जगदलपुर। बस्तर संभाग मुख्यालय जगदलपुर के शहीद महेंद्र कर्मा बस्तर विश्वविद्यालय में मानवविज्ञान एवं जनजातीय अध्ययनशाला, शोध उपाधि हेतु मौखिक परीक्षा आयोजित की गई। इस आयोजन में विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रोफेसर मनोज कुमार श्रीवास्तव, कुलसचिव अभिषेक कुमार बाजपेई, विषय विशेषज्ञ के रूप में नीलकंठ पाणिग्रही (गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिलासपुर), विभागाध्यक्ष डॉ. स्वपन कुमार कोले, शोध निर्देशका डॉ. सुकृता तिर्की, डॉ. आनंद मूर्ति मिश्रा, डॉ. मुक्तिकांत पांडा, डॉ. शारदा देवांगन एवं विधार्थिगण उपस्थित हुए। छत्तीसगढ़ राज्य के दक्षिणी भाग में स्थित दंतेवाड़ा जिला लौह खनन के लिए विश्व प्रसिद्ध है। औद्योगिकरण के दौर में दंतेवाड़ा जिले का मुख्य स्थान है। इसके आसपास निवासरत जनजाति समूह इससे प्रभावित रहा है।
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मानवविज्ञान एवं जनजाति अध्ययनशाला के शोधार्थी खोमेश मौर्य ने इस स्थिति को समझते हुए अपने शोध का विषय”छत्तीसगढ़ राज्य की जनजातियों में औद्योगीकरण के प्रभाव का मानव शास्त्री अध्ययन (दंतेवाड़ा के विशेष संदर्भ में) में शोध निर्देशिका डॉ. सुकृता तिर्की, सह प्राध्यापक के निर्देशन में अपना शोध प्रबंध पूर्ण किया। इन्होंने अपने अध्ययन में औद्योगीकरण के प्रभाव से होने वाले शासन, प्रशासनिक व्यवस्था, सामाजिक, सांस्कृतिक परिवर्तन के बारे में विस्तृत रूप में प्रकाश डाला। साथ ही उन्होंने पूर्व और वर्तमान में हुए पर्यावरण जल, वायु, संचार सुविधाएं क्षेत्रीय विकास जनसंसाधन इत्यादि पर भी गहराई से अध्ययन कर अपने शोध के प्रस्तुत किया।निष्कर्ष को और विस्तृत रूप से बताते हुए उन्होंने यह कहा कि किसी देश को विकसित करने के लिए कृषि उद्योगों के अलावा भी विनिर्माण उद्योगों को भी शामिल करना अति महत्वपूर्ण है l वास्तव में दोनों ही ऐसे स्तंभ है जिस पर देश के अर्थव्यवस्था को सुधारने और स्थिर बनाए रखने की जिम्मेदारी है l औद्योगीकरण उसे क्षेत्र के पर्यावरण एवं वहां निवासरत लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं, यह अपनी तकनीकी प्रगति के साथ देश के अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए भी आवश्यक तत्व प्रदान करता है तथा ये अविकसित से विकासशील देश की ओर अग्रसर होता है परंतु देश के विकास के साथ उसके मानव मूल्य इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर तथा पर्यावरण किसी भी समाज के लिए महत्वपूर्ण है।
बस्तर संभाग की परिपेक्ष में जब हम औद्योगिक विकास को 7 से लेकर चलने का सोचते हैं तब इन आदिवासी बाहुली क्षेत्र के सांस्कृतिक आधार उनके देवी देवता एवं देवी देवता के निवास स्थल जैसे जंगल, पहाड़, पर्वत ,पेड़, पौधे नदी नाला पर्यावरण एवं क्षेत्र की जनजाति समुदाय की स्वास्थ्य इत्यादि को बिना नुकसान पहुंचा किसी भी औद्योगिक विकास को लागू किया जासकता है।
निष्कर्ष के उपरांत समस्याओं को उजागर करते हुए उसे समस्याओं के निराकरण के लिए उन्होंने सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, परंपरागत, राजनैतिक, पर्यावरणीय और औद्योगीकरण के संबंध में कई सुझाव दिए।