गरियाबंद- संतान की सुख-समृद्धि की कामना का पर्व हलषष्ठी (खमरछठ) मंगलवार को श्रद्धा-उल्लास से मनाया गया। माताओं ने अपनी संतान की लंबी आयु और खुशहाली के लिए विधिवत पूजा-अर्चना की। पूजा में बिना हल जोते उगने वाले फसल (पसहर चावल) और छह प्रकार की भाजियों का भोग लगाया गया। पूजा के पश्चात महिलाओं ने पसहर चावल को पकाकर खाया और व्रत का पारण किया। शहर के पुराना मंगल बजार शिशुमंदिर वार्ड नम्बर 15 से लेकर सिविल लाइन गोवर्धन पारा, सतोषी वार्ड और पुलिस लाइन समेत अनेक जगहों पर महिलाओं ने पूजा की। इसके अलावा मंदिरों में इस दौरान महिलाएं पूजा करने के लिए पहुंची थीं।
मिट्टी, गोबर से बनाया तालाब और हरछठ गाड़ा: महिलाएं सुबह स्नान-ध्यान करके दोना, टोकनी में पूजन सामग्री लेकर मंदिर पहुंचीं और पूजा स्थल को गोबर से लीपकर गड्ढा खोदकर सगरी बनाई। इसके चारों ओर मुरबेरी का पेड़, ताग, पलाटा की शाखा बांधकर हरछठ को गाड़ा। इसके बाद विधिवत भगवान गणेश, शंकर, माता पार्वती, छठ माता की पूजा करके पसहर चावल के व्यंजन का भोग लगाया। अन्य पूजन सामग्रियों में महुआ, चना, भैंस का दूध, दही, घी, जौ, गेहूं, धान, अरहर, मक्का, मूंग, हरी कुजरिया, भुने चने व जौ की बालियां अर्पित कर पूजा की।
हल्दी से भीगा हुआ पोता माता द्वारा दिया गया रक्षा कवच का प्रतीक है।- श्यामकली तिवारी
इस अवसर पर बुजुर्ग माहिल और बड़ी माँ के नाम से परिसिद्ध महिला श्यामकली तिवारी ने बताया कि इस उम्र में और तबियत की वजह से व्रत रखना मुश्किल होता है पर आज से 30 वर्ष पहले इस व्रत इस दिन हम सुबह महुआ पेड़ की डाली का दातून करके स्नान करती हैं। व्रत के दौरान महिलाएं इस दिन भैंस दूध की चाय पीती हैं और दोपहर के बाद घर के आंगन में या गांव के चौपाल में सगरी बनाकर जल भरकर पूजा-अर्चना करते थे। साड़ी आदि सुहाग की सामग्री चढ़ाती है। पूजन के बाद माताएं अपने संतान के पीठ पर हल्दी से भीगा हुआ पोता मारते हैं, जो माता द्वारा दिया गया रक्षा कवच का प्रतीक है।
छत्तीसगढ़ में कमरछठ के दिन हल को छूना तो दूर हल चली जमीन पर भी महिलाएं पैर नहीं रखती और हल चले अनाज को ग्रहण नहीं करती।-वर्षा तिवारी
माता देवकी ने रखा था व्रत
वर्षा तिवारी ने आगे बताया कि द्वापर युग में माता देवकी के 6 पुत्रों को जब उसके भाई कंस के आदेश पर मार दिया गया तब देवर्षि नारदजी की प्रेरणा से माता देवकी ने छठ माता का व्रत रखा जिससे उनके संतान की रक्षा हुई। इसी मान्यता के चलते छठ पूजा की जाती है। भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। बलराम शस्त्र के रूप में कृषि कार्यों में इस्तेमाल होने वाले हल को धारण करते थे।
इसी दिन पैदा हुए थे बलराम
भादों कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। कृषि कार्यों में इस्तेमाल किए जाने वाले हल को शस्त्र के रूप में बलराम धारण करते थे। इसके चलते इस पर्व को हलषष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। हलषष्ठी व्रत की पूजा में बिना हल जोते पैदा होने वाले अनाज के अलावा छह प्रकार की भाजी का भोग लगाकर पूजा-अर्चना करने की मान्यता है। इस अवसर पर ये रहे उपस्थित वर्षा तिवारी शालू मोहरे चंद्रिका ठाकुर सोनी साहू साधना सेन पूनम पारख एवं अन्य महिलायें उपस्थित रही