Lok Sabha elections Result 2024: ओडिशा में हुए चुनावों ने देश को एक बड़े सवाल के सामने खड़ा कर दिया है। लगातार पांच चुनाव जीतने वाली बीजू जनता दल (बीजेडी) के हार के बाद, हर जगह सिर्फ इस बात की चर्चा की आखिर ऐसा क्यों हुआ ?
लोकसभा चुनाव के जो परिणाम बीजेपी के पक्छ में आए हैं वो चौंकाने वाले हैं. जिस प्रकार की जीत हुई हैं उसकी न तो प्रेक्षकों को उम्मीद थी, और न ही चुनावी सर्वे करने वाले संस्थाओं को। बीजेडी की इस अपेक्षाएं खारिज करने वाली हार ने न केवल राजनीतिक दलों को, बल्कि चुनावी प्रक्रिया के निष्कर्ष को भी अचंभित किया है।
ओडिशा में हुए चुनावों के नतीजे ने दिखाया है कि जनता की मतदान शक्ति को कोई भी सिर नीचे झुका सकता है। यहाँ पर बीजेपी की जीत एक बड़ा संकेत है कि चुनावी प्रक्रिया में कितना बदलाव आ रहा है।
ओडिशा की राजनीति पर नज़र रखने और इसे समझने वाले सभी का यह मानना था कि लोकसभा चुनाव में पार्टी बेहतरीन प्रदर्शन करेगी. लेकिन विधानसभा चुनाव में भी बीजेडी हार जाएगी यह किसी ने नहीं सोचा था.
सभी का अंदाज़ा यही था कि पिछली बार की तरह इस बार भी राज्य में “स्प्लिट वोटिंग” होगी, जिसके तहत लोकसभा चुनाव में बीजेपी अधिक सीटों पर जीत दर्ज करेगी और विधानसभा चुनाव में बीजेडी की जीत होगी, भले ही पिछली बार के मुक़ाबले पार्टी का वोट शेयर और सीटों की संख्या में गिरावट आए.
सब यही मानकर चल रहे थे कि नवीन पटनायक लगातार छठी बार सरकार बनाएंगे और अगले ढाई महीनों में सिक्किम के पूर्व मुख्यमंत्री पवन कुमार चामलिंग का रिकॉर्ड तोड़कर देश में सबसे अधिक समय तक सत्ता में बने रहने वाले मुख्यमंत्री बन जाएंगे.
लेकिन मंगलवार को जब चुनाव के परिणाम आए, तो सब दंग रह गए. बीजेपी ने न केवल राज्य की 21 में से 20 लोकसभा सीटें जीतीं, बल्कि विधानसभा चुनाव में भी बीजेडी को पछाड़ कर राज्य के 147 में से 78 सीट ले गई, जो सरकार बनाने के लिए आवश्यक 74 सीटों से चार सीट अधिक थी.
बीजेडी को केवल 51 सीटें मिलीं जबकि कांग्रेस को 14, निर्दलीय को तीन और सीपीएम को एक.
पिछली बार लोकसभा चुनाव में 12 सीटें जीतने वाली बीजेडी का इस बार पूरी तरह से पत्ता साफ़ हो गया जबकि पिछली बार की तरह इस बार भी कांग्रेस के सप्तगिरी उलाका कोरापुट लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीत गए.
न केवल नवीन की पार्टी चुनाव बुरी तरह से हारी, बल्कि खुद नवीन को भी अपने 27 साल के लंबे और अविश्वसनीय रूप से सफल राजनीतिक करियर में पहली बार हार का मुंह देखना पड़ा.
पिछली बार की तरह इस बार भी वे दो सीटों से चुनाव लड़ रहे थे. अपने पारंपरिक चुनाव क्षेत्र हिंजलि से जहां वे केवल 4,636 वोटों से जीत गए, वही कांटाबांजी सीट पर उन्हें बीजेपी के लक्ष्मण बाग ने 16,344 वोटों से हरा दिया.
आख़िर क्या वजह है कि लगातार पांच बार भारी बहुमत से जीतने वाले राज्य के सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, जो कभी कोई चुनाव नहीं हारे, इस बार मात खा गए? प्रेक्षकों की मानें तो उनकी हार का सबसे बड़ा कारण था आईएएस की नौकरी छोड़कर राजनीति में प्रवेश करने वाले उनके पूर्व निजी सचिव वीके पांडियन को पार्टी की कमान पूरी तरह थमा देना.
पांडियन जो पिछले अक्टूबर तक उनके निजी सचिव थे, वो नौकरी से इस्तीफ़ा देकर बीजेडी में शामिल हो गए थे. चुनाव के दौरान उन्होंने न केवल प्रत्याशियों का चयन किया, बल्कि पार्टी की ओर से प्रचार का पूरा ज़िम्मा अपने हाथों में लिया.
पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची में 40 नाम थे. लेकिन लगभग 40 दिनों के प्रचार में केवल पांडियन और कभी कभार नवीन के अलावा पार्टी के किसी और नेता को कहीं मंच पर या रोड शो के दौरान देखा नहीं गया.
केवल चुनाव के दौरान ही नहीं, पिछले कई महीनों से न बीजेडी का कोई नेता, मंत्री या विधायक न कोई वरिष्ठ सरकारी अधिकारी मुख्यमंत्री और बीजेडी सुप्रीमो नवीन पटनायक से मिल पाया या उनके सामने अपनी बात रख पाया.
पार्टी और सरकार के सारे फ़ैसले पांडियन ही लिया करते रहे. यहां तक कि मुख्यमंत्री के पास पहुंचने वाली फ़ाइलों पर भी उनके डिजिटल हस्ताक्षर का इस्तेमाल किया गया जबकि खुद नवीन लोगों की नज़र से ओझल हो गए.
पिछले दो तीन सालों से न वे “लोक सेवा भवन” (राज्य सचिवालय) जाते थे न विधानसभा. यही कारण है नवीन के स्वास्थ्य तथा सरकार और पार्टी में उनकी घटती और पांडियन की बढ़ती भूमिका को लेकर अफवाहों का बाज़ार गर्म रहा और पार्टी को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ा.
सरकार और सत्तारूढ़ दल में पांडियन के बढ़ते हुए प्रभाव के खिलाफ लोगों में रोष को संज्ञान में लेते हुए बीजेपी ने बहुत ही चतुराई से “ओड़िया अस्मिता” को अपना मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया.
प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत बीजेपी के सभी नेताओं ने बार बार इस बात को दोहराया कि ओडिशा के साढ़े चार करोड़ लोगों को अपना “परिवार” बताने वाले नवीन ने अपने राज्य और पार्टी के सभी नेताओं को नज़रअंदाज़ कर तमिलनाडु में जन्मे एक आदमी को सत्ता संभालने का ज़िम्मा सौंप दिया.
और यह बात लोगों में काम कर गई क्योंकि वे देख रहे थे की पार्टी और सरकार दोनों में पांडियन का ही बोलबाला था और पार्टी के मंत्री, विधायक तथा अन्य सभी सरकारी अफसर पूरी तरह से नाकाम कर दिए गए थे.
लोगों में पांडियन की भूमिका को लेकर ग़ुस्से को आखिरकार समझकर नवीन ने चौथे चरण के मतदान से ठीक पहले एएनआई को दिए गए एक इंटरव्यू में स्पष्ट किया की पांडियन उनके “उत्तराधिकारी” नहीं हैं.
उन्होंने अपने स्वास्थ्य के बारे में सफाई दी और कहा कि वे पूरी तरह से स्वस्थ हैं लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी.