गरियाबंद में भीषण गर्मी अब पक्षियों की मौत का कारण बनने लगी है। नवतपा के पाँचवे दिन बुधवार को दिन का तापमान बढकर 40 डिग्री के पार पहुंचा गया। मंगलवार रात का तापमान 35 डिग्री रहा। तपती गर्मी में दिन में सड़कों पर सन्नाटा रहा।गर्मी के कारण मानव ही नहीं पशु-पक्षी भी परेशान होने लगे है। तेज गर्मी खासकर चमगादड़ के लिए मौत का कारण बन रही है। प्रचंड गर्मी के चलते बुधवार को अनेक स्थानों पर चमगादड़ों के पेड़ पर लटके-लटके ही मौत हो गई।और कई चमगादड़ रोड पर गिरे नज़र आए फलदार पेड़ में पके हुए फल की तरह एक एक कर के गिरते जा रहे है चमगादड़
इन दिनों गरियाबंद की सड़कों पर अघोषित कर्फ्यू का नजारा है, क्योंकि आसमान से अंगारे बरस रहे हैं. हर तरफ त्राहिमाम मचा है. इस सबके बीच इंसान तो अपने आप को घरों में कैद कर अपनी जिंदगी की हिफाजत कर रहे हैं. लेकिन बेजुबान पशु पक्षी के अस्तित्व पर खतरा पर बादल मंडरा रहा है. इसका एक नजारा बुधवार को देखने को मिला.पेड़ों से चमगादड़ गिर कर मरने लगे बुधवार दोपहर बाद पेड़ से चमगादड़ अचानक नीचे गिरने लगे और तङप-तङप पर मरने लगे. सड़कों पर चमगादड़ को मरा देख यह खबर जंगल मे आग की तरह फैल गयी. मौसम की बेरुखी की परवाह किए बगैर जिले के कुछ पक्षी प्रेमी स्थल पर पहुचे. सड़क पर तङप रहे चमगादड़ को पानी पिलाने लगे. पानी पीकर चमगादड़ में जान आयी.लोग मोबाइल में नजारा क़ैद करते यहीं कहते नजर आए की बिन पानी सब सून.
रोज़ हो रही है 15 से 20 चमगादड़ों की मौत
सिविल लाइन गोवर्धन वार्ड जैसे कुछ स्थानों पर करीब 15 से 20 चमगादड़ों के शव यहां-वहां पड़े दिखाई भी दिए। स्थानीय कान्हा क्लब खेल परिसर में स्थित वृक्षों के साथ आस पास के वृक्षों पर सैकडो की संख्या में चमगादड़ मौजूद रहते हैं। ये दिन भर वहां रहते है और सांझ ढलते ही पानी पीने के लिए तालाब पर मंडराना शुरू कर देती है।
बेजुवानों की मौत का जिम्मेवार कौन
ना जाने कितने बेजुबान पक्षी तङप-तङप कर दम तोड़ दे. लेकिन सवाल उठता है कि बेजुवानों की मौत का जिम्मेदार कौन है? इस सवाल का जबाब ढूंढने के पहले हम आपको यह बताना पड़ेगा कि हमने प्रकृति का कितना ख्याल रखा. प्रकृति से हम अपेक्षा करते है कि हमारी रक्षा करे, लेकिन प्रकृति की रक्षा के लिए हमने क्या किया. अपनी विलासिता की पूर्ति के लिए हमने पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की. पेड़ लगाने पर हमने विचार नहीं किया. वैज्ञानिक ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से आगाह करते रहे, लेकिन हमने उसे दरकिनार कर फ्रीज, एसी जैसे उपकरण लगाए. जल संरक्षण की दिशा में कदम उठाने के बजाय जल का दोहन किया. कंक्रीट की इमारतें खड़ी की और ना जाने क्या क्या किया.जब हमने अपनी सुख सुविधा के लिए प्रकृति से छेड़छाड़ किया तो समय आने पर प्रकृति हमें अपनी गलती का एहसास कराने के लिए सबक जरूर सिखाएगी. मौसम की बेरुखी यही कहता है कि अभी भी समय है संभलने का, प्रकृति के संरक्षण का. अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब बेजुबानों की भांति हम इंसान भी तङप-तङप कर दम तोड़ देंगे.