नवरात्र के दूसरे दिन मां दुर्गा के ‘देवी ब्रह्मचारिणी‘ स्वरूप की पूजा करने का विधान है। माता के नाम से उनकी शक्तियों के बारे में जानकारी मिलती है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली अर्थात तप का आचरण करने वाली ब्रह्मचारिणी को हमन बार बार नमन करते हैं। माता ब्रह्मचारिणी की पूजा अराधना करने से आत्मविश्वास, आयु, आरोग्य, सौभाग्य, अभय आदि की प्राप्ति होती है। माता ब्रह्मचारिणी को ब्राह्मी भी कहा जाता है।
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शास्त्रों में बताया गया है कि मां दुर्गा ने पार्वती के रूप में पर्वतराज के यहां पुत्री बनकर जन्म लिया और महर्षि नारद के कहने पर अपने जीवन में भगवान महादेव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। हजारों वर्षों तक अपनी कठिन तपस्या के कारण ही इनका नाम तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी पड़ा। अपनी इस तपस्या की अवधि में इन्होंने कई वर्षों तक निराहार रहकर और अत्यन्त कठिन तप से महादेव को प्रसन्न कर लिया
भोग
नवरात्र के इस दूसरे दिन मां भगवती को चीनी का भोग लगाने का विधान है। ऐसा विश्वास है कि चीनी के भोग से उपासक को लंबी आयु प्राप्त होती है और वह नीरोगी रहता है तथा उसमें अच्छे विचारों का आगमन होता है। साथ ही माता पार्वती के कठिन तप को मन में रखते हुए संघर्ष करने की प्रेरणा प्राप्त होती है।
दूसरे दिन पीले रंग का महत्व
नवरात्रि के दूसरे दिन पीले रंग के वस्त्र पहनकर पूजा अर्चना करनी चाहिए क्योंकि माता ब्रह्मचारिणी को पीला रंग बहुत प्रिय है। साथ ही माता को पीले रंग के वस्त्र, पीले रंग के फूल, फल आदि अवश्य अर्पित करना चाहिए। भारतीय दर्शन में पीला रंग पालन-पोषण करने वाले स्वभाव को दर्शाता है और यह रंग सीखने, उत्साह, बुद्धि और ज्ञान का संकेत है।
पूजा विधि
माता ब्रह्मचारिणी की पूजा पहले दिन की तरह ही शास्त्रीय विधि से की जाती है। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत होकर पूजा स्थल पर गंगाजल से छिड़काव करें और पूरे परिवार के साथ मां दुर्गा की उपासना करें। माता ब्रह्मचारिणी की पूजा में पीले रंग के वस्त्र का प्रयोग करें और पीले रंग की चीजें ही अर्पित करें। माता का पंचामृत से स्नान कराने के बाद रोली, कुमकुम अर्पित करें। इसके बाद अग्यारी करें और अग्यारी पर लौंग, बताशे, हवन सामग्री आदि चीजें अर्पित करें, जैसा आपके घर पर होता हो।