Farming Tips: करौंदा (Carissa carandas) एक महत्त्वपूर्ण फल है, जिसे औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। इसकी खेती से किसानों को आर्थिक लाभ हो सकता है। यह सूखा-प्रतिरोधी फसल है और इसमें पोषण तत्वों की भरमार होती है।
भूमि और जलवायु:
करौंदा की खेती के लिए हल्की दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है। इसके लिए 6-8.5 पीएच वाली भूमि उत्तम मानी जाती है। यह पौधा गर्म और शुष्क जलवायु में अच्छी तरह से उगता है। सालाना 25-30 डिग्री सेल्सियस तापमान करौंदा के लिए आदर्श है।
पौधारोपण:
करौंदा की पौध को बीज और कलम दोनों तरीकों से लगाया जा सकता है। सामान्यतः बरसात के मौसम में पौधारोपण किया जाता है। पौधों की रोपाई के लिए 2.5 मीटर की दूरी पर गड्ढे खोदे जाते हैं। गड्ढों में अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाकर पौधे रोपे जाते हैं।
सिंचाई:
करौंदा की फसल को अत्यधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। प्रारंभिक चरण में नियमित सिंचाई आवश्यक होती है। बाद में, इसे सप्ताह में एक बार सिंचाई की जा सकती है। गर्मियों में सिंचाई की मात्रा बढ़ा दी जाती है।
खाद और उर्वरक:
करौंदा की खेती के लिए जैविक खाद का उपयोग लाभदायक होता है। प्रति पौधा 10-15 किलोग्राम गोबर की खाद और 100-150 ग्राम नाइट्रोजन, 50-75 ग्राम फास्फोरस, और 50-75 ग्राम पोटाश का उपयोग करना चाहिए। यह खाद वर्ष में दो बार, जून और अक्टूबर में दी जाती है।
रोग और कीट नियंत्रण:
करौंदा की फसल में पत्ती झुलसा और फल सड़न जैसी बीमारियां देखी जाती हैं। इनसे बचाव के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या मैनकोज़ेब का छिड़काव किया जा सकता है। इसके अलावा, समय-समय पर कीटनाशकों का भी उपयोग करना चाहिए।
फसल कटाई:
करौंदा के फल सामान्यतः जून से अगस्त के बीच तैयार हो जाते हैं। फलों को तब काटा जाता है जब वे पूरी तरह से पक जाएं। करौंदा के पौधे से प्रति वर्ष प्रति पौधा 10-15 किलोग्राम फल प्राप्त किए जा सकते हैं।
आर्थिक लाभ:
करौंदा की खेती से किसानों को अच्छा मुनाफा हो सकता है। स्थानीय बाजारों में इसकी मांग अच्छी होती है। करौंदा के फलों को अचार, जैम, जेली आदि बनाने के लिए भी उपयोग किया जाता है, जिससे उत्पादों का मूल्य बढ़ जाता है।