दुर्ग |Mother’s Day 2024 Special Story: हर दिन गिरकर भी मुक्कमल खड़े हैं, ए जिंदगी देख मेरे हौसले तुझसे भी बड़े हैं। इस कथन को भिलाई की रहने वाली सरोजिनी पाणिग्रही सही साबित कर रही हैं। उनका अब तक का सफर काफी मुश्किलों भरा रहा है। उनकी शादी के कुछ साल बाद ही पति जगन्नाथपुरी की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई।
इसके बाद पति की मौत का सदमा और बच्चों की जिम्मेदारी सरोजिनी को अकेले उठानी थी. अचानक पड़ी बोझ से विचलित हुए बिना सरोजिनी ने जिम्मेदारी संभाली और चुनौतियों का डटकर मुकाबला किया. सरोजिनी की मेहनत के आगे तामम परेशानियों सरेंडर कर दिया और सरोजिनी ने सफलता की नई इमारत खड़ी कर दी. महज चार साल में सरोजिनी ने मेहनत और काबिलयत के दम पर कंपनी का दूसरा ब्रांच शुरू कर लिया.वर्तमान में दोनों कंपनी में करीब 45 कर्मचारी काम कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि 365 दिन माओं का होता है, लेकिन कहां जाता है कि भगवान हर जगह उपस्थित नहीं होते इसीलिए उन्होंने मां बनाया। मेरे भी पति के जाने के बाद सिंगल मदर के रूप में छोड़ गए थे। मेरी भी दो बच्चों का पालन पोषण भविष्य की जिम्मेदारी मुझ पर छोड़ चले गए थे। उनके भविष्य के लिए मैंने सोचा कि दोनों बच्चों को पढ़ाऊंगी। उनको एक अच्छे मुकाम पर पहुंचाऊंगी। मैं सिंगल रहते हुए भी बहुत कष्ट से दोनों बच्चों को पालन पोषण किया है, सरोजिनी बताती हैं, 5 दिसंबर 2007 को परिवार के साथ वे जगन्नाथपुरी से दर्शन कर लौट रही थी. इसी बीच एक सड़क हादसा हो गया. हादसे में सरोजनी के पति की मौके पर ही मौत हो गई.
सरोजिनी के साथ उनके दोनों बच्चे भी गाड़ी पर सवार थे. गनीमत रहा वे लोग लोग बच गए. इसके बाद बच्चों की देखरेख और पति द्वारा संचालित सरोज इंडस्ट्रीज की कमान इनके कंधे पर आ गई. शुरुआत में जैसे-तैसे काम संभाली और धीरे-धीरे आज महिलाओं के लिए हार नहीं मानी, खुद को बनाया मजबूत हादसे के बाद कुछ भी समझ नहीं आ रहा था. बच्चों की देखरेख के साथ ही पति की कंपनी की जिम्मेदारी भी संभालनी थी, क्योंकि इससे पहले कंपनी और व्यापार से दूर-दूर तक उनका कोई वास्ता नहीं था, लेकिन, सरोजिनी ने हार नहीं मानी, खुद को मजबूत बनाया और पति के सपने को साकार करने में लग गई. इस बीच कई चुनौतियां भी आई, लेकिन कहते हैं न कि संघर्ष कभी बेकार नहीं जाता.
बच्चों को देखकर सरोजनी को हिम्मत मिलती गई और हिम्मत ने सफलता के उस मुकाम तक पहुंचा दिया, जहां जाना कोई आम बात नहीं है.सरोजिनी बताती हैं, उनके पति नारायण अपनी कंपनी में दिन-रात मेहनत करते थे. उनकी मेहनत को देखकर वे उनसे इंस्पायर हुई थी. उनका सपना था कि इस फैक्ट्री को आगे बढ़ाया जाए. उन्होंने तो ऐसा नहीं कर पाया, लेकिन उनके जाने के बाद उनके सपने को साकार करने की कोशिश की जा रही है.
उन्होंने बताया कि महिला होने के नाते सामाजिक तानों के बावजूद वह कंपनी गई और पुरुषों के बीच रहकर सफलतापूर्वक काम को हर परिस्थिति के लिए रहे तैयार हैं, सरोजिनी कहती हैं कि जो हादसे उनके साथ हुआ किसी और के साथ होता तो टूट गई होती, लेकिन महिलाओं को टूटना नहीं चाहिए. सरोजनी कहती हैं, संकट और विपत्तियां आती रहती है, उनसे मुकाबला करने वाले ही समाज को नई दिशा देती हैं. महिलाओं को हर परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए, क्योंकि परिस्थिति कभी किसी को बताकर नहीं आती. कब क्या हो जाए, भरोसा नहीं. यदि गलती से भी हिम्मत हार गए और डिप्रेशन में चले गए तो सरवाइव करना मुश्किल हो जाता है।