राजिम। 24 फरवरी से प्रारंभ हुए राजिम कुंभ कल्प मेला में 3 मार्च को संत समागम का उद्घाटन हुआ है। 3 मार्च से 8 मार्च तक चलने वाले संत समागम में देशभर से महामंडलेश्वर, महंत सहित बड़ी संख्या में साधु-संत का आगमन हुआ है।
read more: Rajim Kumbh Mela 2024 : 180 दूल्हों ने धूमधाम से निकाली बारात, अधिकारी कर्मचारी भी हुए शामिल, देखें वीडियो
आयोजन का मोर्चा संभाले धर्मस्व, पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की माताश्री का अचानक देहावसन हो जाने के चलते मंत्री बृजमोहन अग्रवाल शोक के कारण राजिम मेला में नहीं आ पाये। इस आपातकालीन विषम परिस्थिति के बावजूद मंत्री बृजमोहन अग्रवाल बीच-बीच में राजिम कुंभ मेले में आकर स्थिति का जायजा लेते है। मंत्री अग्रवाल ने कहा कि उनका शरीर भले ही इस मेले में नहीं था लेकिन आत्मिक रूप से वे हमेशा मेले से जुड़े थे। इन तमाम स्थिति परिस्थिति के बावजूद बृजमोहन अग्रवाल लगातार मेले में आकर व्यवस्थाओं की जानकारी लेते रहें अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों को उचित दिशा-निर्देश देते रहें।
हर वर्ष यहाँ आए यही मेरी हार्दिक इच्छा है बिना संत के राजिम कुंभ अधूरा
संत समागम उद्घाटन के बाद धर्मस्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल संत, महंत एवं महामंडलेश्वरों की कुटिया में जाकर उनसे भेंट कर आशीर्वाद लिया और राजिम कुंभ कल्प 2024 के आयोजन पर उनके विचारों से अवगत हुए। बाल योगेश्वर रामबालक दास महाराज जी, दण्डी स्वामी सच्चिदानंद जी महाराज, ब्रह्म कुमार नारायण भाई जी, पुष्पा बहन जी, महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञान स्वरूपानंद अक्रिय जी महाराज के साथ ही प्रत्येक कुटिया और डोम में पहुंचकर वहां की व्यवस्था के बारे में जानकारी ली। उन्होंने कहा कि रामोत्सव थीम पर आयोजित राजिम कुंभ को और भी ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए संत समागम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हमेशा छत्तीसगढ़ की इस धरा में सुख-समृद्धि बढ़ती रहे और आप सभी संत अपना आशीर्वाद देने हर वर्ष यहाँ आए यही मेरी हार्दिक इच्छा है बिना संत के राजिम कुंभ अधूरा है।
धर्म और राजनीति का एक साथ कदम ताल हजारो लोगो ने देखा
कहते है कि राजनीति का अस्तित्व धर्म के बिना अधूरा है। धर्म ने हमेशा अपने आध्यामिक दर्शन से राजनीति का मार्ग प्रशस्त किया है। राजिम की त्रिवेणी संगम में धर्म और राजनीति का एक साथ कदम ताल हजारो लोगो ने देखा। जब राजनीति के प्रतिक बृजमोहन अग्रवाल और धर्म के प्रतिक साधु-संत एक साथ कुलेश्वर नाथ मंदिर, संत समागम स्थल पर कदम ताल करते हुए आगे बढ़ रहे थे। राजनीति को मिले धर्म के इस सानिध्य के कारण कुंभ अपनी संपूर्ण भव्यता के साथ ख्यातिपूर्ण सफलता के मार्ग पर अग्रसर है।
बृजमोहन अग्रवाल ने अपनी कुशल कौशल का परिचय देते हुए ये साबित कर दिया है
राजिम कुंभ की साकारता बृजमोहन अग्रवाल के संकल्पित अथक प्रयास का परिणाम है जो राजिम की संगम तट पर परिलक्षित हो रहा है। बृजमोहन अग्रवाल ने अपनी कुशल कौशल का परिचय देते हुए ये साबित कर दिया है कि आज भी प्राचीन परंपरा के अनुसार उनकी राजनीति धर्म के मार्गदर्शन और दिशा-निर्देश के साथ निरंतर आगे बढ़ रहे है यही है बृजमोहन अग्रवाल के राजनीतिक व्यक्तित्व का परिचायक। राजिम कुंभ की शुरूआत बृजमोहन अग्रवाल ने अपनी सरकार के सहयोग से आज से वर्षो पहले कर दी थी, लेकिन पिछले पांच वर्षा के अंतराल के बाद धुमिल हुआ, जिसे अग्रवाल ने कुंभ की भव्यता को ग्रहण से निकालकर पुनः उदितमान किया। जिससे धर्म आस्था और श्रद्धा के उज्जवल प्रकाश में ज्ञान की संगम में कुंभ के पर्व स्नान का स्वभाव पुनः छत्तीसगढ़ की जनमानस को मिला जिसके प्रति समस्त जनमानस कृतज्ञता पूर्ण भाव से बृजमोहन अग्रवाल के प्रति साधुवाद सहित आभार व्यक्त करते है। इस कुंभ से निकलने वाली उर्जावान किरणे जब जनमानस के आशीर्वाद के साथ एक नये दिव्य उर्जा में परिवर्तित होकर अपनी संपूर्ण शक्ति का संचार बृजमोहन अग्रवाल के संकल्प में संचालित होती है तब कुंभ जैसे महान आयोजनो का आकार साकार लेकर अपनी पूर्णता को प्राप्त करता है। आज उम्र के इस पड़ाव में बृजमोहन अग्रवाल जिस अदृश्य गतिज उर्जा के साथ काम करते है वो क्षेत्र की जनता और उनकी आत्मीय जनों का प्यार तथा संतो का आशीर्वाद तथा ईश्वर की अनुकम्पा से संभव है।
संस्कार की पणिनिती है जिसके कारण आज बृजमोहन अग्रवाल आज शिखर में
जिस आत्मीयता और सादगी के साथ बृजमोहन अग्रवाल एक-एक संतो से मिलकर उनकी कुशलक्षेम पूछकर व्यवस्थाओ के जानकारी के साथ शिष्टाचार आत्मसम्मान से राजिम में पहुंचने वाले समस्त संत महात्मा ही नहीं अपितु आने वाले कलाकार और श्रद्धालु जनों से ले रहे है उनकी इस शिष्टता के प्रति आने वाले लोग भी कृतज्ञ भाव से उनके सम्मान में झुक जाते है। यह बृजमोहन अग्रवाल को अपनी माता से मिले संस्कार की पणिनिती है जिसके कारण आज बृजमोहन अग्रवाल राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र के लोकप्रियता के शिखर में है।