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Ganesh Chaturthi 2023 : कब है गणेश चतुर्थी  जानिए  तिथि और पूजा मुहूर्त ?

Jagesh Sahu
Last updated: 2023/09/14 at 7:07 PM
Jagesh Sahu
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14 Min Read
Ganesh Chaturthi 2023 : कब है गणेश चतुर्थी  जानिए  तिथि और पूजा मुहूर्त ?
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ग्रैंड न्यूज़ डेस्क।  Ganesh Chaturthi 2023 : गणेश उत्सव का यह पर्व भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू कर चतुर्दशी तिथि के दिन तक जारी रखने की परंपरा रही है। मान्यता है कि, शुभ मुहूर्त में गणपति की स्थापना कर पूजा अर्चना करने से लाभकारी फल प्राप्त होते हैं। इस वर्ष चतुर्थी तिथि की शुरुआत 18 सितंबर को दोपहर 2:09 बजे पर होगी और इसका समापन 19 सितंबर को दोपहर 3:13 बजे होगा। उदया तिथि के आधार पर गणेश चतुर्थी 9 सितंबर को मनायी जाएगी। गणेश प्रतिमा की स्थापना का शुभ मुहूर्त 19 सितंबर को सुबह 11 बजकर 08 मिनट से दोपहर 01 बजकर 34 मिनट तक है।

Contents
Stories of Ganesha in Hindi – गणेश की 5 सर्वोत्तम पौराणिक कथायेकैसे पाताल लोक के राजा बने गणपति – Ganesh ji ki kathaजब गणपति ने चुराया ऋषि गौतम की रसोई से भोजन – Ganesh ji ki kathaजब गणपति ने किया सारे देवताओं को यज्ञ में निमंत्रित – Ganesh ji ki kathaजब शनि की कुदृष्टि पड़ी गणेश पर – Ganesh ji ki katha
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भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से गणेश उत्सव की शुरुआत होती है। गणेश उत्सव का यह पावन पर्व 10 दिनों तक चलता है। वहीं अनंत चतुर्दशी के दिन इस उत्सव का समापन होता है। इस दौरान लोग ढोल नगाड़ों के साथ बड़ी ही धूमधाम से बप्पा को अपने घर लाते हैं। पूरे गणेश उत्सव के दिनों में चारों ओर बप्पा के नाम का उद्घोष सुनाई पड़ता है। गणेश उत्सव का पर्व हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। गणपति बप्पा बुद्धि और शुभता के देवता हैं। उन्हें विघ्नहर्ता भी कहा जाता है, उनका हर नाम बहुत चमत्कारी है। कहा जाता है कि जहां पर बप्पा विराजते हैं वहां हर समय सुख-समृद्धि रहती है। ऐसे में आइए जानते हैं गणेश स्थापना और गणेश विसर्जन कब है…

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यह भी पढ़ें – CG BREAKING : छत्तीसगढ़ के इस जिले में गणेश चतुर्थी समेत इन त्यौहारों की छुट्टी को लेकर संशोधित आदेश जारी
गणेश उत्सव का महत्व
गणेश जी बुद्धि और शुभता के देवता हैं, जहां पर बप्पा विराजते हैं वहां हर समय सुख-समृद्धि रहती है। मान्यता है कि जो व्यक्ति गणेश उत्सव के दिनों में गणेश जी को घर में बैठाकर सच्चे मन से उनकी आराधना करता है, उसके जीवन में खुशियां आती हैं।

Stories of Ganesha in Hindi – गणेश की 5 सर्वोत्तम पौराणिक कथाये

Ganesh ji ki katha – भगवान गणेश जी की कथा कहानी (lord ganesh stories) का वर्णन अनेक ग्रंथों में मिलता है। श्रीगणेश ने कई लीलाएं ऐसी की हैं, जो कृष्ण की लीलाओं से मिलती-जुलती हैं। इन लीलाओं का वर्णन मुद्गलपुराण, गणेशपुराण, शिवपुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। श्री गणेश का पूर्ण जीवन ही रोचक घटनाओं से भरा है और इसी में से एक है कि आखिर क्यूं श्री गणेश जी की पूजा पर तुलसी अर्पित नहीं की जाती है।

 

भगवान गणेश तथा तुलसी कथा – Ganesh ji ki katha

 

प्राय: पूजा-अर्चना में भगवान को तुलसी चढ़ाना बहुत पवित्र माना जाता है। व्यावहारिक दृष्टि से भी तुलसी को औषधीय गुणों वाला पौधा माना जाता है। किंतु भगवान गणेश की पूजा में पवित्र तुलसी का प्रयोग निषेध माना गया है। इस संबंध में एक पौराणिक गणेश जी की कथा है –

एक बार श्री गणेश गंगा किनारे तप कर रहे थे। तभी विवाह की इच्छा से तीर्थ यात्रा पर निकली देवी तुलसी वहां पहुंची। वह श्री गणेश के रुप पर मोहित हो गई। तुलसी ने विवाह की इच्छा से उनका ध्यान भंग किया। तब भगवान श्री गणेश ने तुलसी द्वारा तप भंग करने को अशुभ बताया और तुलसी की मंशा जानकर स्वयं को ब्रह्मचारी बताकर उसके विवाह प्रस्ताव को नकार दिया।

इस बात से दु:खी तुलसी ने श्री गणेश के दो विवाह होने का शाप दिया। इस श्री गणेश ने भी तुलसी को शाप दे दिया कि तुम्हारी संतान असुर होगी। एक राक्षस की मां होने का शाप सुनकर तुलसी ने श्री गणेश से माफी मांगी। तब श्री गणेश ने तुलसी से कहा कि तुम्हारी संतान शंखचूर्ण राक्षस होगा।किंतु फिर तुम भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण को प्रिय होने के साथ ही कलयुग में जगत के लिए जीवन और मोक्ष देने वाली होगी। पर मेरी पूजा में तुलसी चढ़ाना शुभ नहीं माना जाएगा। तब से ही भगवान श्री गणेश जी की पूजा में तुलसी वर्जित मानी जाती है।

कैसे पाताल लोक के राजा बने गणपति – Ganesh ji ki katha

एक बार गणपति मुनि पुत्रों के साथ पाराशर ऋषि के आश्रम में खेल रहे थे। तभी वहां कुछ नाग कन्याएं आ गईं। नाग कन्याएं गणेश को आग्रह पूर्वक अपने लोक लेकर जाने लगी। गणपति भी उनका आग्रह ठुकरा नहीं सके और उनके साथ चले गए।

नाग लोक पहुंचने पर नाग कन्याओं ने उनका हर तरह से सत्कार किया। तभी नागराज वासुकि ने गणेश को देखा और उपहास के भाव से वे गणेश से बात करने लगे, उनके रूप का वर्णन करने लगे। गणेश को क्रोध आ गया। उन्होंने वासुकि के फन पर पैर रख दिया और उनके मुकुट को भी स्वयं पहन लिया।

वासुकि की दुर्दशा का समाचार सुन उनके बड़े भाई शेषनाग आ गए। उन्होंने गर्जना की कि किसने मेरे भाई के साथ इस तरह का व्यवहार किया है। जब गणेश सामने आए तो शेषनाग ने उन्हें पहचान कर उनका अभिवादन किया और उन्हें नागलोक यानी पाताल का राजा घोषित कर दिया।

 

जब गणपति ने चुराया ऋषि गौतम की रसोई से भोजन – Ganesh ji ki katha

एक बार बाल गणेश अपने मित्र मुनि पुत्रों के साथ खेल रहे थे। खेलते-खेलते उन्हें भूख लगने लगी। पास ही गौतम ऋषि का आश्रम था। ऋषि गौतम ध्यान में थे और उनकी पत्नी अहिल्या रसोई में भोजन बना रही थीं। गणेश आश्रम में गए और अहिल्या का ध्यान बंटते ही रसोई से सारा भोजन चुराकर ले गए और अपने मित्रों के साथ खाने लगे। तब अहिल्या ने गौतम ऋषि का ध्यान भंग किया और बताया कि रसोई से भोजन गायब हो गया है।

ऋषि गौतम ने जंगल में जाकर देखा तो गणेश अपने मित्रों के साथ भोजन कर रहे थे। गौतम उन्हें पकड़कर माता पार्वती के पास ले गए। माता पार्वती ने चोरी की बात सुनी तो गणेश को एक कुटिया में ले जाकर बांध दिया। उन्हें बांधकर पार्वती कुटिया से बाहर आईं तो उन्हें आभास होने लगा जैसे गणेश उनकी गोद में हैं, लेकिन जब देखा तो गणेश कुटिया में बंधे दिखे। माता काम में लग गईं, उन्हें थोड़ी देर बाद फिर आभास होने लगा जैसे गणेश शिवगणों के साथ खेल रहे हैं।

उन्होंने कुटिया में जाकर देखा तो गणेश वहीं बंधे दिखे। अब माता को हर जगह गणेश दिखने लगे। कभी खेलते हुए, कभी भोजन करते हुए और कभी रोते हुए। माता ने परेशान होकर फिर कुटिया में देखा तो गणेश आम बच्चों की तरह रो रहे थे। वे रस्सी से छुटने का प्रयास कर रहे थे। माता को उन पर अधिक स्नेह आया और दयावश उन्हें मुक्त कर दिया।

 

जब गणपति ने किया सारे देवताओं को यज्ञ में निमंत्रित – Ganesh ji ki katha

एक बार भगवान शिव के मन में एक बड़े यज्ञ के अनुष्ठान का विचार आया। विचार आते ही वे शीघ्र यज्ञ प्रारंभ करने की तैयारियों में जुट गए। सारे गणों को यज्ञ अनुष्ठान की अलग-अलग जिम्मेदारियां सौंप दी गई। सबसे बड़ा काम था यज्ञ में सारे देवताओं को आमंत्रित करना। आमंत्रण भेजने के लिए पात्र व्यक्ति का चुनाव किया जाना था, जो समय रहते सभी लोकों में जाकर वहां के देवताओं को ससम्मान निमंत्रण दे आए।

ऐसे में किसी ऐसे व्यक्ति का चयन किया जाना था, जो तेजी से जाकर ये काम कर दे, लेकिन भगवान शिव को ये भी डर था कि कहीं आमंत्रण देने की जल्दी में देवताओं का अपमान ना हो जाए। इसलिए उन्होंने इस काम के लिए गणेश का चयन किया। गणेश बुद्धि और विवेक के देवता हैं। वे जल्दबाजी में भी कोई गलती नहीं करेंगे, ये सोचकर शिव ने गणपति को बुलाया और उन्हें समस्त देवी-देवताओं को आमंत्रित करने का काम सौंपा।

गणेश ने इस काम को सहर्ष स्वीकार किया, लेकिन उनके साथ समस्या यह थी कि उनका वाहन चूहा था, जो बहुत तेजी से चल नहीं सकता था। गणेश ने काफी देर तक चिंतन किया कि किस तरह सभी लोकों में जाकर आदरपूर्वक सारे देवताओं को यज्ञ में शामिल होने का आमंत्रण दिया जाए। बहुत विचार के बाद उन्होंने सारे आमंत्रण पत्र उठाए और पूजन सामग्री लेकर ध्यान में बैठे शिव के सामने बैठ गए।

गणेश ने विचार किया कि यह तो सत्य है कि सारे देवताओं का वास भगवान शिव में है। उनको प्रसन्न किया तो सारे देवता प्रसन्न हो जाएंगे। ये सोचकर गणेश ने शिव का पूजन किया और सारे देवताओं का आह्वान करके सभी आमंत्रण पत्र शिव को ही समर्पित कर दिए। सारे आमंत्रण देवताओं तक स्वत: पहुंच गए और सभी यज्ञ में नियत समय पर ही पहुंच गए। इस तरह गणेश ने एक मुश्किल काम को अपनी बुद्धिमानी से आसान कर दिया।

 

जब शनि की कुदृष्टि पड़ी गणेश पर – Ganesh ji ki katha

वैसे तो गणेश की गज आकृति को लेकर सबसे ज्यादा सुनी-सुनाई जाने वाली कथा तो यही है कि पार्वती ने नहाने से पहले एक बालक की आकृति बनाकर उसमें प्राण डाल दिए और उसे पहरे पर बैठा दिया। जिसका सिर शिव ने काटा था और फिर पार्वती के क्रोध को शांत करने के लिए एक हाथी के बच्चे का सिर जोड़ दिया, लेकिन कुछ पुराणों में इसके अलग-अलग संदर्भ भी मिलते हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण में कथा कुछ अलग ही है।

कथा कुछ ऐसी है कि एक बार भगवान शिव के शिष्य शनि देव कैलाश पर्वत पर आए। उस समय शिव ध्यान में थे तो शनिदेव सीधे पार्वती के दर्शन के लिए पहुंच गए। तब पार्वती बालक गणेश के साथ बैठी थीं। बालक गणेश का मुख सुंदर और हर तरह के कष्ट को भुला देने वाला था। शनिदेव आंखें नीची किए पार्वती से बात करने लगे।

पार्वती ने देखा कि शनिदेव किसी को देख नहीं रहे हैं। वे लगातार अपनी निगाहें नीची किए हुए हैं। पार्वती ने शनि देव से पूछा कि वे किसी को देख क्यों नहीं रहे हैं? क्या उनको कोई दृष्टिदोष हो गया है? शनिदेव ने कारण बताते हुए कहा कि उन्हें उनकी पत्नी ने शाप दिया है कि वो जिसे देखेंगे उसका विनाश हो जाएगा।

पार्वती ने पूछा कि उनकी पत्नी ने ऐसा शाप क्यों दिया है तो शनिदेव कहने लगे कि मैं लगातार भगवान शिव के ध्यान में रहता हूं। एक बार में ध्यान में था और मेरी पत्नी ऋतुकाल से निवृत्त होकर मेरे समीप आई लेकिन ध्यान में होने के कारण मैंने उसकी ओर देखा नहीं।

उसने इसे अपना अपमान समझा और मुझे शाप दे दिया कि मैं जिसकी ओर देखूंगा, उसका विनाश हो जाएगा। ये बात सुन कर पार्वती ने कहा कि आप मेरे पुत्र गणेश की ओर देखिए, उसके मुख का तेज समस्त कष्टों को हरने वाला है।

शनिदेव गणेश पर दृष्टि डालना नहीं चाहते थे लेकिन वे माता पार्वती के आदेश की अवहेलना भी नहीं कर सकते थे, सो उन्होंने तिरछी निगाह थे गणेश की ओर धीरे से देखा। शनि देव की दृष्टि पड़ते ही बालक गणेश का सिर धड़ से कटकर नीचे गिर गया। तभी भगवान विष्णु एक गज बालक का सिर लेकर पहुंचे और गणेश के सिर पर उसे स्थापित कर दिया।

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