हल छठ का त्योहार हिंदू धर्म में हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष को मनाया जाता है। इसे कई नामों जैसे पीन्नी छठ, खमर छठ, राधन छठ, चंदन छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ, ललही छठ, हलछठ, हरछठ व बलराम जयंती के रूप में भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हल छठ व्रत संतान की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है।
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षष्ठी तिथि 4 सितंबर 2023 की शाम 4.41 बजे से शुरू होगी और दूसरे दिन 5 सितंबर 2023 की दोपहर 3.36 मिनट तक रहेगी। इस तरह से यह व्रत 5 सितंबर दिन मंगलवार को किया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। भगवान बलराम को भगवान विष्णु के 8वें अवतार के भाई के रूप में पूजा जाता है।
पूजन की विधि
इस दिन महिलाएं दीवार पर गोबर से हल छठ का चित्र बनाती हैं। इसमें गणेश-लक्ष्मी, शिव-पार्वती, सूर्य-चंद्रमा, गंगा-जमुना आदि बनाए जाते हैं। इसके बाद हरछठ के पास कमल के फूल, छूल के पत्ते व हल्दी से रंगा कपड़ा भी रखा जाता है। हलषष्ठी की पूजा में पसाई के चावल, महुआ व दही आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस पूजा में सतनजा यानी कि सात प्रकार का भुना हुआ अनाज चढ़ाया जाता है। इसमें भूने हुए गेहूं, चना, मटर, मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर आदि शामिल होते हैं। इसके बाद हलषष्ठी माता की कथा सुनी जाती है।
हल छठ व्रत की कथा
रीजलन लेवल पर कई कहानियां हैं, लेकिन यह कहानी काफी लोकप्रिय है। एक ग्वालिन दूध दही बेचकर जीवन यापन करती थी। एक बार जब वह गर्भवती थी तभी दूध बेचने जाते समय रास्ते में उसे दर्द होने लगा और उसने एक पेड़ के नीचे पुत्र को जन्म दिया। इस दाैरान ग्वालिन को दूध खराब होने की चिंता हो रही थी तो वह बेटे को एक पेड़ के नीचे सुलाकर दूध बेचने चली गई। उस दिन हर छठ का व्रत था और उसने गाय के दूध को भैंस का बताकर सभी को बेच दिया। इससे छठ माता क्रोधित हो गईं और उसके पुत्र की मृत्यु हो गई। जब ग्वाइलिन वापस आई तो रोने लगी और अपनी गलती का अहसास कर सबसे माफी मांगी। इसके बाद हर छठ माता ने उसके पुत्र को जीवित कर दिया। इसलिए इस दिन महिलाएं अपनी संतान के लिए विधिविधान से व्रत रखती हैं।