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Krishna Janmashtami 2024: जयंती योग में कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व आज, यहाँ जानें पूजन का शुभ मुहूर्त से लेकर सबकुछ

Veena Chakravarty
Last updated: 2024/08/26 at 6:52 AM
Veena Chakravarty
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6 Min Read
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 Shri Krishna Janmashtami 2024 :इस साल श्री कृष्ण भगवान का 5251वां जन्मदिन मनाया जा रहा है। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में रात 12 बजे हुआ था। इसलिए ही हर साल इस दिन पर कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। जिसे कृष्णाष्टमी, अष्टमी रोहिणी के नाम से जाना जाता है। यहां जानिए जन्माष्टमी से जुड़ी हर एक जानकारी।

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इस साल श्री कृष्ण जन्माष्टमी आज सोमवार को मनाई जाएगी। अष्टमी तिथि का प्रारंभ 26 अगस्त की सुबह 3 बजकर 39 मिनट से होगा और इसकी समाप्ति 27 अगस्त 2024 को 02:19 AM पर होगी।

 कृष्ण जन्माष्टमी पूजा मुहूर्त 2024

कृष्ण जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण की पूजा का शुभ मुहूर्त 26 अगस्त की रात 12 बजकर 1 मिनट से शुरू होकर रात 12 बजकर 45 मिनट तक रहेगा। कृष्ण जी की पूजा के लिए निशिता पूजा समय सबसे शुभ माना जाता है।

 कृष्ण जन्माष्टमी पूजा सामग्री

धूप बत्ती और अगरबत्ती, यज्ञोपवीत 5, अक्षत, पान के पत्ते, सुपारी, पुष्पमाला, केसर, कपूर, आभूषण, रुई, तुलसीमाला, कमलगट्टा, सप्तधान, गंगाजल, शहद, अबीर, गुलाल, पंच मेवा, शक्कर, गाय का घी, गाय का दही, गाय का दूध, ऋतुफल, छोटी इलायची, सिंहासन, झूला, तुलसी दल, कुश व दूर्वा, हल्दी, कुमकुम, आसन, मिष्ठान्न, बाल स्वरूप कृष्ण की प्रतिमा, रोली, सिंदूर, चंदन, भगवान के वस्त्र, नारियल, फूल, फल, मोर पंख, गाय बछड़े सहित, केले के पत्ते, औषधि, पंचामृत, दीपक, मुरली, माखन, खीरा।
कृष्ण जन्माष्टमी पर्व भगवान कृष्ण के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। हिंदू धार्मिक मान्यताओं अनुसार भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आधी रात में भगवान विष्णु के 8वें अवतार श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। भगवान कृष्ण ने धरती को कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए माता देवकी की आठवीं संतान के रूप में जन्म लिया था। यही वजह है कि हर साल कृष्ण जन्मोत्सव का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।

कृष्ण जन्माष्टमी की सरल पूजा विधि 

  • कृष्ण जन्माष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और इसके बाद भगवान कृष्ण के मंदिर में जायें और वहां मोर-पंख अवश्य चढ़ाएं।
  • मंदिर नहीं जा सकते तो घर के मन्दिर में ही भगवान कृष्ण को मोर पंख चढ़ाएं।
  • इस दिन भगवान कृष्ण की प्रतिमा को अच्छे से सजाएं।
  • उनके लिए झूला तैयार करें।
  • पूजा के समय भगवान कृष्ण के मन्त्र का 108 बार जप करें।
  • रात 12 बजे की पूजा से पहले फिर से स्नान कर लें।
  • फिर साफ वस्त्र पहनकर पूजा की तैयारी करें।
  • फिर कृष्ण जी की प्रतिमा को दक्षिणावर्ती शंख से अभिषेक कराएं।
  • उन्हें फूल और फल चढ़ाएं।
  • तरह-तरह के पकवान का भोग लगाएं।
  • जन्माष्टमी की कथा सुनें और अंत में भगवान कृष्ण की आरती करें।

कृष्ण जन्माष्टमी की पारंपरिक पूजा विधि 

  • कृष्ण जन्माष्टमी के दिन व्यक्ति को स्नान आदि से निवृत होकर सभी देवी देवताओं को नमस्कार करना चाहिए।
  • इसके बाद घर के मंदिर में पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुख करके बैठ जाएं।
  • फिर एक हाथ में जल, फल, पुष्प लेकर व्रत का संकल्प लें।
  • इसके बाद दोपहर के समय में काले तिलों को जल में डालकर प्रसूति गृह बनाएं।
  • इस प्रसूति गृह में एक सुंदर बिछौना बिछाएं और यहां कलश स्थापित करें।
  • फिर भगवान कृष्ण को स्तनपान कराती मां देवकी की मूर्ति स्थापित करें।
  • जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण, माता देवकी, नंदलाल, यशोदा मैया, वासुदेव, बलदेव और लक्ष्मी जी की विधिवत पूजा की जाती है।
  • जन्माष्टमी के दिन श्री कृष्ण भगवान की पूजा रात 12 बजे किए जाने की परंपरा है।
  • जन्माष्टमी के दिन रात 12 बजे खीरे को काटकर उसके तने से अलग किया जाता है।
  • दरअसल ये परंपरा इसलिए निभाई जाती है क्योंकि इस दिन खीरे को भगवान कृष्ण के माता देवकी से अलग होने के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
  • इसी वजह से कई स्थानों पर जन्माष्टमी के दिन रात 12 बजे खीरा काटा जाता है।
  • इसके बाद भगवान कृष्ण की आरती की जाती है। फिर उन्हें भोग लगाया जाता है।
  • इसके बाद लड्डू गोपाल को झूला झुलाया जाता है।

कृष्ण जन्माष्टमी व्रत विधि 

कृष्ण जन्माष्टमी व्रत सूर्योदय से शुरू होकर अगले दिन सूर्योदय तक रखा जाता है। जो कोई भी इस व्रत को करता है उसे व्रत से एक दिन पहले यानि की सप्तमी तिथि को हल्का और सात्विक भोजन ही करना चाहिए। इसके बाद जन्माष्टमी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जाता। लेकिन फलाहार ले सकते हैं। पूरे दिन व्रती व्रत रहने के बाद रात में 12 बजे विधि विधान भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं। इसके बाद व्रत का पारण करते हैं। वहीं कई लोग जन्माष्टमी व्रत का पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद करते हैं।
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