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 CG VIDEO : 18 साल बाद भी एर्राबोर अग्निकांड की घटना याद करके सहम जाते हैं यहाँ के लोग, लेकिन अब साय सरकार में बैखौफ है जिंदगी, देखें डॉक्यूमेंट्री 

Neeraj Gupta
Last updated: 2024/07/26 at 1:08 PM
Neeraj Gupta
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8 Min Read
 CG VIDEO : 18 साल बाद भी एर्राबोर अग्निकांड की घटना याद करके सहम जाते हैं यहाँ के लोग, लेकिन अब साय सरकार में बैखौफ है जिंदगी, देखें डॉक्यूमेंट्री 
 CG VIDEO : 18 साल बाद भी एर्राबोर अग्निकांड की घटना याद करके सहम जाते हैं यहाँ के लोग, लेकिन अब साय सरकार में बैखौफ है जिंदगी, देखें डॉक्यूमेंट्री 
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रायपुर। CG VIDEO : छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के एर्राबोर में 17 जुलाई 2006 को हुए बड़ी नक्सली घटना को अंजाम दिया गया था, इस घटना में 50 से ज्यादा ग्रामीण मारे गए, कुछ जिंदा ही जल गए। हालात बदले हैं, लेकिन ग्रामीणों के कानों में अब भी चीखने-चिल्लाने की आवाजें गूंजती हैं। वहीं अब 18 साल बाद इस घटना पर सुकमा के युवक आदर्श पांडेय ने एक डॉक्यूमेंट्री बनाई है। इसे छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने ऑफिशियल सोशल मीडिया अकाउंट पर भी शेयर किया है। डॉक्यूमेंट्री में घटना को आंखों से देखने वाले लोगों से बातचीत की गई है, साथ ही लोगों और सुरक्षाबलों ने उन दिनों को याद कर पुराने दिनों और अभी के दिनों में अंतर भी बताया।

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दरअसल बस्तर में नक्सलवाद के खिलाफ बगावत की आग तेज थी जब कांग्रेस के नेता महेंद्र कर्मा के नेतृत्व में बस्तर में सलवा जुडुम की शुरुआत की गई थी । यह आंदोलन नक्सलियों के खिलाफ पहला और सबसे बड़ा आंदोलन था जिसमें पुलिस सरकार और ग्रामीणो मिलकर नक्सलवाद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था गांव-गांव से लोगों को शहरी छोर में बनाए गए सलवा जुडूम राहत शिविरों में लाया गया था । इन शिविरों में एक एर्राबोर भी था ।

सुकमा सलवा जुडूम में राहत शिविर चलाया जा रहा था। यहां बड़ी संख्या में नक्सली पहुंचते हैं। वहीं 17 जुलाई 2006 को एर्राबोर में अचानक गोलियां चलने की आवाजें आने लगती हैं। इससे पहले कि जवान या पुलिस कुछ समझ पाते, नक्सलियों ने वहां सैकड़ों घरों (झोपड़ियों) में आग लगा दी। जवान मौके पर पहुंचे, लेकिन नक्सली भाग चुके थे। वहीं आग लगने से सारी झोपड़ियां जलकर राख हो गई थीं। परिजन राख के ढेर में अपनों को तलाश करते हुए  रोते-बिलखते रहे। घटना के बारे में सुनकर आप के भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे।’

सलवा जुडूम नक्सली संगठन के लिए एक बड़ी चुनौती थी क्योंकि ग्रामीणों की बगावत नक्सली संगठन को रास ना आई, सलवा जुडूम का नेतृत्व करने वाले लोगों और सरकार ने नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में ग्रामीणों का साथ और सहयोग मांगा बदले में उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिया नक्सली एक बड़ा हमला कर इस भरोसे को तोड़ना चाह रहे थे । जिसको लेकर नक्सलियों ने एक बड़े हमले की प्लानिंग शुरू की जिसका केंद्र बिंदु एर्राबोर था। नक्सलियों की टीम की छोटी टुकड़ी दो हफ्तों तक एरो बोर के हर एक इलाके की रेकी कर रही थी । जवानों के मूवमेंट से लेकर सलवा जुडूम शिविर में रह रहे लोगों के दिनचर्या की सारी जानकारी इकट्ठा की जा रही थी । जवान कब मोर्चे पर पहुंचते हैं और कब संतरियों की अदला बदली होती है । जवानों को कैसे बैकअप मिलेगा और कैसे हमले को सफल किया जाएगा इसका पूरा प्लान एर्राबोर में ही तैयार किया गया । इसके बाद घने जंगलों में नक्सलियों की एक बैठक में पूरे प्लानिंग की जानकारी और जिम्मेदारियां बांटी गई ।

रात लगभग 12:00 बज रहे थे जब गांव की बिजली अचानक गुल हो जाती है और लोगों की नींद खुलती है माहौल ऐसा था कि लोगों को एहसास हो चुका था कि अब कुछ होने वाला है इतने में ही सलवा जुडूम राहत शिविर के दूसरे छोर पर मौजूद पुलिस थाने की ओर से गोलियों के गड़गड़ाहट की आवाज आती है । कैंप में सो रहे जवान गोलियों की गड़गड़ाहट सुनकर मोर्चा संभालते हैं। मोर्चे से बाहर तीर धनुष लेकर बैठे एसपीओ गोलियों की गड़गड़ाहट से यह अंदाजा लगा चुके होते हैं कि यहां 100 200 नहीं बल्कि हजार से ज्यादा नक्सली मौजूद है। सभी एसपीओ कैंप के मोर्चे में लौट जाते हैं । इधर टेकरी पर मौजूद सुरक्षाबलों के कैंप पर भी भीषण गोलीबारी होती है। जवानों को लगता है कि निशाना पुलिस थाना है जिसे लूटने की तैयारी चल रही है । लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं था । थाने में एक एंटी लैंड माइन व्हीकल थी और थाने से लगभग 500 मीटर की दूरी पर एक पुल और पुल के दूसरे छोर पर टेकरी जहां सुरक्षाबलों का एक और कैंप जहां जवान मोर्चा संभाले रहे और गोलीबारी का जवाब देते रहे।

तभी पुल पर 10 से ज्यादा नक्सली एक बड़ा विस्फोटक लगाने की तैयारी कर रहे थे, जवानों की नजर पड़ते ही एंटी लैंड माइन व्हीकल को पॉइंट की जानकारी मिलती है और गाड़ी पुल की ओर जाती है नक्सलियों की प्लानिंग थी की गोलीबारी के बीच बारिश के दौरान पुल को उड़ाकर कोण्टा इलाके को सुकमा से काटना । लेकिन तब तक एंटी लैंड माइन व्हीकल वहां पहुंच चुकी थी । जवान आईईडी विस्फोटक लगा रहे नक्सलियो पर गोलीबारी करते हैं और उनकी प्लानिंग विफल हो जाती है । तब तक थाने और कैंप की विपरीत दिशा में सलवा जुडूम राहत शिविर से चीख चिल्लाहट सुनाई देती है । आग की लपटों के बीच काली अंधेरी रात सुनहरी लगने लगती है । तब जवानों का ध्यान राहत शिविर की ओर जाता है।

अब यह साफ हो चुका था की निशाना थाना या कैंप नहीं बल्कि सलवा जुडूम राहत शिविर में मौजूद लोग थे । शिविर को निशाना बनाने एक मजबूत रणनीति बनाई थी । जहां जवानों को फायरिंग में उलझा कर और मोर्चों तक सीमित कर राहत शिविर में रह रहे लोगों के 220 मकानों को जलाया गया जो दिखे उनकी हत्या की गई और जो हाथ आया उनका अपहरण किया गया । जब तक जवान राहत शिविर तक पहुंच पाते तब तक बहुत देर हो चुकी थी नक्सली वहां से निकल चुके थे । इस घटना में 33 ग्रामीणों की मौत हुई थी वहीं 1 एसपीओ शहीद हुआ था।
धीरे-धीरे यह खबर राजधानी और फिर देश भर के कोने-कोने तक पहुंचती है । प्रदेश सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक हड़कंप मच जाता है । यहां तक की सलवा जुडूम और ग्रामीणों की सुरक्षा व्यवस्था पर कई सवाल उठाए जाते हैं । इस घटना के बाद सलवा जुडुम में मौजूद लोग खुद को पूरी तरह से असुरक्षित महसूस करने लगे थे । यहां तक की बहुत से लोगों ने नक्सलियों द्वारा दिए गए गांव वापसी के विकल्प को भी अपनाया था । एर्राबोर अग्निकांड बस्तर के इतिहास का काला अध्याय माना जाता है । जहां दो दर्जन से ज्यादा लोग आग की लपटों में जल गए कहानी बच्चे कहीं बूढ़े कहीं जवान 17 जुलाई का वह दिन जब और पूरी तरह से लहूलुहान हो चुका था । अगला दिन जब सरकार खुद चलकर एर्राबोर पहुंची जहां के वीरान मंजर और जले हुए 220 मकानों को देख कर वह भी विचलित हो गए।

 

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