दिवाली के पांच दिवसीय त्योहार के बाद छठ का उत्सव शुरू होता है, जिसके दौरान महिलाएं अपने बच्चों के लिए उपवास रखती हैं। इस साल यह त्योहार 17 नवंबर से 20 नवंबर तक मनाया जा रहा है। आज इसका दूसरा दिन है जिसे खरना के नाम से जाना जाता है। इस दिन, व्रती लगभग 8 से 12 घंटे की अवधि के लिए व्रत रखते हैं और गुड़ की खीर, कद्दू-भात और ठेकुआ-गुजिया जैसे व्यंजन बनाते हैं।
खरना तिथि
शुक्रवार को छठ का पहला दिन था। आज 18 नवंबर 2023 को छठ का दूसरा दिन है। दूसरे दिन खरना किया जाता है। इस दौरान सूर्योदय का समय सुबह 06:46 बजे का रहेगा और सूर्यास्त शाम 05:26 बजे होगा।
छठ पूजा के दूसरे दिन का महत्व
छठ पूजा के दूसरे दिन महिलाएं पूरे दिन उपवास रखती हैं। शाम के समय मिट्टी के नए चूल्हे पर गुड़ की खीर प्रसाद के रूप में बनाई जाती है। इसी प्रसाद को व्रती ग्रहण करते हैं।
छठ पूजा के दूसरे दिन महिलाएं पूरे दिन उपवास रखती हैं। शाम के समय मिट्टी के नए चूल्हे पर गुड़ की खीर प्रसाद के रूप में बनाई जाती है। इसी प्रसाद को व्रती ग्रहण करते हैं।
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इन नियमों की न करें अनदेखी
- छोटे बच्चों को पूजा का कोई भी सामान छूने नहीं दें।
- जब तक पूजा पूर्ण न हो जाए बच्चे को तब तक प्रसाद न खिलाएं, ।
- छठ पूजा के समय व्रती या परिवार के सदस्यों के साथ कभी भी अभद्र भाषा का उपयोग न करें।
- जो भी महिलाएं छठ मैय्या का व्रत रखें, वह सभी चार दिनों तक पलंग या चारपाई पर न सोते हुए जमीन पर ही कपड़ा बिछाकर सोएं।
- छठ पर्व के दौरान व्रती समेत पूरे परिवार सात्विक भोजन ग्रहण करे।
- पूजा की किसी भी चीज को छूने से पहले हाथ अवश्य साफ कर लें।
पूजा की सामग्री
- प्रसाद रखने के लिए बांस की दो बड़ी-बड़ी टोकरियां
- बांस या फिर पीतल का सूप
- एक लोटा (दूध और जल अर्पण करने के लिए)
- एक थाली
- पान
- सुपारी
- चावल
- सिंदूर
- घी का दीपक
- शहद
- धूप या अगरबत्ती
- शकरकंदी
- सुथनी
- गेहूं, चावल का आटा
- गुड़
- ठेकुआ
- व्रती के लिए नए कपड़े
- 5 पत्तियां लगे हुए गन्ने
- मूली, अदरक और हल्दी का हरा पौधा
- बड़ा वाला नींबू
- फल-जैसे नाशपाती, केला और शरीफा
- पानी वाला नारियल
मिठाईयां
खरना पूजा विधि
- आज से व्रतधारियों 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाएगा।
- महिलाएं आज शाम को पूजा करने के बाद 36 घंटे के लिए निर्जला उपवास रखेंगी और सूर्य को अर्घ्य देंगी।
- शाम के समय घी लगी रोटी, गूड़ की खीर, और फल से भगवान का भोग लगाया जाता है।
- भोग लगाने के बाद महिलाएं यह प्रसाद के तौर पर ग्रहण करती हैं
- इसके बाद से उनका 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है।
- यह उपवास चौथे दिन सूर्य को अर्घ्य देने के बाद समाप्त होता है।
- अगले दिन अर्घ्य देने के लिए महिलाएं एक दिन पहले से प्रसाद बनाने की तैयारी करने लगती हैं।