रायपुर। RAIPUR NEWS : राजधानी में प्रभा खेतान फाउंडेशन के कार्यक्रम ‘कलम’ में कवि द्वारिका उनियाल ने शिरकत की। अभिकल्प फाउंडेशन के संस्थापक गौरव गिरिजा शुक्ला ने बातचीत की। कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत करते हुए एहसास वूमन सृष्टि त्रिवेदी ने बताया की देशभर के प्रसिद्ध साहित्यकारों के सहयोग से अब तक कलम रायपुर के करीब 70 से ज्यादा सफल आयोजन हो चुके हैं।
इस कार्यक्रम में उन्होंने बातचीत में द्वारिका उनियाल ने बताया कि उनके जीवन में कविता लेखन की शुरुआत 31 अक्टूबर सन 1984 से हुई जब रेडियों में उन्होंने तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के देहांत की खबर सुनी। उस वक्त द्वारिका की उम्र महज 9 साल थी और उन्होंने जो कविता लिखी उसकी पंक्तियां कुछ इस तरह थीं- “इंदिरा तुम तो हो गई कुर्बान,
तुम तो थी बहुत महान,
गांधी की इंदु थी,
तुम नेहरू की प्रियदर्शिनी,
देश बचाने आई तुम थी,
बहुत दूरदर्शनीय।
आगे आपने लेखन के सफ़र के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि जीवन में देखने का नजरिया ही मेरे लेखन का सफर तय करता है। अच्छे लेखन के लिए अच्छा देखना अच्छा सुनना और अच्छा पढ़ना जरूरी है। स्कूली जीवन में ही कविताएं लिखने लगे और उन्हें अपने शिक्षकों और दोस्तों से प्रोत्साहन भी मिला। उन्होंने बताया कि कॉलेज आते तक अपनी डायरी में कुछ कविताएं लिखते रहे। लेकिन नौकरी की जद्दोजहद के बाद उनका लिखनी करीब करीब छूट गया। इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री प्रशासनिक अकादमी में पढ़ाने के दौरान एक युवा मित्र के कहने पर वो फिर से लिखने लगे।
उनकी इस पहली कविता संग्रह में 90 के दशक में लिखी गईं कविताओं के साथ ही 2020 के कोविड दौर की भी कविताएं शामिल हैं।
सवाल जवाब में प्रोफेसर द्वारिका ने एक किस्सा बताया कि देहरादून में यात्रा के दौरान एक टेक्सी ड्राइवर ने बातचीत में बताया कि वो अपनी बच्चियोँ को आईएएस बनाना चाहता है। उस वक्त उनकी बच्चियों की उम्र महज 6 साल और 8 साल की थी। यह सुनकर द्वारिका ने यह पूछा कि अभी बहुत जल्दबाजी है बच्चों के भविष्य के लिए इस तरह प्लान करना, लेकिन टैक्सी ड्राइवर ने बताया कि अभी से सोचूंगा तभी तो सपने देखुंगा। और इस वाकये से प्रभावित होकर उन्होंने एक कविता लिखी जो कि उनकी इस किताब का शीर्षक भी है- उम्मीदों के पंख-
सपनों को उड़ने के लिए,
हवाई जहाज का टिकट नहीं लगता बस,
पलकों को उम्मीदों के पंख चाहिए
ख्याल पकाने के चूल्हे कम नहीं,
नयी सोच के कोयलों को एक चिंगारी चाहिए
सुर्ख कंक्रीट की ईमारतों में ज्ञान कसमसाता है,
विचारों को पनपने के लिए हरी घास, खुली धूप चाहिए
सितारों के आगे जहाँ और भी है शायद,
मरते जन्मते तारों को एक क्षीण स्वर की क्षणिक प्रतिध्वनि चाहिए
सपनों को उड़ने के लिए,
हवाई जहाज का टिकट नहीं लगता बस,
पलकों को उम्मीदों के पंख चाहिए
कलम की इस बातचीत में द्वारिका उनियाल ने बच्चों के बचपने से मासूमियत के खो जाने पर चिंता जाहिर की। उन्होंने बताया कि आधुनिक युग में मोबाइल और इंटरनेट हमारे बच्चों को बचपना छीन रहा है। सोसाइटी और स्कूलों की जिम्मेदारी बढ़ गई है कि उन्हें सही मार्गदर्शन मिले। माता-पिता को भी
अपने बच्चों पर प्रेशर कम करना चाहिए उनकी उम्मीदों का दबाव बहुत ज्यादा है। उन्होंने कहा कि हमारे सिस्टम में इनोवेशन के लिए जगह बहुत कम है, हम अपने बच्चों को फेल होने पर इसे सम्हालने के लिए तैयार नहीं कर रहे, इसीलिए आत्महत्या इतनी बढ़ रही है।
गरचा ने आभार व्यक्त किया
द्वारिका उनियाल को हयात की ओर से कार्तिक दास ने स्मृति चिह्न दिया। होटल हयात में आयोजित हुए इस कलम कार्यक्रम में एडीजी प्रदीप गुप्ता, आईएएस भुवनेश यादव, केके नायक एवं शहर के प्रबुद्ध साहित्यप्रेमी शामिल हुए।