छत्तीसगढ़ की समृद्ध शाली संस्कृति और परम्पराओं में अनेक विविधता का इन्दधनुषी छटा देखने को मिलता है जिसमें कई तीज त्यौहार धार्मिक मान्यताओं को तो कई इतिहासों और संस्कृति परंपरा और मानवीय सभ्यता से जुड़े होने से यहां हर पर्व खूबसूरत रंगों का सुंदरता बढाती है। ऐसे ही हमारे देश और राज्य का सबसे बड़ा पर्व दीपावली कई पौराणिक कथाओं के साथ परम्पराओं का परिचय कराते हुए दशहरा मनाने के पूरे 20दिनो तक का माहौल दीपावली जैसे होता है जिसमें किसानों का फसल कटाई के साथ साथ ग्रामीण महिलाओं और बालिकाओं द्वारा सुआ नृत्य गीत की टोली बनाकर एक दूसरे ग्रामों में नाचते गाते हुए भ्रमण करना वहीं दूसरी ओर घरों की सफाई लिपाई पुताई और घर के प्रमुखों द्वारा त्योहार की सामग्री की खरीदारी करने आसपास के बाजारों में आने जाने का क्रम लगातार बना रहता है जिसका उमंग और उल्लास लगातार बीस दिनों तक देखते बनता है।
ऐसी परंपराओं को सहेजने जुट जाती है ग्रामीण महिलाएं और बालिकाएं जिसमें बांस की निर्मित टोकनी और मिट्टी से बनी तोता जिसे सुआ या पडकी कहा जाता है को लेकर तरी हरि नाना गाती हुई गांव गांव जाती है जिसमें नारी विरह वेदना की प्रमुखता यानि पति का परदेश चले जाने पर घर मे पाले गए तोते को अकेली रह रही पत्नी विरह व्यथा गा गाकर बताती है यही नहीं इसके साथ ही पुराणों के कथा राम कृष्ण गोप ग्वालिन भक्त प्रह्लाद ध्रुव तारावती हरिश्चंद्र सत्यवान सावित्री के विशेषता और लोक जीवन से जुड़े विशेषताओं का उल्लेख किया जाता है।
एक तरफ धान की कटाई मिसाई, दूसरे तरफ छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव का प्रचार
अंचल में अभी पूरा रंग त्योहार जैसा बना हुआ है जिसमें एक तरफ धान की कटाई मिसाई दूसरे तरफ छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव का प्रचार प्रसार लाउडस्पीकर का बजना तो हमारी बहन बेटियां सुआ नृत्य की टोलियां बनाकर सड़कों गांवों की गलियों चौराहों में नाचती गाती दिखाई दे रही है।
खबर नागेश तिवारी