राजिम। (पांडुका) इस बार फिर विधानसभा चुनाव 2023 की तैयारी को लेकर जगह जगह दीवारों में राजनीतिक दलों के लोग अपना प्रचार चालू कर दिए हैं जिसमे कोई नेता केंद्र की उपलब्धि बता रहे है तो कोई राज्य की विभिन्न योजनाओं का गुणगान कर रहे हैं। तथा विधान सभा राजिम के सभी गांव की दीवारों में लाल लाल बड़े बड़े अक्षरों में असानी से देखा जा सकता है हैरानी की बात ये है की इनमे से कुछ एसे भी गांव है जिसमे जीते हुए प्रत्याशी भले ही आज तक ना पहुंचे हो पर उनके कार्यकर्ता दीवारों में प्रचार के माध्यम जरूर पहुंच गए हैं।
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राजीम विधानसभा बने लगभग 71 साल हो गए हैं और इन 71 सालों में विकासखंड छूरा से आज तक एक भी प्रत्याशी किसी भी राजनीतिक पार्टी से नहीं बनाए गए एक बार फिर विधानसभा चुनाव सर पर है। ऐसे में नहीं लगता कि छूरा विकासखंड से कोई प्रत्याशी बनाए जाएंगे क्योंकि हर बार फिंगेश्वर विकासखंड के राजिम या आसपास के प्रत्याशी विधानसभा चुनाव का प्रत्याशी बनता आ है बता दें कि 1952 से राजिम विधानसभा अस्तित्व में आया और पहला चुनाव प्रारंभ हुआ जिसमे रानी श्याम कुमारी देवी ने पहला चुनाव 1952 में जीते और 1962 तक विधायक रहे ।फिर अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पंडित श्यामाचरण शुक्ल ने 1962 से लेकर1977 तक विधायक रहे और वे लगातार 3 बार चुनाव जीते ,, पर सन 1977 में कांग्रेस विरोधी लहर के परिणाम स्वरूप राजिम से संत कवि पवन दीवान को जनता पार्टी से प्रत्याशी बनाए और उन्होंने चुनाव जीती, इसी क्रम में 1980 में जीवन लाल साहू को मौका मिला फिर उसने भी चुनाव जीत कर विधान सभा पहुंचे ।पर पुनः 1985 में भाजपा के बैनर तले पुनीत राम साहू ने परचम लहराया और जीत दाखिल की फिर पुनःश्यामाचरण शुक्ल के नेतृत्व में 1990 से लेकर 1998 तक कांग्रेस का दबदबा रहा और उपचुनाव में वर्तमान विधायक राजिम अमितेश शुक्ल को पहला मौका मिला और उन्होंने जीत हासिल की और राजिम विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया ।
2013 में संतोष उपाध्याय ने फिर भाजपा का झंडा लहराया
वही 2003 में भाजपा प्रत्याशी चंदूलाल साहू ने अमितेश को हराकर इस सीट पर कब्जा किया ।कांग्रेस से फिर 2008 में अमितेश शुक्ल ने भाजपा को पटकनी देकर इस सीट पर पुनः कब्जा किया,, इसके बाद 2013 में संतोष उपाध्याय ने फिर भाजपा का झंडा लहराया और चुनाव जीते ।और 2018 के विधानसभा चुनाव में इस बार अमितेश शुक्ल भारी रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल किया और कांग्रेस सरकार के विधायक है पर पूर्व पंचायत मंत्री को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली ।हाला की छत्तीसगढ़ के प्रथम पंचायत मंत्री होने के तमगा उन्हें हासिल है । वही इस विधानसभा सीट में लगभग 50% ओबीसी मतदाता है 30% एस टी मतदाता है तो 10% एससी और 10% सामान्य वर्ग के मतदाता है। साथ ही इसमें पांडुका अंचल सहित छूरा विकासखंड के घाट खाल्हे कहे जाने वाले यह क्षेत्र पहले कांग्रेसियों का गढ़ कहा जाता था पर धीरे-धीरे इसमें भी सेंध लगता गया । और आज यहां कोई स्पष्ट या नहीं कहा जा सकता यह किसी एक पार्टी विशेस का दबदबा है ।
विकासखंड छूरा में लगभग 74 ग्राम पंचायत आते है
बता दें कि विकासखंड छूरा में लगभग 74 ग्राम पंचायत आते है जिसके आश्रित ग्रामों को मिला दिया जाए तो लगभग 120 के आसपास गांव होंगे पर इतने बड़े आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले इस विकासखंड छूरा में आज तक के विधानसभा प्रत्याशी किसी भी राजनीतिक पार्टी नहीं तलाश सकी न ही पैदा कर सकी तो केवल इस विकास खंड के मतदाता केवल मतदान के लिए ही बने हैं । जो एक प्रकार का इस विकास खंड के साथ हमेशा छलावा होता रहा है। हमेशा से ही सभी राजनीतिक दल केवल राजिम फिंगेश्वर के आसपास के प्रत्याशी तलाशते हैं। इसमें से कुछ राजनीतिक दलों के प्रत्याशी तो राजिम आसपास अपना निवास भी बना लिय है और उस गांव के मतदाता होने का दावा करते हैं ।जिससे ऐसे में हर बार स्थानीय प्रत्याशी को लेकर चुनावी मुद्दा बनता है पर वह चुनावी मुद्दा चुनाव आते आते खत्म हो जाता है धीरे-धीरे विधानसभा चुनाव की तारीख नजदीक आ रहे हैं।राजनीतिक वा सामाजिक संगठन का स्थानीय बैठकों का दौर जारी है दीवारों में प्रचार प्रसार प्रारंभ हो गया है।जिसमे कुछ ऐसे लोगों का भी प्रचार प्रसार कर रहे हैं जिन्हें लोग जानते ही नहीं हैं ।
चुनाव के1 साल या 6 महीना पहले जनता को रिझाने में लगे
कुछ लोग ऐसे हैं जो विधानसभा चुनाव के 4 साल तक चुप बैठे रहे और चुनाव के1 साल या 6 महीना पहले जनता को रिझाने में लगे हैं और विभिन्न प्रकार के सामग्री जैसे पेन, कॉपी ,धार्मिक पुस्तकें ,छाता ,बैग साड़ी जैसे अन्य सामग्री बांटकर भरोसा दिला रहे है और झूठे वादे कर लुभाने में लगे है।तो विभिन्न प्रकार के धार्मिक, सामाजिक आयोजन सहित शादी ब्याह ,छट्टी(बरही) ,शोक सभा (मरनी,हरनी) तथा समाज सेवा का ढोंग ,महिला समूहों और मितानिनों से मिल रहे है।वा एसे अन्य कार्यक्रम में शिरकत कर रहे है ।पर आज के मतदाता पढ़े-लिखे और होशियार है जो वर्तमान में तो हां हां बोल दे रहे हैं और सामग्री ले रहे हैं पर चुनाव के समय समझ जाते हैं कि किन को वोट देना है। इस प्रकार देखना होगा कि इस चुनाव में जाति समीकरण और क्षेत्रीय समीकरण कितना हावी होता है।पर स्थानीय प्रत्याशी की मांग विकासखंड छुरा में सुलग रहा है। जो सभी समीकरण को बिगाड़ेगा।
खबर नागेश तिवारी