ग्रैंड डेस्क। JUDICIARY UPDATE : लोकतंत्र के तीन स्तम्भ हैं विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका। इन तीन स्तम्भों के बीच अधिकारों और शक्तियों का बँटवारा भारतीय संविधान में किया गया है। इसके बावजूद न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संघर्ष की ख़बरें आती रहती हैं।
हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति का मामला, एक ऐसा पहलू है, जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार आपस में पिछले कई दशक से उलझते हुए देखे गए हैं। हालांकि इंदिरा गांधी सरकार के दो फ़ैसले को छोड़ दें, तो पिछले 8 साल में इस मामले पर देश की सर्वोच्च अदालत और केंद्र सरकार के बीच यह जद्दोजहद ज़्यादा देखने को मिली है।
कॉलेजियम सिस्टम हैं मूल वजह
जजों की नियुक्ति को लेकर कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच जो टकराहट है, उसके जड़ में कॉलेजियम सिस्टम और उससे जुड़े तमाम पहलू हैं। इस मसले को विस्तार से समझने से पहले हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की ओर से आई सख़्त टिप्पणी या कहें चेतावनी को जान लेते हैं। अब सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसी बात कह दी है, जिससे लगने लगा है कि भविष्य में जजों की नियुक्ति में देरी को लेकर सर्वोच्च अदालत से कुछ बड़ा फ़ैसला आ सकता है या फिर सुप्रीम कोर्ट कोई दिशानिर्देश जारी कर सकता है।
कॉलेजियम की सिफ़ारिशें सरकार पर बाध्यकारी
दरअसल सुप्रीम कोर्ट जजों की नियुक्ति और कॉलेजियम की सिफ़ारिशों पर केंद्र सरकार के लटकाने वाले रवैये से बेहद नाराज़ है। इसी को लेकर 26 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने केंद्र सरकार से कहा है कि वो हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति पर टालमटोल का रवैया छोड़ दे, वर्ना दिक़्क़त का सामना करने के लिए तैयार रहे। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ की मुख्य चिंता हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर के कॉलेजियम प्रस्ताव को लेकर है, जो केंद्र सरकार के पास कई महीनों से लंबित है।
सिफारिशें रहती हैं लंबित
हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति में देरी को लेकर एडवोकेट्स एसोसिएशन बेंगलुरु की ओर से दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रही है। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की ओर से की गई 70 कॉलेजियम सिफ़ारिशें केंद्र सरकार के पास 11 नवंबर, 2022 से लंबित हैं। इनमें से 7 नाम ऐसे हैं, जिन्हें कॉलेजियम ने दोहराया है। इनमें अलग-अलग हाई कोर्ट के 26 जजों के ट्रांसफर का भी मामला शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने स्पष्ट कर दिया है कि, 9 अक्टूबर तक इस मसले पर कुछ नतीजों के साथ केंद्र सरकार वापस आए या फिर परेशानी का सामना करने के लिए तैयार रहे। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि, अलग-अलग हाईकोर्ट की ओर से जिन नामों की सिफ़ारिश की गई है, वे नाम अभी तक सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम के पास नहीं पहुंचे हैं। इस मामले की अगली सुनवाई 9 अक्टूबर को होगी।
कॉलेजियम की प्रक्रिया को लेकर होता रहता हैं विवाद
यह सिर्फ़ एक उदाहरण भर है। जजों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार आमने-सामने होते रहे हैं। दरअसल देश में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति और हाईकोर्ट के जजों के तबादले की जो प्रक्रिया है, उसमें न्यायपालिका की भूमिका निर्णायक है। इसमें केंद्र सरकार की निर्णय लेने के मामले में कोई ज़्यादा भूमिका नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम जो सिफ़ारिश करती है, उससे मानना केंद्र सरकार के लिए बाध्यकारी है। हालांकि केंद्र सरकार उन सिफ़ारिशों को कितने दिनों में वास्तविक धरातल पर उतारेगी, इसको लेकर कोई स्पष्टता या निर्देश न तो संविधान में है और न ही कॉलेजियम सिस्टम के बनने से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के आदेशों में है। इसकी वज्ह से अक्सर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर केंद्र और न्यायपालिका के बीच टकराहट सामने आते रहती है।