शनिवार को शारदीय नवरात्रि का तृतीय दिन है। इस दिन मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप की पूजा-आराधना की जाती है। मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप को चंद्रघंटा के नाम से जानते हैं। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह की पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन मां को अन्य भोग के अलावा शक्कर और पंचामृत का भोग लगाना चाहिए। मान्यता है कि यह भोग लगाने से माँ दीर्घायु होने का वरदान देती हैं।
मां चंद्रघंटा के वंदन से मन को परम सूक्ष्म ध्वनि सुनाई देती है जो मन को बहुत शांति प्रदान करती है। चूंकि इनका वर्ण स्वर्ण जैसा चमकीला है और यह हमेशा आसुरिक शक्तियों के विनाश के लिए सदैव तत्पर रहती हैं, इसलिए इनकी आराधना करने वाले को भी अपूर्व शक्ति का अनुभव होता है। मां चंद्रघंटा की पूजा करने से भक्तों को तेज और ऐशवर्य की प्राप्ति होती है।
- ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानआदि से निवृत हो जाएं।
- इसके बाद मां को शुद्ध जल और पंचामृत से स्नान करायें।
- अलग-अलग तरह के फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर, अर्पित करें।
- केसर-दूध से बनी मिठाइयों या खीर का भोग लगाएं।
- मां को सफेद कमल, लाल गुडहल और गुलाब की माला अर्पण करें और प्रार्थना करते हुए मंत्र जप करें।
अंत में मां की आरती करें।
स्वरूप
देवी चंद्रघंटा का स्वरूप अत्यंत शांतिदायक और कल्याणकारी है। बाघ पर सवार मां चंद्रघंटा के शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। उनके माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसलिए उन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। 10 भुजाओं वाली देवी प्रत्येक हाथ में अलग-अलग शस्त्र से सुशोभित हैं। उनके गले में सफेद फूलों की माला सुशोभित है। यद्यपि वह दुष्टों पर अत्याचार करने और उन्हें नष्ट करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं, फिर भी उनका रूप देखने वाले और उपासक के लिए सौम्यता और शांति से भरा रहता है। अतः भक्तों के कष्टों का निवारण ये शीघ्र ही कर देती हैं। सिंह इनका वाहन है।
मां चंद्रघंटा का मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नम:।।
पिण्डजप्रवरारूढ़ा ण्डकोपास्त्रकेर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
ऐं श्रीं शक्तयै नम: