हफीज़ खान. राजनांदगांव | CG: शहर के रियासत कालीन गणेश मंदिर के प्रति लोगों की गहरी आस्था है। यहां राजमहल में राजनांदगांव जिले के सबसे पहले गणेश मंदिर की स्थापना। दास राजा द्वारा अपने महल निर्माण के दौरान ही किया गया था। इस राज महल के द्वार के समीप भगवान गणेश मंदिर निर्माण यहां की सुख समृद्धि और नगर कल्याण के दृष्टिकोण से राज परिवार की परम्परा अनुसार की गई।
राजनांदगांव के रियासत कालीन वर्तमान शासकीय दिग्विजय कॉलेज में वर्ष 1866 में श्री गणेश मंदिर की स्थापना की गई थी। 158 वर्षों से रियासत कालीन इस मंदिर में भगवान गणेश की पूजा अर्चना की जा रही है। इस मंदिर में विश्व विख्यात मूर्धन्य कवि गजानन माधव मुक्ति बोध, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी और डा. बल्देव प्रसाद मिश्र ने भी यहां आराधना करने हुए अपनी रचानाओं का निर्माण किया है। राजपुरोहित के पुत्र पंडित जितेंद्र झा ने बताया कि यह गणेश मंदिर जिले का पहला गणेश मंदिर है। यहां लोग आते हैं और अपनी मनोकामना करते हैं। वहीं मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालुओं द्वारा चांदी का छत्र चढ़ाने की परंपरा भी यहां बन गई है। उन्होंने कहा कि जब इस मंदिर की जिम्मेदारी उन्हें मिली थी तब 16 चांदी के छत्र थे, जो आज 124 हो गए। उन्होंने बताया कि लोग अपनी श्रद्धा अनुसार चांदी का छत्र यहां चढ़ाते हैं।
इतिहासकारों के अनुसार इसी गणेश मंदिर में यहां के राजाओं द्वारा गणेश उत्सव के पर्व के दौरान गणेश प्रतिमा स्थापित की जाने लगी। उस दौर में राजनांदगांव में मूर्तिकार नहीं होने के चलते प्रतिमा नागपुर क्षेत्र से मंगाई जाती थी और यहां पर अलग से मिट्टी की प्रतिमा 10 दिनों के लिए स्थापित की जाती थी। वर्ष 1931 में राजनांदगांव के मूर्तिकार पांडुरंग कालेश्वर द्वारा बनाई गई मूर्ति राजमहल में स्थापित की गई थी। आज भी गणेश मंदिर में प्राचीन प्रतिमा स्थल पर ही भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित की जाती है। जिसे विधि विधान के साथ विसर्जित कर दिया जाता है।
रियासत कालीन प्राचीन गणेश मंदिर में वैवाहिक निमंत्रण देने की भी अनोखी परंपरा है। यहां पर उसे दौर में मौखिक निमंत्रण भगवान गणेश को दिया जाता था, तो वहीं अब वैवाहिक कार्ड मंदिर में चढ़ने के बाद ही अन्य लोगों को निमंत्रण दिया जाता है। राजमहल के आसपास निवासरत लोग आज भी इस परंपरा को पूरी निष्ठा से निभाते हैं।