विवाहित महिलाओं के स्त्रीधन पर उनके अधिकार को मजबूत करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अहम फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘स्त्रीधन’ दंपत्ति की संयुक्त संपत्ति नहीं बन सकती है और पति का अपनी पत्नी की संपत्ति पर कोई नियंत्रण नहीं है। हालांकि वह मुसीबत के समय स्त्रीधन का इस्तेमाल तो कर सकता है, लेकिन बाद में उसे वापस लौटाना होगा।
यमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने स्त्रीधन को लेकर दायर एक वैवाहिक विवाद पर सुनवाई करते हुए कहा, ‘महिला को अपने स्त्रीधन पर पूरा अधिकार है, जिसमें शादी से पहले, शादी के दौरान या बाद में मिलीं हुईं सभी चीज़ें शामिल हैं, जैसे कि माता-पिता, ससुराल वालों, रिश्तेदारों और दोस्तों से मिले उपहार – धन, गहने, जमीन, बर्तन आदि।’पीठ ने कहा कि ‘यह महिला की पूर्ण संपत्ति है और उसे अपने इच्छानुसार बेचने या रखने का पूरा अधिकार है। पति का उसकी इस संपत्ति पर कोई नियंत्रण नहीं है। वह मुसीबत के समय इसका इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन फिर भी, उसका यह दायित्व है कि वह उसी संपत्ति या उसके मूल्य को अपनी पत्नी को वापस कर दे। इसलिए, स्त्रीधन पति-पत्नी की संयुक्त संपत्ति नहीं बनती है और पति के पास इसका स्वामित्व या स्वतंत्र अधिकार नहीं है।’ अदालत ने यह भी कहा कि अगर स्त्रीधन का बेईमानी से दुरुपयोग किया जाता है तो पति या उसके परिवार के सदस्यों पर IPC की धारा 406 के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है।
क्या है मामला?
एक महिला ने आरोप लगाया कि उसके गहने शादी के पहले ही दिन उसके पति ने ले लिए थे और रिश्ते में खटास आने के बाद और उनके अलग होने के फैसले के बाद उसने अपनी संपत्ति वापस पाने के लिए पारिवारिक अदालत का दरवाजा खटखटाया। 2009 में पारिवारिक अदालत ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया और उसके पति को उसे 8.9 लाख रुपये देने का आदेश दिया, लेकिन केरल हाईकोर्ट ने आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि पत्नी यह साबित करने में असफल रही है कि उसका ‘स्त्रीधन’ उसके पति ने लिया था।