अयोध्या के राम मंदिर में रामलला का सूर्य तिलक सूर्यदेव ने किया। दोपहर 12 बजकर 01 मिनट पर सूर्य अभिषेक प्रारंभ हुआ, जो करीब 5 मिनट तक चला।
आज रामनवमी पर अयोध्या के मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद विराजमान रामलला का पहला सूर्य तिलक हुआ। दोपहर 12 बजकर 01 मिनट पर वैज्ञानिकों के द्वारा बनाई तकनीक से रामलला के मस्तक पर सूर्य तिलक हुआ। जैसे ही रामलला के मस्तक पर सूर्य की पहली किरण पहुंची मंदिर का वातावरण भक्ति भाव में डूब गया। विधि-विधान के साथ भगवान राम की पूजा की गई और मंगल गीत और भजन गाया गया।
अयोध्या में दिखा दिव्य और अलौकिक नजारा
राम नवमी के मौके पर अयोध्या के राम मंदिर में रामलला के मस्तक पर हुआ सूर्य अभिषेक। अयोध्या में दिखा अलौकिक ,अनोखा सूर्यदेव और प्रभु राम का मिलन… भारी संख्या में भक्त इस समय मंदिर में एकत्रित हैं। लगातार मंगलगीत, भजन, कीर्तन और जयघोष हो रहे हैं। प्रशासन ने सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम किया है. जगह-जगह बैरियर लगाकर श्रद्धालुओं को कतार में दर्शन कराए जाने की व्यवस्था की गई है. दो पहिया और चार पहिया वाहनों के संचालन पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया है.
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वैज्ञानिकों ने बीते 20 वर्षों में अयोध्या के आकाश में सूर्य की गति अध्ययन किया है। सटीक दिशा आदि का निर्धारण करके मंदिर के ऊपरी तल पर रिफ्लेक्टर और लेंस स्थापित किया है। सूर्य रश्मियों को घुमा फिराकर रामलला के ललाट तक पहुंचाया गया। सूर्य की किरणें ऊपरी तल के लेंस पर पड़ीं। उसके बाद तीन लेंस से होती हुई दूसरे तल के मिरर पर पड़ीं। अंत में सूर्य की किरणें रामलला के ललाट पर 75 मिलीमीटर के टीके के रूप में दैदीप्तिमान हुईं। जो कि लगभग तीन मिनट तक टिकी रहीं। यह समय भी सूर्य की गति और दिशा पर निर्भर है।बता दे बेंगलुरु की कंपनी ने अष्टधातु के 20 पाइप से यह सिस्टम तैयार किया। कंपनी ने 1.20 करोड़ का ये सिस्टम मंदिर को डोनेट किया। 65 फीट लंबाई के इस सिस्टम में अष्टधातु के 20 पाइप लगाए गए। हर पाइप की लंबाई करीब 1 मीटर है। इन पाइप को फर्स्ट फ्लोर की सीलिंग से जोड़ते हुए मंदिर के अंदर लाया गया। गर्म किरणें रामलला के मस्तक पर न पड़े, इसलिए फिल्टर का इस्तेमाल किया गया। सूर्य तिलक में लगने वाले पाइप से लेकर मिरर तक, सभी चीजें बेंगलुरु की कंपनी ऑप्टिक्स एंड एलाइड इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड (ऑप्टिका) ने तैयार कीं।
अष्टधातु का इस्तेमाल करना था, वहां सिर्फ अष्टधातु का इस्तेमाल
पाइप को मंदिर की दीवार के पीछे इस तरह से सेट किया गया कि वह किसी को दिखाई न दें। फिर एपर्चर के सहारे अन्य पाइप को जोड़ते हुए अंदर लाया गया। हर मोड़ पर एक लेंस और दर्पण लगाया गया, ताकि सूर्य की किरणें रिफ्लेक्ट होते हुए आगे बढ़ें। भगवान की प्रतिमा के सामने भी पाइप को इस तरह फिट किया गया कि वह किसी को दिखे नहीं। पाइप के अंतिम छोर पर भी एक दर्पण और लेंस का इस्तेमाल किया गया। इनके जरिए ही सूर्य की किरणें सीधे रामलला के मस्तक पर पड़ीं। इस पूरी डिजाइन में साइंटिफिक रीजन के साथ-साथ धार्मिक मान्यताओं का भी ख्याल रखा गया। दरअसल, मंदिर में मौजूद पुजारियों ने हमें बताया था कि लोहे के पाइप से सूर्य की किरणों का आना धार्मिक कारणों से ठीक नहीं था। इसलिए हमारी टीम ने कांच के अलावा, जहां भी अष्टधातु का इस्तेमाल करना था, वहां सिर्फ अष्टधातु का इस्तेमाल किया गया।