नर्मदापुरम जिले के सोहागपुर तहसील में एक ऐसा मेला लगता है जिसमें क्षेत्र के सभी 150- 200 तांत्रिक यहां आकर तंत्र की देवी गांगों की परिक्रमा करते है ये तांत्रिक अपने साथ अपने अपने निशान के रूप में ढाला ले कर आते है। जिसे ये सभी तांत्रिक मोर पंखों से सजा कर गांगों देवी के पास लेकर आते है। यहां इस प्रकार का मेला पिछले 150 सालों से लगता आ रहा है। जिसेे सोहागपुर के सुखराम कोरी अपने पूर्वजो द्वारा शुरू की गई परंपरा को बकायदा आज भी बनाए हुए है। इस मेले को लेकर यहां काफी उत्साह बना रहता है।
– सोहागपुर में पिछले 150 वर्षो से एक परंपरा चली आ रही है जिसे बनाए रखने के लिए यहां तांत्रिको का मेला लगता है। इस मेले की खास विशेषता यह है कि यहां आसपास के 150 से लेकर 200 तांत्रिक अपनी तंत्र विधा की देवी की पूजा करने और उसकी परिक्रमा करने इस मेले में शामिल होते है । गौरतलब है कि यहां तांत्रिको को स्थानीय भाषा में पडियार कहा जाता है। नर्मदापुरम के आदिवासी अंचल और खासकर पचमढ़ी के जंगलों में बसे ग्रामीण क्षेत्रों में तंत्र विधा को जानने वालो की संख्या काफी है। जिसके चलते ये सभी आदिवासी तांत्रिक इस मेले में शामिल हो कर देवी की सामने आकर अराधना करते है और अपने अपने निशान के रूप में ढाला लेकर आते है जिसे एक बांस में मोर पंखों को सजा कर बनाया जाता है।
जानिए क्या है मान्यता
सोहागपुर में भाई दूज के दिन मनाया जा वाले वाले पर्व को लेकर ऐसा बताया जाता है कि भगवान शिव के गण भीलट देव और तंत्र की देवी गांगों दोनोें तंत्र विधा में माहिर थें। एक समय ऐसा आया कि दोनों आपस में ही अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने लगे जिसमें तंत्र की देवी गांगों ने भीलट देव को तंत्र विधा के दम पर बैल बना दिया। शिव जी ने दोनों को आपस में लडता देख समझाया और कहा कि तुम दोनो भाई बहिन हो आपस में लडना बंद करो, गांगो को आर्शिवाद देकर कहा कि आज से सभी तंत्र के देवता और गण गांगों की भाई दूज के दिन पूजा करके परिक्रमा करेगें। तभी से तंत्र के जानने वाले पडियार गांगो माता की पूजा करते है। तांत्रिको के मेले मेें जितने भी तांत्रिक यानि पडियार शामिल होते है वे अपनी निशानी लेकर जरूर आते है । इस मेले की एक और खास बात है कि तंत्र की देवी की पूजा और परिक्रमा तब तक शुरू नही होती तब तक भीलट देव का निशान वहां नही आ जाता। भीलट देव का निशान एक बांस में लोटा बांधकर बनाया जाता है और बाकी तांत्रिक गण अपने निशान बांस में मोर पंख बांधकर बनाते है।
लगभग 150 वर्ष पूर्व सुखराम कोरी के पूर्वजो द्वारा की गई थी
सोहागपुर में तंत्र विधा के मेले की शुरूआत लगभग 150 वर्ष पूर्व सुखराम कोरी के पूर्वजो द्वारा की गई थी। सुखराम ने बताया कि हमारे पूर्वज इस देवी की प्रतिमा को शोभापुर के राजा से जीता था जिसे सुखराम के पूर्वज मिटटी की प्रतिमा को पैदल चला कर अपने तंत्र शक्ति के बल पर लाए थे। तभी से यहा तांत्रिक गांगों का मेला सुखराम का परिवार बकायदा परंपरा निभाते हुए लगावाता आ रहा है। इस मेले को लेकर लोगों मे काफी उत्साह बना रहता है। तांत्रिक गांगों देवी की मूर्ति को मिटटी और चमडे से बनाया जाता है देवी के हाथ में मुर्गी का अंडा रखा जाता है साथ ही जब सभी तांत्रिक परिक्रमा पूरी कर लेते है तब गांगों देवी के सामने मुर्गो की बलि दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस मेले में लोग अपनी किसी भी परेशानी और समस्या को लेकर आते है तो उनकी समस्याए भी हल हो जाती है।