम को भव्यता प्रदान करते हैं. वन आच्छादित सुरम्य स्थलि बरबस मन को मोह लेती है, समय-समय पर यहां भक्तजन रूद्राभिषेक कराते हैं. हर महीने यहां भक्तजनों का तांता लगा रहता है.
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शिवलिंग की पौराणिक महत्व

इस शिवलिंग के बारे में बताया जाता है कि आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व जमीदारी प्रथा के समय पारागांव निवासी शोभासिंह जमींदार की यहां पर खेती बाडी थी. शोभा सिंह शाम को जब अपने खेत में घुमने जाता था तो उसे खेत के पास एक विशेष आकृति नुमा टीले से सांड के हुंकारने (चिल्लानें) एवं शेर के दहाडनें की आवाज सुनाई देती थी. अनेक बार इस आवाज को सुनने के बाद शोभासिंह ने उक्त बात ग्रामवासियों को बताई. ग्रामवासियों ने भी शाम को उक्त आवाजे अनेक बार सुनी. आवाज करने वाले सांड अथवा शेर की आसपास खोज की, लेकिन दूर दूर तक किसी जानवर के नहीं मिलने पर इस टीले के प्रति लोगों की श्रद्वा बढ़ने लगी और लोग इस टीले को शिवलिंग के रूप में मानने लगे. इस बारे में पारागावं के लोग बताते है कि पहले यह टीला छोटे रूप में था. धीरे धीरे इसकी उचाई एवं गोलाई बढ़ती गई, जो आज भी जारी है. इस शिवलिंग में प्रकृति प्रदत जललहरी भी दिखाई देती है. जो धीरे धीरे जमीन के उपर आती जा रही है.

1959 गोरखपुर से प्रकाषित धार्मिक पत्रिका कल्याण के वार्षिक अंक के पृष्ट क्रमांक 408 में है उल्लेखित

इस शिवलिंग का पौराणिक महत्व सन 1959 में गोरखपुर से प्रकाषित धार्मिक पत्रिका कल्याण के वार्षिक अंक के पृष्ट क्रमांक 408 में उल्लेखित है, जिसमें इसे विश्व का एक अनोखा महान एवं विषाल शिवलिंग बताया गया है. यह जमीन से लगभग 72 फीट उंचा एवं 210 फीट गोलाकार है. यहां मान्यता है कि सच्चे मन से जो भी मनोकामना की जाती है वह पूरी होती है.

इसलिए पड़ा नाम

यह समस्त क्षेत्र गिरी (पर्वत) तथा वनों से आच्छादित है. इसे गिरिवन क्षेत्र कहा जाता था, लेकिन कालांतर में गरियाबंद कहलाया जाता है.गाँव के बुजुर्गों का कहना हैं कि पहले यह टीला छोटे रूप में था। धीरे-धीरे इसकी ऊंचाई व गोलाई बढ़ती गई। जो आज भी जारी है। भूमि, जल, अग्नि, आकाश और हवा पंचभूत कहलाते हैं. इन सबके ईश्वर भूतेश्वर हैं. समस्त प्राणियों का शरीर भी पंचभूतों से बना है. इस तरह भुतेश्वरनाथ सबके ईश्वर हैं. उनकी आराधना/ सम्पूर्ण विष्व की आराधना है. भुतेश्वरनाथ प्रांगण अत्यंत विशाल है. यहां पर श्री गणेश मंदिर, श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर, श्री राम जानकी मंदिर, यज्ञ मंडप, दो सामुदायिक भवन, एक सांस्कृतिक भवन तथा बजरंग बली का मंदिर है. भुतेश्वरनाथ समिति तथा अनेक श्रध्दालुओं द्वारा यह निर्माण हुए हैं, जो भुतेश्वरनाथ धाम को भव्यता प्रदान करते हैं. वन आच्छादित सुरम्य स्थलि बरबस मन को मोह लेती है, समय-समय पर यहां भक्तजन रूद्राभिषेक कराते हैं. हर महीने यहां भक्तजनों का तांता लगा रहता है.

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