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KNOW THE LAW : जानिए क्या हैं ? जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 जिनसे शासित होते हैं POLITICIAN!

Jagesh Sahu
Last updated: 2023/09/01 at 6:03 PM
Jagesh Sahu
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6 Min Read
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ग्रैंड वेब डेस्क।  KNOW THE LAW :

KNOW THE LAW :  अकसर जनता के मन में यह सावल उठता हैं कि , शासकीय कर्मचारियों के लिए सिविल सेवा आचरण अधिनियम , पुलिस के लिए पुलिस अधिनियम होता ऐसे ही बहुत से अधिनियम होते हैं।  लेकिन क्या  ऐसा कोई अधिनियम हैं जो जनप्रतिनिधि  के लिए बना हो ?  तो इसका उत्तर है हाँ ! संविधान के अनुच्छेद 327 के तहत जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 को संसद द्वारा पारित किया गया था।

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यही वह कानून है जिसके अनुसार जनप्रतिनिधित्व ( POLITICIAN! ) शासित होते है।  यह संसद और राज्य विधानसभाओं के लिए चुनाव का संचालन प्रदान करता है। यह इन बातों की भी पुष्टि करता है कि उक्त सदनों का सदस्य बनने के लिए क्या योग्यताएं और अयोग्यताएं होती हैं। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 (4) कहती है कि, कोई भी जनप्रतिनिधि किसी भी मामले में दोषी ठहराए जाने की तिथि से तीन महीने की तिथि तक और अगर दौरान वो अपील दायर करता है तो उसका निबटारा होने तक अपने पद के अयोग्य घोषित नहीं होगा।

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संविधान के अनुच्छेद 327 के तहत इस अधिनियम को संसद द्वारा पारित किया गया था। यह संसद और राज्य विधानसभाओं के लिए चुनाव का संचालन प्रदान करता है। यह इन बातों की भी पुष्टि करता है कि उक्त सदनों का सदस्य बनने के लिए क्या योग्यताएं और अयोग्यताएं होती हैं।

 

1. इस अधिनियम के अनुसार, एक व्यक्ति तब तक लोकसभा की एक सीट पर चुने जाने के योग्य तभी होगा जब:

KNOW THE LAW : जानिए क्या हैं ? जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 जिनसे शासित होते हैं POLITICIAN!

i- किसी भी राज्य में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट के मामले में, उसे किसी भी राज्य के किसी भी अनुसूचित जाति का सदस्य होना चाहिए और किसी भी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का एक निर्वाचक होना चाहिए;

ii- किसी भी राज्य में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट के मामले में, उसे किसी भी राज्य के किसी भी अनुसूचित जाति का सदस्य होना चाहिए और किसी भी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का एक निर्वाचक होना चाहिए;

iii- किसी अन्य सीट के मामले में उसे किसी भी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के लिए एक निर्वाचक होना चाहिए।

KNOW THE LAW : 

यह भी पढ़ें – Supreme Court On Property Right: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, कहा- अवैध संतानों को भी मिलेगा मां-बाप की संपत्ति में हक

2- राज्यसभा की सदस्यता के लिए योग्यता: एक व्यक्ति राज्य सभा में किसी भी राज्य या संघ शासित प्रदेश के एक प्रतिनिधि के रूप में तभी चुने जाने का योग्य माना जाएगा जब वह एक संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का निर्वाचक होगा।

3- एक व्यक्ति निम्न कारणों के आधार पर अयोग्य घोषित किया जा सकता है:

 

I. कुछ चुनावी अपराधों और चुनाव में भ्रष्टाचार के लिए दोषी ठहराए जाने के कारण अयोग्यता।

II. एक व्यक्ति जिसे किसी भी अपराध का दोषी पाया गया हो और कम से कम दो साल के कारावास की सजा सुनाई गयी हो।

III. भ्रष्ट आचरण के आधार पर अयोग्यता।

IV. भ्रष्टाचार या देशद्रोह के लिए बर्खास्तगी के कारण अयोग्यता।

V. सरकारी कंपनी के तहत पद के लिए अयोग्यता ।

VI. चुनाव खर्च के खाते का विवरण देने में असफल होने पर अयोग्यता।

VII. विभिन्न समूहों के बीच या रिश्वतखोरी के अपराध के लिए शत्रुता को बढ़ावा देने के कारण अयोग्यता।

VIII. यदि एक व्यक्ति को सती, छुआछूत, दहेज, जैसे सामाजिक अपराधों के लिए कभी दंडित किया गया हो।

KNOW THE LAW :  अधिनियम चुनाव आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करता है। लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन) अधिनियम, 1966 ने चुनाव न्यायाधिकरणों को समाप्त कर दिया है। यह चुनाव याचिकाओं को उच्च न्यायालय में स्थांनांरित कर देता है जिसके आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकती है। हालांकि, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित विवादों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट प्रत्यक्ष तरीके से करता है।

अतीत में न्यायालय ने जिन प्रथाओं को भ्रष्ट आचरण के रूप में माना

अभिराम सिंह बनाम सी.डी. कॉमाचेन केस

वर्ष 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने ‘अभिराम सिंह बनाम सी.डी. कॉमाचेन मामले में माना कि धारा 123 (3) के अनुसार (जो इसे प्रतिबंधित करता है) अगर उम्मीदवार के धर्म, जाति, वंश, समुदाय या भाषा के नाम पर वोट मांगे जाते हैं तो चुनाव रद्द कर दिया जाएगा।

एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ

वर्ष 1994 में ‘एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ’ में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि RPA अधिनियम, 1951 की धारा 123 की उपधारा (3) का हवाला देते हुए धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों में धर्म का अतिक्रमण सख्ती से प्रतिबंधित है।

एस. सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु राज्य 

वर्ष 2022 में सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2013 के ‘एस. सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु राज्य’ फैसले पर पुनर्विचार करते हुए यह माना कि मुफ्त उपहारों के वादों को एक भ्रष्ट आचरण नहीं कहा जा सकता है। हालाँकि इस मामले पर अभी फैसला होना है।

 

TAGGED: KNOW THE LAW :, POLITICIAN, कानून, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951, नेता
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